नेक्रोटाईज़िंग त्वचा संक्रमण, जिनमें नेक्रोटाईज़िंग सेल्युलाइटिस और नेक्रोटाईज़िंग फ़ैशाइटिस शामिल होते हैं, सेल्युलाइटिस के गंभीर रूप होते हैं। इन संक्रमणों से संक्रमित त्वचा और ऊतकों की मृत्यु (नेक्रोसिस) हो जाती है।
संक्रमित त्वचा लाल, छूने में हल्की गर्म और सूजी हुई होती है और त्वचा के नीचे गैस के बुलबुले बन सकते हैं।
व्यक्ति को आम तौर पर तेज़ दर्द होता है, वह बहुत अस्वस्थ महसूस करता है और उसे तेज़ बुखार होता है।
निदान डॉक्टर द्वारा मूल्यांकन, एक्स-रे और लैबोरेटरी टेस्ट पर आधारित होता है।
इसके इलाज में मृत त्वचा और ऊतकों को हटाना शामिल होता है, जिसके लिए कभी-कभी गहन सर्जरी और इंट्रावीनस एंटीबायोटिक्स देने के लिए की ज़रूरत पड़ती है।
(त्वचा के जीवाणु संक्रमणों का विवरण भी देखें।)
त्वचा के अधिकतर संक्रमणों के कारण त्वचा और आस-पास के ऊतक मृत नहीं होते हैं। लेकिन कभी-कभी, जीवाणु संक्रमणों के कारण संक्रमित स्थान पर मौजूद छोटी रक्त वाहिकाओं में रक्त के थक्के जम सकते हैं। क्लॉटिंग के कारण, इन वाहिकाओं पर निर्भर रहने वाला ऊतक रक्त की कमी से मृत हो जाता है। मृत ऊतक को नेक्रोटिक कहा जाता है। चूंकि रक्तधारा के ज़रिए यात्रा करने वाले शरीर के प्रतिरक्षा सैनिक (जैसे सफ़ेद रक्त कोशिकाएँ और एंटीबॉडीज) अब उस स्थान तक नहीं पहुंच पाते हैं, इसलिए संक्रमण तेज़ी से फैलता है और उसे नियंत्रित करना कठिन हो सकता है। ऐसे में उचित इलाज के बावजूद भी रोगी की मृत्यु हो सकती है।
त्वचा के कुछ नेक्रोटाईज़िंग संक्रमण त्वचा की गहराई में मांसपेशियों को ढकने वाले संयोजी ऊतक (फ़ैशिया) की सतह के सहारे-सहारे फैल जाते हैं; इस स्थिति को नेक्रोटाईज़िंग फ़ैशाइटिस कहा जाता है। त्वचा के अन्य नेक्रोटाईज़िंग संक्रमण त्वचा की बाहरी परतों में फैलते हैं और उन्हें नेक्रोटाईज़िंग सेल्युलाइटिस कहा जाता है। कई अलग-अलग बैक्टीरिया, जैसे स्ट्रेप्टोकोकस और क्लोस्ट्रीडिया, त्वचा के नेक्रोटाईज़िंग संक्रमण कर सकते हैं, पर कई लोगों में ये संक्रमण कई तरह के बैक्टीरिया द्वारा मिलकर किए जाते हैं। विशेष रूप से, स्ट्रेप्टोकोकी के कारण होने वाले त्वचा के नेक्रोटाईज़िंग संक्रमण को आम पत्रकारों ने “मांस-भक्षी रोग” का नाम दिया है, पर इसमें और अन्य नेक्रोटाईज़िंग संक्रमणों में अधिक अंतर नहीं है। गैस गैंग्रीन (जिसे क्लॉस्ट्रिजियल मायोनेक्रोसिस भी कहा जाता है), एक तरह का नेक्रोटाईज़िंग त्वचा संक्रमण होता है, जो मांसपेशियों और उनके आसपास के ऊतकों को प्रभावित करता है और आम तौर पर क्लॉस्ट्रिडिया के कारण होता है।
त्वचा के कुछ नेक्रोटाईज़िंग संक्रमण छेदी घावों या लैसरेशन से शुरू होते हैं, विशेष रूप से ऐसे घाव जो धूल और मलबे से दूषित हो गए हों। अन्य संक्रमण सर्जिकल चीरों में या स्वस्थ त्वचा में भी शुरू हो जाते हैं। कभी-कभी डायवर्टीकुलाइटिस, आंतों के परफ़ोरेशन या आंत के ट्यूमर से ग्रस्त लोगों में उदर की दीवार, जननांग वाले स्थान या जांघों में नेक्रोटाईज़िंग संक्रमण हो जाते हैं। ये संक्रमण तब होते हैं, जब कुछ बैक्टीरिया आंत से निकल भागते हैं और त्वचा तक फैल जाते हैं। बैक्टीरिया शुरुआत में उदर गुहा में फोड़ा (मवाद से भरा बंद स्थान) बना सकते हैं और सीधे बाहर त्वचा की ओर फैल सकते हैं या फिर वे रक्तधारा से होते हुए त्वचा और अन्य अंगों तक फैल सकते हैं। डायबिटीज़ ग्रस्त लोगों में त्वचा के नेक्रोटाईज़िंग संक्रमणों का विशेष जोखिम होता है।
त्वचा के नेक्रोटाईज़िंग संक्रमणों के लक्षण
त्वचा के नेक्रोटाईज़िंग संक्रमणों के लक्षण शुरुआत में सामान्य त्वचा संक्रमण, सेल्युलाइटिस की तरह ही होते हैं। त्वचा शुरुआत में पीली दिख सकती है पर वह जल्द से लाल या काँसे के रंग की हो जाती है और छूने में हल्की गर्म लगने लगती है व कभी-कभी उसमें सूजन भी आ जाती है। इसमें बहुत तेज़ दर्द होता है।
बाद में, त्वचा बैंगनी हो जाती है और अक्सर साथ में बड़े, फ़्लूड से भरे फफोले (बुली) भी बन जाते हैं। इन फफोलों से निकलने वाला फ़्लूड कत्थई, पनीला और कभी-कभी बदबूदार होता है। मृत त्वचा वाले भाग काले पड़ जाते हैं (गैंग्रीन)।
क्लॉस्ट्रिडिया और मिश्रित जीवाणुओं से होने वाले संक्रमणों सहित, कुछ प्रकार के नेक्रोटाईज़िंग त्वचा संक्रमणों में गैस बनती है। गैस से त्वचा के नीचे और कभी-कभी फफोलों के भीतर बुलबुले बन जाते हैं, जिस कारण त्वचा दबाने पर चटचटाती महसूस होती है। शुरुआत में संक्रमित भाग में बहुत तेज़ दर्द होता है, पर जब त्वचा मृत हो जाती है, तो तंत्रिकाएं काम करना बंद कर देती हैं और उस भाग में संवेदना ख़त्म हो जाती है। संक्रमण और बदतर होने पर मांसपेशियाँ प्रभावित हो सकती हैं।
व्यक्ति आम तौर पर बहुत अस्वस्थ महसूस करता है, उसकी हृदयगति तेज़ होती है और वह मानसिक ह्रास से ग्रस्त हो जाता है जो भ्रम से लेकर बेहोशी तक जा सकता है। बैक्टीरिया द्वारा उत्पन्न विषाक्त पदार्थों के कारण और संक्रमण पर शरीर की प्रतिक्रिया के कारण ब्लड प्रेशर घट सकता है (सेप्टिक शॉक)। लोगों में टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम हो सकता है।
त्वचा के नेक्रोटाईज़िंग संक्रमणों का निदान
एक डॉक्टर का मूल्यांकन
प्रयोगशाला परीक्षण
डॉक्टर त्वचा के नेक्रोटाईज़िंग संक्रमण के स्वरूप, विशेष रूप से त्वचा के नीचे गैस के बुलबुलों की उपस्थिति, के आधार पर इसका निदान करते हैं। एक्स-रे में भी त्वचा के नीचे गैस दिख सकती है।
ब्लड टेस्ट करने पर आम तौर पर यह पता चलता है कि संक्रमण से लड़ने के लिए सफ़ेद रक्त कोशिकाओं की संख्या बढ़ गई है (ल्यूकोसाइटोसिस)। संक्रमण के लिए जिम्मेदार बैक्टीरिया विशेष की पहचान रक्त या ऊतक के नमूनों की लैबोरेटरी द्वारा विश्लेषण (कल्चर) से की जाती है। हालांकि, डॉक्टर लैबोरेटरी टेस्ट के परिणाम मिलने से पहले ही इलाज शुरू कर देते हैं।
त्वचा के नेक्रोटाईज़िंग संक्रमणों का इलाज
सर्जरी से मृत ऊतक निकालना
एंटीबायोटिक्स
अगर ज़रूरी हो, तो अंग काटना
नेक्रोटाईज़िंग फ़ैशाइटिस और गैस गैंग्रीन का इलाज मृत ऊतक को सर्जरी से निकालकर और साथ में शिरा से (इंट्रावीनस) एंटीबायोटिक्स देकर किया जाता है। इसमें अक्सर त्वचा, ऊतक और मांसपेशी के बड़े हिस्से को निकालना ज़रूरी होता है और कुछ मामलों में, प्रभावित बांह या पैर को काटना भी पड़ सकता है (अंग काटना)।
लोगों को सर्जरी से पहले और बाद में इंट्रावीनस तरल की बड़ी मात्रा में ज़रूरत हो सकती है।
जिन लोगों में टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम भी हो जाता है उन्हें इंट्रावीनस इम्यून ग्लोबुलिन दिया जा सकता है।
नेक्रोटाईज़िंग त्वचा संक्रमणों का पूर्वानुमान
इसमें इलाज करवा रहे लगभग 20 से 30% लोगों की मृत्यु हो जाती है। इलाज नहीं करवाने वाले ज़्यादातर लोगों की मृत्यु हो जाती है।
अधिक उम्र वाले रोगी, जिनको कुछ दूसरी बीमारियाँ भी होती हैं और जिन लोगों में संक्रमण एडवांस स्टेज में पहुँच चुका होता है, उनके ठीक होने की संभावना बहुत ही कम होती है। निदान और इलाज में देरी से और सर्जरी द्वारा मृत ऊतक अपर्याप्त ढंग से निकालने से पूर्वानुमान बदतर हो जाता है।