कैंसर के जोखिम तत्व

इनके द्वाराRobert Peter Gale, MD, PhD, DSC(hc), Imperial College London
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया अक्टू. २०२२

    अनेक आनुवंशिक और पर्यावरण संबंधी तत्व कैंसर बढ़ने के जोखिम को बढ़ा देते हैं। हालांकि, ऐसा नहीं है कि कार्सिनोजन के संपर्क में आ चुके या अन्य जोखिम तत्वों वाले सभी लोगों को कैंसर हो ही जाए। (कैंसर का विवरण भी देखें।)

    पारिवारिक इतिहास

    कुछ परिवारों में निश्चित कैंसरों के पनपने का खास तौर पर बहुत ज़्यादा जोखिम होता है। कई बार इस बढ़े हुए जोखिम का कारण एकमात्र जीन होता है और कई बार इसका कारण कई जीनों के बीच परस्पर अंतर्क्रिया होती है। पर्यावरणीय कारक—परिवार के लिए आम—इस जीन संबंधी अंतर्क्रिया को बदल सकते हैं और कैंसर का कारण बन सकता है।

    जीन और क्रोमोज़ोम

    एक अतिरिक्त या असामान्य क्रोमोसोम कैंसर के जोखिम को बढ़ा सकता है। उदाहरण के लिए, डाउन सिंड्रोम के सबसे आम प्रकार वाले लोग, जिनमे क्रोमोसोम 21 की दो आम प्रतियों की जगह तीन प्रतियां होती है, उनमें एक्यूट ल्यूकेमिया के विकसित होने का जोखिम 12 से 20 गुणा ज़्यादा होता है, लेकिन विरोधाभासी ढंग से, उनमें कार्सिनोमा विकसित होने का जोखिम कम होता है।

    ऐसा माना जाता है कि महत्वपूर्ण जीन को प्रभावित करने वाली असामान्यताएं (बदलाव) कैंसर के विकसित होने में मददगार साबित होती हैं। ये जीन प्रोटीन का उत्पादन करते हैं जिससे वृद्धि नियंत्रित होती है और कोशिका विभाजन और अन्य आधारभूत कोशिकीय गुण में बदलाव होते हैं।

    रसायनों के घातक प्रभाव, सूर्य की रोशनी, औषधियों, वायरस या अन्य पर्यावरणीय कारणों से कैंसर पैदा करने वाले जीन में बदलाव हो सकते हैं। कुछ परिवारों में, ये असामान्य कैंसर पैदा करने वाले जीन विरासत में मिलते हैं।

    कैंसर वाली जीन की दो प्रमुख श्रेणियां हैं

    • ऑन्कोजीन

    • ट्यूमर दाबक जीन

    ऑन्कोजीन जीन के वे परिवर्तित या परिवर्धित स्वरूप हैं जो अपनी सामान्य स्थिति में कोशिकीय वृद्धि को नियंत्रित करते हैं। इन ऑन्कोजीन में HER2, शामिल है, जिससे स्तन कैंसर होता है और EGFR है, जिससे कुछ फेफड़ों के कैंसर होते हैं। अनियंत्रित तरीके से बढ़ने वाले कुछ ऑन्कोजीन कोशिकाओं को बढ़ने के लिए अनुचित तरीके से संकेत देते हैं, जिससे कैंसर होता है। सामान्य जीनों के ऑन्कोजीन में बदलाव को पूरी तरह से समझा नहीं जा सका है, लेकिन कई घटक मददगार साबित हो सकते हैं, जिनमें शामिल हैं

    • एक्स-रे

    • सूर्य की रोशनी

    • कार्यस्थल में, हवा में विषैली चीज़ें, या रसायनों में (उदाहरण के लिए, तंबाकू के धुएं में)

    • संक्रामक एजेंट (उदाहरण के लिए, कुछ वायरस)

    ट्यूमर दाबक जीन आमतौर पर, खराब हो चुके DNA को ठीक करने वाले या कैंसर से प्रभावित कोशिकाओं की बढ़ोतरी को रोकने वाले प्रोटीन के लिए, कोडिंग करके कैंसर में बढ़ोतरी को रोकते हैं। कैंसर के होने की संभावना तब ज़्यादा होती है, जब DNA के नष्ट होने से ट्यूमर दाबक जीन के काम में रुकावट आती है, जिससे प्रभावित कोशिकाएं निरंतर बढ़ती जाती हैं। माता-पिता से वंशानुगत रूप से प्राप्त, दाबक जीन परिवर्तन, स्तन कैंसर के कुछ प्रतिशत मामलो का आधार बनते हैं, जो अक्सर युवावस्था में ही होने लगते हैं और परिवार के एक से अधिक सदस्यों में होते हैं।

    आयु

    विल्म्स ट्यूमर, रेटिनोब्लास्टोमा, और न्यूरोब्लास्टोमा जैसे, कुछ कैंसर, विशेष रूप से बच्चों में होते हैं। ये कैंसर वंशानुगत रूप से प्राप्त या भ्रूणीय विकास के दौरान होने वाले दाबक जीन में बदलाव की वजह से होते हैं। हालांकि, ज़्यादातर बाकी कैंसरों का वयस्कों में होना ज़्यादा आम है, खासकर बूढ़े लोगों में। अमेरिका में, 60% से ज़्यादा कैंसर 65 साल से ज़्यादा के लोगों में होते हैं। कैंसर की बड़ी हुई दर का कारण शायद लंबे समय तक, कार्सिनोजन के संपर्क में रहने और शरीर के इम्यून सिस्टम के कमज़ोर होने जैसे संयुक्त कारणों से बढ़ती है।

    पर्यावरणीय कारक

    अनेक पर्यावरणीय तत्व या कारक कैंसर बढ़ने के जोखिम को बढ़ा देते हैं।

    तंबाकू के धुएं में कार्सिनोजन होते हैं जिनसे फेफडों, मुंह, गले, भोजन-नली, किडनियों और मूत्राशय के कैंसरों के होने का जोखिम काफ़ी हद तक बढ़ता है।

    एसबेस्टस, औद्योगिक कचरे, या सिगरेट के धुएं जैसे जल या वायु प्रदूषक, कैंसर के खतरे को बढ़ा सकते हैं। बहुत सारे रसायनों को कैंसर के लिए ज़िम्मेदार माना जाता है, और बहुत से ऐसे अन्य रसायन होंगे जो कैंसर की वजह बनते होंगे। उदाहरण के लिए, एस्बेस्टस के संपर्क में आने से फेफड़ों का कैंसर और मीसोथैलियोमा (प्लूरा का कैंसर) हो सकता है। कीटनाशकों के संपर्क में आने से कुछ प्रकार के कैंसर (उदाहरण के लिए, ल्यूकेमिया और नॉन-हॉजकिन लिंफोमा) के होने का जोखिम बहुत ज़्यादा रहता है। रसायनों के संपर्क में आने और कैंसर के पनपने के बीच कई सालों का वक्त लग सकता है।

    विकिरणों के संपर्क में आना, कैंसर के जोखिम के बढ़ने का एक कारक है। लंबे समय तक पराबैंगनी विकिरण के संपर्क में आने से, मुख्यत: धूप से, त्वचा के कैंसर हो सकते हैं। आयनित विकिरण कैंसर की वजह से होता है। (कंप्यूटर से की गई टोमोग्राफी सहित [CT] सहित) एक्स-रे के दौरान आयनित विकिरण का इस्तेमाल होता है, और जो लोग कई परीक्षण करवाते हैं उनमें कैंसर के जोखिम के बढ़ने की एक छोटी संभावना होती है (मेडिकल इमेजिंग में विकिरण के जोखिम यह भी देखें)।

    मिट्टी से निकलने वाली, रेडियोएक्टिव गैस रेडोन के संपर्क में आने से, फेफड़ों के कैंसर के होने का जोखिम बढ़ जाता है। आमतौर पर, रेडोन वातावरण में ज़्यादा तेज़ी से फैलता है और इससे कोई नुकसान नहीं होता है। हालांकि, जब कोई मिट्टी पर उच्च रेडोन सामग्री के साथ कोई इमारत खड़ी कर दी जाती है, तब रेडोन उस इमारत में जमा हो सकता है, जिससे हवा बहुत ज़्यादा दूषित और नुकसानदायक हो सकती है। सांसों के ज़रिए रेडोन फेफड़ों में जाता है, जिससे धीरे-धीरे उनमें कैंसर हो सकता है। इसके संपर्क में रहने वाले लोग जो धूम्रपान भी करते हैं, उनमें फेफड़ों के कैंसर होने की संभावना और बढ़ जाती है।

    कई अन्य पदार्थों की जांच करने पर उन्हें कैंसर के संभावित कारण पाया गया है, लेकिन कैंसर के जोखिम को बढ़ाने वाले रसायनों की पहचान करने के लिए और ज़्यादा अध्ययन की ज़रूरत है।

    भूगोल

    कैंसर का जोखिम लोगों के रहने की जगह के हिसाब से अलग-अलग होता है, हालांकि भौगोलिक अंतर के कारण अक्सर जटिल होते हैं और उन्हें बहुत कम समझा जा सका है। कैंसर में यह भौगोलिक अंतर शायद अलग-अलग कारकों की वजह से है: जिनमें आनुवंशिकी, आहार और पर्यावरण शामिल हैं।

    उदाहरण के लिए, जापान में कोलन कैंसर और स्तन कैंसर का जोखिम कम होता है, लेकिन जब लोग जापान से अमेरिका में जाकर बसते हैं, तो कोलन और स्तन कैंसर होने का जोखिम बढ़ जाता है और धीरे-धीरे शेष अमेरिकी लोगों के बराबर हो जाता है। इसके विपरीत, जापान में रहने वालों में पेट का कैंसर होने की दर बहत ज़्यादा है। जब लोग जापान से अमेरिका में रहने के लिए आते हैं, उनमें पेट का कैंसर होने का जोखिम कम होकर अमेरिका में मौजूद जोखिम के बराबर हो जाता है, शायद आहार बदलने के कारण, हालांकि यह ज़रूरी नहीं है कि अगली पीढ़ी में जोखिम के रूप में यह कमी दिखे।

    आहार

    खाने में लिए जाने वाले पदार्थ कैंसर के जोखिम को बढ़ा सकते हैं। उदाहरण के तौर पर, जिस भोजन में संतृप्त वसा उच्च मात्रा में हो, और लोगों को मोटा करे, उसे कोलन, स्तन और शायद प्रोस्टेट कैंसर से जोड़ा जाता है। बहुत ज़्यादा शराब पीने वाले लोगों में लिवर का कैंसर, सिर और गर्दन का कैंसर, और भोजन-नली का कैंसर होने का जोखिम ज़्यादा होता है। बहुत ज़्यादा धुएं और अचार वाला भोजन, या बारबेक्यू किया हुआ माँस पेट का कैंसरहोने के जोखिम को बढ़ाता है। ज़्यादा वजन वाले या मोटे लोगों में स्तन कैंसर का कैंसर, गर्भाशय (एंडोमेट्रियम), कोलन, किडनी और भोजन-नली में परत बनने का जोखिम अपेक्षाकृत ज़्यादा होता है।

    औषधि सेवन और मेडिकल उपचार

    कुछ दवाएं और मेडिकल उपचार कैंसर बढ़ने के जोखिम को बढ़ा सकते हैं। उदाहरण के लिए, टेबलेट आदि मौखिक गर्भनिरोधकों में मौजूद एस्ट्रोजन स्तन कैंसर के जोखिम को उन लोगों में हल्का बढ़ा सकता है जो उनका सेवन कर रहे हैं या जिन्होंने पिछले एक-दो सालों में उनका सेवन किया हो। एस्ट्रोजन और प्रोजेस्टिन हार्मोन जो माहवारी (हार्मोन थैरेपी) के दौरान, महिलाओं को दिए जा सकते हैं वे भी स्तन कैंसर होने के जोखिम को हल्का बढ़ाते हैं।

    डाइएथिलस्टिलबेस्ट्रॉल (DES) उन महिलाओं में स्तन कैंसर के होने के जोखिम को बढ़ाता है जिन्होंने दवा ले रखी हो और उन महिलाओं की बेटियों में जो जन्म से पहले संपर्क में आ चुकी हों। दवा खा चुकी महिलाओं की बेटियों में भी DES सर्वाइकल और योनि कैंसर के जोखिम को बढ़ाता है। टेमोक्सीफ़ेन, स्तन कैंसर के इलाज में इस्तेमाल की जाने वाली दवा, एंडोमेट्रियल कैंसर (गर्भाशय की भीतरी लाइनिंग के कैंसर) के जोखिम को बढ़ाती है।

    टेस्टोस्टेरॉन, डेनेज़ॉल, या अन्य पुरुष हार्मोन (एंड्रोजन) का लंबे वक्त तक इस्तेमाल लिवर के कैंसर के जोखिम को हल्का बढ़ा सकते हैं।

    कुछ कीमोथैरेपी दवाओं (अल्केलेटिंग एजेंट) और विकिरण थैरेपी द्वारा कैंसर का उपचार करने से लोगों में सालों बाद दूसरे कैंसर के होने का जोखिम बढ़ सकता है।

    टेबल

    संक्रमण

    कई वायरसों को इंसानों में होने वाले कैंसर के लिए ज़िम्मेदार माना जाता है, और ऐसे कई अन्य वायरस हैं जो कैंसर की वजह बनते होंगे। ह्यूमन पैपिलोमा वायरस (HPV) से जननांग में मस्से या गांठें पड़ जाती है और यह महिलाओं में सर्वाइकल कैंसर और वल्वर कैंसर, और पुरुषों में पेनाइल कैंसर और एनल कैंसर यानी जननांग और गुदा के कैंसर, का एक प्रमुख कारण है। HPV से मुंह और गले के कुछ कैंसर भी होते हैं। हैपेटाइटिस B वायरस या हैपेटाइटिस C वायरस से लिवर का कैंसर हो सकता है। HIV जैसे, कुछ मानवीय रेट्रोवायरस से लिंफोमा और खून के सिस्टम के अन्य कैंसर होते हैं। कुछ वायरस कुछ देशों में कैंसर के प्रकारों का कारण बनते है, लेकिन अन्य देशों में नहीं। उदाहरण के लिए, एपस्टीन-बार वायरस से अफ़्रीका में बर्किट लिंफोमा (एक प्रकार का कैंसर) होता है और एशिया में नाक और ग्रसनी के कैंसर होते हैं।

    कुछ बैक्टीरिया भी कैंसर का कारण बन सकते हैं। हैलिकोबैक्टर पायलोरीजिससे पेट का अल्सर होता है, उससे पेट का कैंसर और लिंफोमा के होने का जोखिम बढ़ सकता है।

    परजीवी परजीवी कैंसर का कारण बन सकते हैं। सिस्टोसोमा हीमेटोबियम के इंफेक्शन से स्थायी सूजन और मूत्राशय में बहुत ज़्यादा जलन हो सकती है, जिससे बाद में कैंसर हो सकता है। एक अन्य प्रकार के परजीवी, क्लोनॉर्किस साइनेंसिस, को अग्न्याशय कैंसर और पित्त नलिका के कैंसर से जोड़ा जाता है।

    सूजन-संबंधी विकार

    सूजन-संबंधी दिक्कतें अक्सर कैंसर के जोखिम को बढ़ाती हैं। ऐसी दिक्कतों में अल्सरेटिव कोलाइटिस और क्रोन रोग (जिनसे कोलन और पित्त नलिका के कैंसर हो सकते हैं) शामिल हैं।