आँख के विकारों के लिए परीक्षण

इनके द्वाराLeila M. Khazaeni, MD, Loma Linda University School of Medicine
द्वारा समीक्षा की गईSunir J. Garg, MD, FACS, Thomas Jefferson University
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया संशोधित मार्च २०२५
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आँख की समस्या की पुष्टि करने या आँख के किसी विकार की सीमा या गंभीरता निर्धारित करने के लिए विविध प्रकार के परीक्षण किए जा सकते हैं। प्रत्येक आँख की अलग-अलग जाँच की जाती है।

आँख के अंदर का दृश्य

एंजियोग्राफ़ी

आम तौर से, एंजियोग्राफ़ी में रक्त वाहिकाओं में डाई इंजेक्ट की जाती है ताकि उन्हें इमेजिंग परीक्षण के समय अधिक दर्शनीय बनाया जा सके। हालांकि, आँख की एंजियोग्राफ़ी में, डाई का उपयोग रक्त वाहिकाओं को उस समय अधिक दर्शनीय बनाने के लिए किया जाता है जब डॉक्टर उनकी प्रत्यक्ष रूप से जाँच करते हैं या तस्वीरें लेते हैं।

फ़्लोरोसेइन एंजियोग्राफ़ी डॉक्टर को आँख के पिछवाड़े में स्थित रक्त वाहिकाओं को स्पष्ट रूप से देखने का अवसर देती है। नीली रोशनी में दिखने वाली एक फ्लोरेसेंट डाई व्यक्ति की बांह की एक शिरा में इंजेक्ट की जाती है। डाई व्यक्ति की रक्त की धारा में संचरित होती है, जिसमें रेटिना की रक्त वाहिकाएं शामिल हैं। डाई इंजेक्ट करने के थोड़ी देर बाद, रेटिना, कोरॉयड, ऑप्टिक डिस्क, परितारिका, या इन सबके संयोजन की तेजी से और लगातार तस्वीरें ली जाती हैं। रक्त वाहिकाओं के अंदर डाई चमकती है, जिससे वाहिकाएं अलग नज़र आती हैं।

फ़्लोरोसेइन एंजियोग्राफ़ी मैक्युलर डीजनरेशन, रेटिना की अवरुद्ध रक्त वाहिकाओं, और डायबिटिक रेटिनोपैथी के निदान में खास तौर से उपयोगी है। इस प्रकार की एंजियोग्राफ़ी का उपयोग उन लोगों का आकलन करने के लिए भी किया जाता है जिन्हें रेटिना पर लेज़र प्रक्रियाएं करने की जरूरत पड़ सकती है।

इंडोसायानीन ग्रीन एंजियोग्राफ़ी डॉक्टरों को रेटिना और कोरॉयड की रक्त वाहिकाओं को देखने का अवसर देती है। फ़्लोरोसेइन एंजियोग्राफी की तरह, एक शिरा में एक फ्लोरेसेंट डाई इंजेक्ट की जाती है। इस प्रकार की एंजियोग्राफ़ी डॉक्टरों को कोरॉयड की रक्त वाहिकाओं का विवरण फ़्लोरोसेइन एंजियोग्राफी से अधिक बारीकी से देती है। इंडोसायानीन ग्रीन एंजियोग्राफ़ी का उपयोग मैक्युलर डीजनरेशन को दर्शाने और आँख में नई रक्त वाहिकाओं के विकास का पता लगाने के लिए किया जाता है।

इलेक्ट्रोरिटनोग्राफी

इलेक्ट्रोरिटनोग्राफी डॉक्टर को प्रकाश के फ्लैशों के प्रति रेटिना की प्रतिक्रिया को माप कर रेटिना में प्रकाश-संवेदी कोशिकाओं (फोटोरिसेप्टर) के प्रकार्य की जाँच करने का अवसर देती है। आई ड्रॉप्स आँखों को सुन्न करती हैं और पुतली को चौड़ा करती हैं। फिर एक कॉंटैक्ट लेंस के रूप वाला रिकॉर्डिंग इलेक्ट्रोड कोर्निया पर, और एक और इलेक्ट्रोड को चेहरे की पास की त्वचा पर रखा जाता है। फिर आँखों को सहारा देकर खोला जाता है। कमरे में अंधेरा किया जाता है, और व्यक्ति एक चमकती रोशनी को टकटकी लगाकर देखता है। रोशनी के फ्लैशों की प्रतिक्रिया में रेटिना द्वारा उत्पन्न विद्युतीय गतिविधि को इलेक्ट्रोडों द्वारा रिकॉर्ड किया जाता है।

इलेक्ट्रोरेटिनोग्राफी रेटिनाइटिस पिगमेंटोज़ा जैसे रोगों के मूल्यांकन के लिए खास तौर से उपयोगी है, जिसमें फोटोरिसेप्टर प्रभावित होते हैं।

अल्ट्रासाउंड

आँख की जांच अल्ट्रासाउंड द्वारा की जा सकती है। एक प्रोब को बंद पलक के ऊपर सौम्यता से रखा जाता है, जो ध्वनि तरंगों को दर्द रहित ढंग से नेत्र गोलक पर से परावर्तित करता है। परावर्तित ध्वनि तरंगें आँख के अंदर की एक द्वि-आयामी छवि उत्पन्न करती हैं।

अल्ट्रासाउंड तब उपयोगी होता है जब ऑप्थेल्मोस्कोप या स्लिट लैंप आँख के अंदर धुंधलापन या किसी चीज के दृष्टि रेखा को अवरुद्ध करने के कारण रेटिना को नहीं देख पाता। अल्ट्रासाउंड का उपयोग असामान्य संरचनाओं, जैसे ट्यूमर या रेटिनल डिटैचमेंट, की प्रकृति निर्धारित करने के लिए किया जा सकता है। अल्ट्रासाउंड का उपयोग आँख को रक्त की आपूर्ति करने वाली वाहिकाओं की जांच करने (डॉपलर अल्ट्रासाउंड) और कॉर्निया की मोटाई निर्धारित करने (पैकिमेट्री) के लिए भी किया जा सकता है।

पैकीमेट्री

पैकीमेट्री (कोर्निया की मोटाई को मापना) अपवर्तक नेत्र सर्जरी में बहुत महत्वपूर्ण है, जैसे कि लेज़र इन सीटू केरैटोमिल्यूसिस (लेसिक) [LASIK, laser in situ keratomileusis]।

पैकीमेट्री आमतौर पर अल्ट्रासाउंड का उपयोग करके की जाती है। अल्ट्रासाउंड पैकीमेट्री में, आँख को ड्रॉप्स से सुन्न किया जाता है, और कोर्निया की सतह पर एक अल्ट्रासाउंड प्रोब को धीरे से रखा जाता है। इसके विपरीत, ऑप्टिकल पैकीमेट्री में आँखों को सुन्न करने वाली आई ड्रॉप्स की आवश्यकता नहीं होती, क्योंकि उपकरण आँख को छूते नहीं हैं।

ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी

ऑप्टिकल कोहेरेंस टोमोग्राफी (ओसीटी) [OCT, Optical coherence tomography] आँख के पिछवाड़े में स्थित संरचनाओं, जैसे कि ऑप्टिक नाड़ी, रेटिना, कोरॉयड, और विट्रियस ह्यूमर की हाई-रिजोल्यूशन तस्वीरें प्रदान करती है। रेटिना की सूजन की पहचान करने के लिए OCT का उपयोग किया जा सकता है। OCT अल्ट्रासाउंड के समान है लेकिन इसमें ध्वनि के बजाय प्रकाश का उपयोग किया जाता है।

डॉक्टर OCT का उपयोग रेटिना के विकारों को देखने के लिए करते हैं, जिनमें शामिल हैं, मैक्युलर डीजनरेशन, वे विकार जिनके कारण आँख में नई रक्त वाहिकाएं विकसित हो सकती हैं, और ग्लूकोमा

कंप्यूटेड टोमोग्राफ़ी (सीटी) [CT, computed tomography] और मैग्नेटिक रीसोनेंस इमेजिंग (एमआरआई) [MRI, magnetic resonance imaging]।

आँख के भीतर की संरचनाओं (ऑर्बिट) और आँख के चारों ओर स्थित हड्डीदार संरचना के बारे में विस्तृत जानकारी प्रदान करने के लिए कंप्यूटेड टोमोग्राफी और मैग्नेटिक रेज़ोनैंस इमेजिंग का उपयोग किया जा सकता है। इन तकनीकों का उपयोग आँखों की चोटों के मूल्यांकन के लिए किया जाता है, जैसे कि आँख में बाहरी वस्तु, ऑर्बिट और ऑप्टिक तंत्रिका के ट्यूमर और ऑप्टिक न्यूराइटिस का संदेह।

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