कोलेसिस्टाइटिस

इनके द्वाराYedidya Saiman, MD, PhD, Lewis Katz School of Medicine, Temple University
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया अग॰ २०२३

कोलेसिस्टाइटिस पित्ताशय की सूजन होती है, जिसकी आमतौर पर उत्पत्ति सिस्टिक डक्ट को पित्ताशय की पथरी द्वारा अवरूद्ध किए जाने के कारण होती है।

  • खास तौर पर, लोगों को पेट में दर्द, बुखार तथा मतली होती है।

  • अल्ट्रासोनोग्राफ़ी से आमतौर पर पित्ताशय की सूजन का पता लग जाता है।

  • अक्सर लेपैरोस्कोप का इस्तेमाल करके, पित्ताशय को निकालने की ज़रूरत हो सकती है।

पित्ताशय एक छोटी, नाशपाती के आकार की थैली होती है, जो लिवर के नीचे स्थित होती है। यह पित्त को स्टोर करता है, जो एक तरल है जिसकी उत्पत्ति लिवर द्वारा की जाती है और इससे पाचन में सहायता मिलती है। जब पित्त की आवश्यकता होती है, जैसे जब लोग खाते हैं, तो पित्ताशय संकुचित होता है, और वह पित्त नलियों से पित्त को छोटी आंत में धकेलता है। (पित्ताशय और पित्त की नली के विकार का विवरण और चित्र लिवर और पित्ताशय का अवलोकन भी देखें।)

पित्ताशय की पथरी के कारण होने वाली सर्वाधिक आम समस्या कोलेसिस्टाइटिस होती है। ऐसा तब होता है जब पथरी के कारण सिस्टिक डक्ट अवरूद्ध हो जाती है, जो पित्ताशय से पित्त का वहन करती है।

कोलेसिस्टाइटिस को एक्यूट या क्रोनिक के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।

एक्यूट कोलेसिस्टाइटिस

एक्यूट कोलेसिस्टाइटिस की शुरुआत अचानक होती है, और जिसके परिणामस्वरूप पेट के ऊपरी भाग में गंभीर, लगातार बने रहने वाला दर्द होता है। एक्यूट कोलेसिस्टाइटिस से पीड़ित कम से कम 95% लोगों को पित्ताशय की पथरी होती है। लगभग हर बार सूजन की शुरुआत संक्रमण के बिना होती है, हालांकि बाद में संक्रमण हो सकता है। सूजन के कारण पित्ताशय में तरल संचित हो सकता है तथा इसकी दीवारें मोटी हो सकती हैं।

बहुत ही कम बार, बिना पित्ताशय पथरी के एक्यूट कोलेसिस्टाइटिस (एकैल्कुलस कोलेसिस्टाइटिस) होता है। लेकिन, पित्ताशय में तलछट (पथरियों की तरह सामग्रियों के माइक्रोस्कोपिक कण) हो सकती है। एकैल्कुलस कोलेसिस्टाइटिस, अन्य प्रकार की कोलेसिस्टाइटिस से अधिक गंभीर होता है। निम्नलिखित के बाद इसके होने की संभावना होती है:

एक्यूट ऐकैल्कुलस कोलेसिस्टाइटिस छोटे बच्चों में संभवत: वायरल या अन्य संक्रमण को विकसित करने के कारण हो सकता है।

क्रोनिक कोलेसिस्टाइटिस

क्रोनिक कोलेसिस्टाइटिस पित्ताशय की सूजन है जो काफी समय से बनी आ रही है। लगभग यह हमेशा ही पित्ताशय की पथरियों और एक्यूट कोलेसिस्टाइटिस के पूर्व हमलों के कारण विकसित होता है। क्रोनिक कोलेसिस्टाइटिस की विशेषताओं में दर्द के बार-बार हमले होना (बिलियरी कॉलिक) जो उस समय होते हैं जब पित्ताशय की पथरियां सिस्टिक डक्ट को अवरुद्ध कर देती है।

क्रोनिक कोलेसिस्टाइटिस में पित्ताशय गंभीर सूजन के हमलों से क्षतिग्रस्त हो जाता है, आमतौर पर पित्ताशय की पथरियों के कारण, तथा इसकी दीवारें मोटी, स्कारयुक्त तथा छोटा हो सकता है। पित्ताशय की पथरियां सिस्टिक डक्ट में पित्ताशय की ओपनिंग या स्वयं सिस्टिक डक्ट को ही अवरूद्ध कर सकती हैं। पित्ताशय की पथरियों में आमतौर पर तलछट भी शामिल होती है। यदि स्कारिंग बड़े पैमाने पर है, तो संभवत: कैल्शियम पित्ताशय की दीवारों पर संचित हो सकता है, जिसके कारण वे कठोर हो जाती हैं (जिसे पोर्सेलिन पित्ताशय कहा जाता है)।

कोलेसिस्टाइटिस के लक्षण

पित्ताशय पर हमला, फिर चाहे वह एक्यूट हो या क्रोनिक कोलेसिस्टाइटिस, की शुरुआत दर्द के तौर पर होती है।

एक्यूट कोलेसिस्टाइटिस

एक्यूट कोलेसिस्टाइटिस का दर्द बिलियरी कॉलिक (पित्ताशय की पथरियों के कारण होने वाला दर्द) के समान होता है, लेकिन अधिक गंभीर तथा लंबे समय तक बना रहता है। दर्द 15 से 60 मिनट में बढ़कर अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच जाता है और वह लगातार बना रहता है। आमतौर पर यह पेट के ऊपरी दाएं हिस्से में होता है। दर्द असहनीय हो जाता है। जब डॉक्टर द्वारा पेट के ऊपरी दाएं भाग को दबाया जाता है, तो अधिकांश लोग बहुत ही तेज दर्द को महसूस करते हैं। गहरी सांस लेने पर दर्द बदतर हो सकता है। अक्सर दर्द दाएं कंधे के ब्लेड के निचले हिस्से तक आता-जाता रहता है। मतली और उलटी करना आम होता है।

कुछ ही घंटों में, पेट की दांई ओर की मांसपेशियाँ कठोर हो जाती हैं। एक्यूट कोलेसिस्टाइटिस से पीड़ित एक तिहाई लोगों को बुखार होता है। बुखार के धीरे-धीर बढ़ कर 100.4° F (38° C) होने का रूझान रहता है तथा संभवत: इसके साथ ठंड लग सकती है।

वृद्ध लोगों में, कोलेसिस्टाइटिस का पहला और प्रमुख लक्षण अस्पष्ट होता है। उदाहरण के तौर पर, वृद्ध लोगों को भूख नहीं लग सकती है, वे थका हुआ या कमज़ोर महसूस कर सकते हैं, या उनको उलटी हो सकती है। उनको बुखार हो सकता है।

खास तौर पर, हमले का असर 2 से 3 दिन में कम हो जाता है, और सप्ताह भर में पूरी तरह से ठीक हो जाता है। यदि एक्यूट एपिसोड बना रहता है, तो यह गंभीर जटिलता का संकेत हो सकता है। लगातार बढ़ता हुआ दर्द, तेज बुखार तथा ठंड लगना पित्ताशय में मवाद (फोड़ा) या फटने (परफ़ोरेशन) का संकेत हो सकता है। फोड़े गैंग्रीन के कारण होते है, जिसकी उत्पत्ति ऊतक के नष्ट होने की वजह से होती है। बड़ी पथरी के कारण पित्ताशय की दीवार फट सकती है और यह आंत में जाकर उसे अवरूद्ध कर सकता है। ऐसे अवरोध के कारण पेट दर्द तथा ब्लॉटिंग हो सकती है।

यदि लोगों में पीलिया विकसित हो जाता है या उनको गहरे रंग का पेशाब आता है या हल्के रंग का मल त्याग होता है, तो शायद पथरी के कारण सामान्य पित्त नली अवरूद्ध हो सकती है जिसके कारण लिवर में पित्त एकत्रित होता रहता है (कोलेस्टेसिस)।

अग्नाशय की सूजन (पैंक्रियाटाइटिस) विकसित हो सकती है। वेटर के एम्पुला को पथरी द्वारा अवरोधित किए जाने के कारण यह होता है (जहां पर सामान्य पित्त नली तथा अग्नाशय नली एक दूसरे से जुड़ते हैं)।

एकैल्कुलस कोलेसिस्टाइटिस

एकैल्कुलस कोलेसिस्टाइटिस के कारण खास तौर पर ऐसे लोगों में पेट के ऊपरी भाग में अचानक, असहनीय दर्द होता है, जिनको इससे पहले कोई लक्षण या पित्ताशय विकार का प्रमाण नहीं था (बिना पित्ताशय पथरियों के बिलियरी दर्द देखें)। अक्सर सूजन बहुत गंभीर होती है तथा इसके कारण गैंग्रीन हो सकती है या पित्ताशय फट सकता है।

एक्यूट कोलेसिस्टाइटिस से पीड़ित लोग बहुत बीमार रहते हैं। उदाहरण के लिए, वे किसी अन्य कारण से गहन देखभाल यूनिट में भर्ती हो सकते हैं तथा उनको अनेक अन्य लक्षण हो सकते हैं। साथ ही, क्योंकि ये लोग बहुत बीमार होते हैं, इसलिए वे स्पष्ट रूप से संचार भी नहीं कर सकते हैं। इन कारणों से, एकैल्कुलस कोलेसिस्टाइटिस को शुरु-शुरु में नजरअंदाज किया जा सकता है।

एकमात्र लक्षण सूजा हुआ (विस्तारित), कोमल पेट या अज्ञात कारण की वजह से बुखार हो सकता है। यदि उपचार नहीं किया जाता है, तो एकैल्कुलस कोलेसिस्टाइटिस के कारण 65% लोगों की मौत हो जाती है।

क्रोनिक कोलेसिस्टाइटिस

क्रोनिक कोलेसिस्टाइटिस से पीड़ित लोगों में दर्द के हमले बार-बार होते हैं। पित्ताशय के ऊपर, पेट के ऊपरी हिस्से को छूने पर यह कोमल नज़र आता है। एक्यूट कोलेसिस्टाइटिस की तुलना में, क्रोनिक कोलेसिस्टाइटिस से पीड़ित लोगों में बुखार बहुत कम बार होता है। एक्यूट कोलेसिस्टाइटिस की तुलना में दर्द कम गंभीर होता है तथा यह लंबे समय तक नहीं बना रहता है।

कोलेसिस्टाइटिस का निदान

  • अल्ट्रासोनोग्राफ़ी और कभी-कभी अन्य इमेजिंग परीक्षण

डॉक्टर कोलेसिस्टाइटिस का निदान मुख्य रूप से लक्षणों तथा इमेजिंग परीक्षणों के परिणामों के आधार पर करते हैं।

पित्ताशय में पथरियों का पता लगाने के लिए अल्ट्रासोनोग्राफ़ी सबसे अच्छा तरीका होता है। अल्ट्रासोनोग्राफ़ी में पित्ताशय के आसपास तरल या इसकी दीवारों के मोटा होने का भी पता लगाया जा सकता है, जो कि एक्यूट कोलेसिस्टाइटिस में खास तौर पर देखने को मिलती हैं। अक्सर, जब अल्ट्रासाउंड प्रोब को ऊपरी पेट पर पित्ताशय के ऊपर घुमाया जाता है, तो लोग कोमलता की रिपोर्ट करते हैं।

कोलेस्सिंटीग्राफ़ी, एक अन्य इमेजिंग परीक्षण, तब उपयोगी होता है जब एक्यूट कोलेसिस्टाइटिस का निदान करना मुश्किल होता है। इस परीक्षण के लिए, एक रेडियोएक्टिव तत्व (रेडियोन्यूक्लाइड) को अंत: शिरा रूप से इंजेक्ट किया जाता है। गामा कैमरे से दी गई रेडियोएक्टिविटी का पता लगाया जाता है, और छवि तैयार करने के लिए कंप्यूटर का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार, लिवर से बिलियरी डक्ट तक रेडियोन्यूक्लाइड की मूवमेंट को फ़ॉलो किया जा सकता है। लिवर, पित्त नलियों, पित्ताशय तथा छोटी आंत के ऊपरी हिस्से की छवियों को लिया जाता है। यदि रेडियोन्यूक्लाइड पित्ताशय को नहीं भरता है, तो संभवत: पित्ताशय पथरी के कारण सिस्टिक डक्ट अवरूद्ध हो सकती है। जब डॉक्टर को ऐकैल्कुलस कोलेसिस्टाइटिस का संदेह होता है तो कोलेस्सिंटीग्राफ़ी भी उपयोगी साबित होती है।

लिवर कितने अच्छे से काम कर रहा है तथा क्या यह क्षतिग्रस्त हो गया है, ये देखने के लिए लिवर परीक्षण किए जाते हैं। लेकिन, इन परीक्षणों से निदान की पुष्टि नहीं हो पाती है क्योंकि परिणाम अक्सर सामान्य होते हैं या थोड़े से उच्च होते हैं, जब तक कि पित्त नली अवरूद्ध न हो।

अन्य रक्त परीक्षण भी किए जाते हैं। उदाहरण के लिए, सफेद रक्त कोशिकाओं की संख्या का माप किया जाता है। सफेद रक्त कोशिकाओं की उच्च संख्या सूजन, फोड़े, गैंग्रीन या फटे हुए पित्ताशय का संकेत दे सकती है।

पेट की कंप्यूटेड टोमोग्राफ़ी (computerized tomography, CT) से कोलेसिस्टाइटिस की कुछ जटिलताओं का पता लग सकता है, जैसे पैंक्रियाटाइटिस या पित्ताशय का फटना।

कोलेसिस्टाइटिस का उपचार

  • पित्ताशय को हटाने के लिए सर्जरी (कोलेसिस्टेक्टॉमी)

अस्पताल में भर्ती होना

एक्यूट या क्रोनिक कोलेसिस्टाइटिस से पीड़ित लोगों को अस्पताल में भर्ती करने की ज़रूरत होती है। उन्हें खाने-पीने की अनुमति नहीं दी जाती है और उन्हें नसों द्वारा तरल तथा इलेक्ट्रोलाइट दिए जाते हैं। डॉक्टर नाक के ज़रिए पेट में एक ट्यूब डाल सकता है, ताकि पेट को खाली रखने के लिए सक्शनिंग का प्रयोग किया जा सके तथा आंत में तरल के संचित होने को रोका जा सके यदि आंत अवरूद्ध है तथा पित्ताशय को विश्राम मिल सके।

आमतौर पर, लोगों को नसों द्वारा एंटीबायोटिक्स दी जाती है (क्योंकि संक्रमण संभव हो सकता है) तथा साथ ही दर्द से राहत की दवाएं भी दी जाती हैं।

कोलेसिस्टेक्टॉमी

निम्नलिखित स्थितियों में पित्ताशय को लक्षणों के शुरु होने के 24 से 48 घंटों के भीतर हटा दिया जाता है:

  • एक्यूट कोलेसिस्टाइटिस की पुष्टि हो चुकी है तथा सर्जरी का जोखिम कम है।

  • लोग वृद्ध हैं तथा उनको डायबिटीज है, क्योंकि ऐसे लोगों में कोलेसिस्टाइटिस के कारण संक्रमण होने की संभावना अधिक होती है।

  • फोड़े, गैंग्रीन या पित्ताशय के फटने जैसी जटिलता होने की संभावना नज़र आती है।

  • लोगों को ऐकैल्कुलस कोलेसिस्टाइटिस है।

यदि आवश्यक होता है, तो सर्जरी को 6 सप्ताह या अधिक के लिए टाला जा सकता है जब तक हमला कमज़ोर पड़ जाता है। अगर लोगों को ऐसा विकार है जिसके कारण सर्जरी बहुत जोखिम भरी हो जाती है (जैसे कि हृदय, फेफड़े, किडनी का गंभीर रोग या गंभीर लिवर विकार), तो सर्जरी को तब तक टाला जाता है जब तक कि उचित इलाज से उस विकार को नियंत्रित नहीं कर लिया जाता। यदि सर्जरी में देरी करने की आवश्यकता पड़ती है या पूरी तरह से बचा जाता है, तो पित्ताशय को ड्रेन करने की ज़रूरत पड़ती है ताकि संक्रमण के उपचार में सहायता मिल सके तथा उसके और आगे फैलने की रोकथाम की जा सके। पेट की दीवार से पित्ताशय तक ट्यूब को लगाकर ड्रेनेज किया जा सकता है, जिससे तरल शरीर के बाहर ड्रेन हो जाता है। वैकल्पिक रूप से, एंडोस्कोपी अल्ट्रासाउंड (endoscopic ultrasound, EUS) द्वारा निर्देशित एंडोस्कोपी के दौरान ड्रेनेज ट्यूब को शरीर के अंदर से लगाया जा सकता है। EUS में, एंडोस्कोप जिसमें एक छोटी अल्ट्रासाउंड डिवाइस इसके सिरे पल लगी रहती है, को मुंह से पेट में और फिर छोटी आंत में ले जाया जाता है। अल्ट्रासाउंड छवियों से डॉक्टर को पित्ताशय और छोटी आंत या पित्ताशय या पेट के बीच में ड्रेन को लगाने में मार्गदर्शन प्राप्त होता है।

क्रोनिक कोलेसिस्टाइटिस में, आमतौर पर मौजूदा हमलों के असर के कम होने के बाद, पित्ताशय को हटा दिया जाता है।

आमतौर पर लचीली देखने वाली ट्यूब जिसे लेपैरोस्कोप कहा जाता है, का इस्तेमाल करके पित्ताशय को सर्जरी करके निकाल लिया जाता है (कोलेसिस्टेक्टॉमी)। पेट में छोटे चीरे लगाने के बाद, इन चीरों के माध्यम से लेपैरोस्कोप तथा सर्जिकल उपकरण को अंदर डाला जाता है। डॉक्टर पित्ताशय को हटाने के लिए उपकरण का इस्तेमाल करते हैं। लेपैरोस्कोप में छोटा कैमरा होता है, जिससे सर्जन शरीर के अंदर की चीजों को देख पाता है।

सर्जरी के बाद दर्द

कुछ लोगों में पित्ताशय (और पथरियों) को हटाने के बाद भी नया या बार-बार होने वाला दर्द अनुभव किया जाता है जो पित्ताशय हमलों की तरह महसूस होता है। दस्त भी हो सकते हैं। डॉक्टर कभी-कभी इसे पोस्टकोलेसिस्टेक्टॉमी सिंड्रोम कहते हैं। इस सिंड्रोम के कारण का पता नहीं है, लेकिन कुछ लोगों में, यह ऑड्डी के स्फिंक्टर (आम बाइल तथा पैंक्रियाटिक डक्ट्स तथा छोटी आंत के बीच में रिंग के आकार की मांसपेशी) की दुष्क्रिया के कारण होता है। मांसपेशी की दुष्क्रिया के कारण पित्त का प्रवाह और नलिकाओं से पैंक्रियाटिक स्राव का प्रवाह धीमा हो सकता है और इस प्रकार नलिकाओं में दबाव बढ़ सकता है, और दर्द हो सकता है। पित्ताशय की छोटी पथरियों के कारण भी दर्द हो सकता है जो पित्ताशय को हटाने के बाद नलिकाओं में बनी रहती हैं। अधिक सामान्य रूप से, कारण कोई अन्य, असम्बद्ध समस्या होती है, जैसे इरिटेबल बॉवेल सिंड्रोम या पेप्टिक अल्सर रोग

एंडोस्कोपिक रेट्रोग्रेड कोलेंजियोपैनक्रिएटोग्राफ़ी (Endoscopic retrograde cholangiopancreatography, ERCP) या कोलेसिन्टोग्राफ़ी (लिवर तथा पित्ताशय की इमेजिंग देखें) आवश्यक हो सकती है ताकि यह तय किया जा सके कि क्या पीड़ा का कारण बढ़ा हुआ प्रेशर है। ERCP के लिए, मुंह से एक लचीली देखने वाली ट्यूब को आंत में डाला जाता है, तथा उस ट्यूब के ज़रिए प्रेशर का माप करने वाले डिवाइस को अंदर डाला जाता है। अगर प्रेशर बढ़ा हुआ है, तो सर्जिकल उपकरण ट्यूब के ज़रिए डाले जाते हैं आर उनका इस्तेमाल काटने के लिए किया जाता है ताकि स्फिंक्टर ऑफ़ ओड्डी को चौड़ा किया जा सके। इस प्रक्रिया (जिसे एंडोस्कोपिक स्फिंक्टरोटॉमी कहा जाता है) से उस समय लक्षणों में राहत मिल सकती है जब दर्द स्फिंक्टर की दुष्क्रिया के कारण होता है।

अधिक जानकारी

निम्नलिखित अंग्रेजी भाषा के संसाधन उपयोगी हो सकते हैं। कृपया ध्यान दें कि इन संसाधनों की सामग्री के लिए मैन्युअल ज़िम्मेदार नहीं है।

  1. इंटरनेशनल फाउंडेशन फ़ॉर गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल डिसऑर्डर्स (IFFGD): एक विश्वसनीय स्रोत जो गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल विकार से पीड़ित लोगों की अपने स्वास्थ्य की देखरेख करने में सहायता करता है।

  2. नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ़ डायबिटीज एण्ड डाइजेस्टिव एण्ड किडनी डिजीज़ (NIDDK): पाचन प्रणाली किस तरह से काम करती है, से संबंधित व्यापक जानकारी तथा संबंधित विषयों जैसे शोध और उपचार विकल्पों के लिंक।

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