कोलेस्टेसिस

इनके द्वाराDanielle Tholey, MD, Sidney Kimmel Medical College at Thomas Jefferson University
द्वारा समीक्षा की गईMinhhuyen Nguyen, MD, Fox Chase Cancer Center, Temple University
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया संशोधित अग॰ २०२५
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कोलेस्टेसिस पित्त प्रवाह में कमी कर देता है या रोक देता है। पित्त लिवर द्वारा निर्मित पाचक तरल होता है।

  • लिवर, पित्त नलिका या अग्नाशय के विकारों से कोलेस्टेसिस हो सकता है।

  • हो सकता है त्वचा और आंखों के सफ़ेद रंग पीला दिखे, त्वचा में खुजली हो, पेशाब का रंग गहरा और मल का रंग हल्का हो और उससे बदबू आ सकती है।

  • कारण की पहचान के लिए लैब टेस्ट और अक्सर इमेजिंग परीक्षण की ज़रूरत पड़ती है।

  • उपचार कारण पर निर्भर करता है, लेकिन दवाइयां खुजली कम करने में मदद कर सकती हैं।

(लिवर और पित्ताशय का विवरण, पित्ताशय और पित्ताशय मार्ग, और लिवर संबंधी बीमारी का विवरण भी देखें।)

कोलेस्टेसिस के साथ, लिवर कोशिकाओं (जो पित्त का उत्पादन करती हैं) और ड्यूडेनम (छोटी आंत का पहला खंड) के बीच पित्त का प्रवाह किसी बिंदु पर खराब हो जाता है। जब पित्त का प्रवाह बंद हो जाता है, तो पिगमेंट बिलीरुबिन (पुरानी या क्षतिग्रस्त लाल रक्त कोशिकाओं के टूटने पर बनने वाला अपशिष्ट उत्पाद) रक्तप्रवाह में समा जाता है और जमा होता है। सामान्यतया बिलीरुबिन लिवर में पित्त के साथ मिल जाता है, पित्त नलिकाओं के माध्यम से पाचन तंत्र में जाता है और शरीर से बाहर निकल जाता है। ज़्यादातर बिलीरुबिन मल में निकलता है, लेकिन इसकी थोड़ी मात्रा पेशाब के ज़रिए भी निकलती है।

लिवर और पित्ताशय का दृश्य

कोलेस्टेसिस के कारण

कोलेस्टेसिस के कारणों को दो समूहों में बांटा जाता है: एक वे जो लिवर के भीतर पैदा होते हैं और दूसरे जो लिवर के बाहर उत्पन्न होते हैं।

लिवर के अंदर

इसके कारणों में एक्यूट हैपेटाइटिस, अल्कोहल-संबंधी लिवर रोग, बाइल डक्ट में सूजन और घाव के साथ प्राइमरी बाइलरी कोलेंजाइटिस, वायरल हैपेटाइटिस B या C (बाइल डक्ट की सूजन और घाव से भी) के कारण सिरोसिस (घाव, जो लिवर की संरचना को विकृत और उसकी कार्य क्षमता को कम कर देते हैं), कुछ खास दवाइयां (उदाहरण के लिए, एमोक्सीसिलिन/क्लॉव्युलेनेट, क्लोरप्रोमाज़िन, एज़ेथिओप्रीन और मौखिक गर्भनिरोधक), गर्भावस्था के दौरान पित्त के बहाव पर हार्मोन के प्रभाव (गर्भावस्था की कोलेस्टेसिस नामक स्थिति) और लिवर में फैल चुका कैंसर शामिल हैं।

लिवर के बाहर

कारणों में वे सभी स्थितियां शामिल हैं, जो बाइल डक्ट को रोक देती हैं (वे ट्यूब्स, जो बाइल को लिवर से आंतों तक ले जाती हैं)। इसके कारणों में बाइल डक्ट में पथरी, पित्त नलिकाओं का सिकुड़ जाना (संकुचन), बाइल डक्ट का कैंसर, अग्नाशय का कैंसर और अग्नाशय की सूजन (पैंक्रियाटाइटिस) शामिल हैं।

कोलेस्टेसिस के लक्षण

पीलिया, गहरे रंग का पेशाब, हल्के रंग का मल, तथा पूरे शरीर में खुजली कोलेस्टेसिस के विशिष्ट लक्षण हैं। पीलिया में त्वचा और आंखों का रंग पीला हो जाता है इसका करण त्वचा में बहुत ज़्यादा मात्रा में जमा होने वाला बिलीरुबिन होता है और गहरे रंग का पेशाब अधिक मात्रा में किडनी द्वारा उत्सर्जित होने वाली बिलीरुबिन के कारण होता है। त्वचा में खुजली होती है, संभवतः ऐसा इसलिए होता है क्योंकि बाइल के अवयव त्वचा में जमा हो जाते हैं। खुजाने से त्वचा को क्षति हो सकती है। मल का रंग हल्का हो सकता है क्योंकि बिलीरुबिन का आंत में प्रवेश अवरुद्ध हो जाता है और मल के ज़रिए शरीर से बाहर निकलने से रोक दिया जाता है। हो सकता है मल में बहुत ज़्यादा मात्रा में फैट हो (यह एक स्थिति है जो स्टीटोरिया कहलाती है) क्योंकि बाइल भोजन की वसा को पचाने में मदद करने के लिए आंत में प्रवेश नहीं कर पाता है। फैटयुक्त मल बदबूदार हो सकता है।

आंतों में पित्त की कमी का मतलब कैल्शियम और विटामिन D खराब रूप से अवशोषित होना भी है। अगर कोलेस्टेसिस बना ही रहता है, तो इन पोषक तत्वों की कमी होने से हड्डी के ऊतक क्षतिग्रस्त हो सकते है। विटामिन K, जो रक्त के थक्के जमने के लिए ज़रूरी हैं, इसे भी आंतों अच्छे से अवशोषित नहीं करती है, जिससे आसानी से खून बहने की प्रवृत्ति बन जाती है।

कोलेस्टेसिस के कारण लंबे समय तक रहने वाला पीलिया से त्वचा का रंग कभी-कभी "मटमैला" हो जाता है और त्वचा में पीले चर्बीयुक्त धब्बे जमा हो जाते हैं। किसी व्यक्ति में पेट दर्द, भूख की कमी, उल्टी या बुखार जैसे अन्य लक्षण हैं या नहीं कोलेस्टेसिस के कारणों पर निर्भर करता है।

कोलेस्टेसिस का निदान

  • रक्त की जाँच

  • अगर रक्त की जांच में गड़बड़ी मिलती है, तो आगे जांच के लिए इमेजिंग टेस्ट करवाया जाता है, जो आमतौर पर अल्ट्रासाउंड होता है

  • कभी-कभी लिवर बायोप्सी

डॉक्टर को पीलिया से पीड़ित लोगों में कोलेस्टेसिस का संदेह होता है और वे (लक्षणों और शारीरिक जांच के परिणामों के आधार पर) यह निर्धारित करने का प्रयास करते हैं कि कारण लिवर के अंदर है या बाहर।

अगर हाल ही में ऐसी दवाओं का इस्तेमाल हुआ है जिससे कोलेस्टेसिस हो सकता है, तो इसका कारण लिवर के अंदर माना जाता है। त्वचा में दिखाई देने वाली छोटी मकड़ी जैसी रक्त वाहिकाएं (जिन्हें स्पाइडर एंजियोमास कहते हैं), बढ़ी हुई स्प्लीन और पेट के अंदर तरल का जमना (एसाइटिस) जो लिवर की क्रोनिक बीमारी के लक्षण हैं, इसका भी करण लिवर के भीतर बताया जाता हैं।

लिवर के बाहर के कारण का बताने वाले निष्कर्षों में, कुछ किस्म का पेट दर्द (जैसे पेट के ऊपरी दाहिने हिस्से में रुक-रुक कर दर्द और कभी-कभी दाहिने कंधे में भी) और पित्ताशय में वृद्धि (शारीरिक जांच के दौरान महसूस किया गया या इमेजिंग स्टडी से पता चला) शामिल हैं।

कुछ लक्षण (जैसे भूख की कमी, मितली और उल्टी) यह नहीं बताते कि इसका कारण लिवर के अंदर है या बाहर।

आमतौर पर 2 एंज़ाइम (एल्केलाइन फॉस्फेटेज और गामा-ग्लूटामिल ट्रांसपेप्टिडेज) के स्तर मापने के लिए पर रक्त की जांच की जाती है जो कोलेस्टेसिस वाले लोगों में बहुत अधिक पाए जाते हैं। हालांकि, अगर एल्केलाइन फॉस्फेटेज का स्तर बहुत ज़्यादा है लेकिन गामा-ग्लूटामाइल ट्रांसपेप्टिडेज़ का स्तर सामान्य है, तो एल्केलाइन फॉस्फेटेज के ज़्यादा होने का कारण संभवतया कोलेस्टेसिस नहीं होता है। बिलीरुबिन के स्तर को मापने वाले रक्त परीक्षण से कोलेस्टेसिस की गंभीरता का पता चलता है, पर इसके कारण का सुराग नहीं मिलता है।

अगर रक्त की जांच के नतीजे असामान्य हों, तो लगभग हमेशा एक इमेजिंग अध्ययन किया जाता है, जो आमतौर पर अल्ट्रासाउंड होती है। अल्ट्रासाउंड के साथ-साथ या उसकी जगह कभी-कभी कंप्यूटेड टोमोग्राफ़ी (CT) या मैग्नेटिक रीसोनेंस इमेजिंग (MRI) भी की जा सकती है। अगर इसका कारण लिवर के अंदर लगता है, तो लिवर की बायोप्सी की जा सकती है और आमतौर पर निदान स्थापित किया जाता है।

अगर इसका कारण पित्त नलिकाओं में अवरोध है तो आमतौर पर इन नलिकाओं की अधिक सटीक तस्वीरें लेना ज़रूरी होता है। आमतौर पर निम्न में से कोई एक किया जाता है:

  • एंडोस्कोपिक रेट्रोग्रेड कोलेंजियोपैनक्रिएटोग्राफ़ी (Endoscopic retrograde cholangiopancreatography, ERCP): एक लचीली देखने वाली नली (एंडोस्कोप) मुंह के ज़रिए छोटी आंत में डाली जाती है और एक रेडियोपैक कंट्रास्ट एजेंट (जो एक्स-रे पर देखा जा सकता है) नली के माध्यम से पित्त और अग्नाशय के नलिकाओं में इंजेक्ट की जाती है। फिर एक्स-रे लिए जाते हैं।

  • मैग्नेटिक रीसोनेंस कोलेंजियोपैनक्रिएटोग्राफ़ी (Magnetic resonance cholangiopancreatography, MRCP): MRCP पित्त और अग्नाशय के नलिकाओं का MRI है, जिसमें विशेष तकनीकें हैं जिनका इस्तेमाल नलिकाओं में तरल को चमकदार और उसके आसपास के ऊतकों को काला दिखाने के लिए किया जाता है।

  • एंडोस्कोपिक अल्ट्रासाउंड: एक लचीली देखने वाली नली (एंडोस्कोप) को मुंह के माध्यम से और छोटी आंत में डाली गई अल्ट्रासाउंड प्रोब के माध्यम से इमेज प्राप्त की जाती हैं।

कोलेस्टेसिस का इलाज

  • पित्त नलिकाओं में रुकावट, सर्जरी या एंडोस्कोपी

  • लिवर में अवरोध के लिए, कारण के आधार पर विभिन्न इलाज

  • खुजली के लिए, कोलेस्टाइरामीन

पित्त नलिकाओं में अवरोध का इलाज आमतौर पर सर्जरी या एंडोस्कोपी (सर्जिकल उपकरणों के साथ लचीली देखने वाली नली का इस्तेमाल करके) से किया जा सकता है।

लिवर में अवरोध का इलाज उसके कारण के आधार पर विभिन्न तरीकों से किया जा सकता है। अगर किसी दवाई के कारण ऐसा होता है, तो डॉक्टर उस दवा का इस्तेमाल बंद करवा देते हैं। अगर इसका करण एक्यूट हैपेटाइटिस है, तो जब हैपेटाइटिस अपना कोर्स पूरा कर लेता है तो आमतौर पर कोलेस्टेसिस और पीलिया खत्म हो जाते हैं। कोलेस्टेसिस से पीड़ित लोगों को सलाह दी जाती है कि वे लिवर के लिए विषाक्त किसी भी पदार्थ, जैसे अल्कोहल और कुछ दवाओं का सेवन करने से बचें या उन्हें पूरी तरह से बंद कर दें।

खुजली का इलाज करने के लिए मुंह से ली जाने वाली कोलेस्टाइरामीन का प्रयोग किया जा सकता है। यह दवाई आंत में मौजूद बाइल के कुछ हिस्सों को पकड़ लेती है, जिससे वे दोबारा अवशोषित होकर त्वचा को नुकसान या खुजली नहीं कर पाते।

जब तक लिवर गंभीर रूप से क्षतिग्रस्त ना हो जाए, विटामिन K लेने से रक्त के थक्के के मामले में सुधार हो सकता है।

अगर कोलेस्टेसिस बनी रहती है तो अक्सर कैल्शियम और विटामिन D सप्लीमेंट ली जाती है, लेकिन यह हड्डी के ऊतकों के नुकसान को रोकने में बहुत कारगर नहीं होती है।

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