लिवर का फ़ाइब्रोसिस

इनके द्वाराTae Hoon Lee, MD, Icahn School of Medicine at Mount Sinai
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया मार्च २०२२

फ़ाइब्रोसिस, लिवर में असामान्य रूप से बड़ी मात्रा में स्कार ऊतक बनने को कहा जाता है। ऐसा उस समय होता है जब लिवर क्षतिग्रस्त कोशिकाओं की मरम्मत तथा उनका प्रतिस्थापन करने की कोशिश करता है।

  • अनेक दशाओं के कारण लिवर क्षतिग्रस्त हो सकता है।

  • फ़ाइब्रोसिस द्वारा अपने आप में कोई लक्षण विकसित नहीं करता है, लेकिन गंभीर स्कारिंग के कारण सिरोसिस हो सकता है जिसकी वजह से लक्षण पैदा हो सकते हैं।

  • डॉक्टर अक्सर फ़ाइब्रोसिस का निदान कर सकते हैं और इसकी गंभीरता का अनुमान रक्त तथा इमेजिंग परीक्षणों के आधार पर कर सकते हैं, लेकिन कभी-कभी लिवर बायोप्सी की ज़रूरत पड़ती है।

  • उपचार में जब भी संभव हो अंतर्निहित दशा को सही करना शामिल होता है।

फ़ाइब्रोसिस और सिरोसिस कोई विशिष्ट विकार नहीं हैं। इसकी बजाए, ये लिवर को क्षति के अन्य कारणों के परिणामस्वरूप होते हैं।

फ़ाइब्रोसिस तब विकसित होता है जब लिवर बार-बार या निरन्तर क्षतिग्रस्त होता है। चोट की एकल घटना के बाद, यहां तक कि गंभीर ही क्यों न हो (जैसा गंभीर हैपेटाइटिस में होता है), आमतौर पर लिवर खुद को नई कोशिकाएं तैयार कर और उन्हें कनेक्टिव ऊतक के वेब साथ जोड़ (आंतरिक संरचना) कर मरम्मत करता है, जिसे लिवर कोशिकाओं की मृत्यु होने पर छोड़ दिया जाता है। लेकिन, यदि चोट बार बार या निरन्तर लगती है (जैसा कि क्रोनिक हैपेटाइटिस में होता है), तो लिवर कोशिकाएं क्षति की मरम्मत करने की कोशिश करती हैं, लेकिन इस प्रयास के परिणामस्वरूप स्कार ऊतक (फ़ाइब्रोसिस) बन जाते हैं। जब बाइल डक्ट्स में अवरोध के कारण ऐसा होता है, तो फ़ाइब्रोसिस बहुत तेजी से विकसित हो सकता है।

स्कार ऊतक लिवर कोशिकाओं को प्रतिस्थापित करता है, और लिवर कोशिकाओं के विपरीत, कोई कार्य नहीं करता है। स्कार ऊतक लिवर की आंतरिक संरचना को विकृत कर सकता है तथा लिवर में आने-जाने वाले रक्त के प्रवाह के साथ हस्तक्षेप कर सकता है, और लिवर कोशिकाओं में रक्त की आपूर्ति को सीमित कर सकता है। पर्याप्त रक्त के बिना, ये कोशिकाएं मर जाती हैं, तथा और अधिक स्कार ऊतक बन जाते हैं। साथ ही, आंत से लिवर तक रक्त को प्रवाहित करने वाली शिरा (पोर्टल शिरा) में रक्तचाप बढ़ जाता है—एक दशा जिसे पोर्टल हाइपरटेंशन कहा जाता है।

यदि कारण की पहचान शीघ्रतापूर्वक कर ली जाती है और उसे ठीक कर दिया जाता है, तो कभी-कभी फ़ाइब्रोसिस को रिवर्स किया जा सकता है। लेकिन, बार-बार या निरन्तर क्षति के महीनो या वर्षों के बाद, फ़ाइब्रोसिस विस्तृत तथा स्थाई बन जाता है। स्कार ऊतक पूरे लिवर में बैंड तैयार कर लेता है, और लिवर की आंतरिक संरचना को नष्ट कर देता है और अपने आप को जेनेरेट करने तथा काम करने की लिवर की योग्यता को विकृत कर देता है। इस प्रकार की गंभीर स्कारिंग को सिरोसिस कहा जाता है।

लिवर फ़ाइब्रोसिस के कारण

विभिन्न विकार और दवाएं बार-बार या निरन्तर लिवर को क्षति पहुंचा सकती हैं और इस प्रकार फ़ाइब्रोसिस का कारण बन सकती हैं (तालिका कुछ दशाएं और दवाएं जो लिवर के फ़ाइब्रोसिस का कारण बन सकती हैं देखें)।

अमेरिका में सर्वाधिक आम कारण

नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लिवर आमतौर पर उन लोगों में होता है जिनके शरीर का वज़न अधिक होता है, जिनको डायबिटीज है या जो प्री-डायबिटीज है, और/या जिनके रक्त में फैट (लिपिड) तथा कोलेस्ट्रोल के उच्च स्तर हैं। फैटी लिवर रोग के लिए जोखिम कारकों के इस संयोजन को अक्सर मेटाबोलिक सिंड्रोम कहा जाता है। हाल के वर्षों में, मेटाबोलिक सिंड्रोम जिसके कारण नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लिवर होता है, वह अमेरिका में अधिक से अधिक आम होता जा रहा है। पूरी दुनिया में, वायरल हैपेटाइटिस B (हैपेटाइटिस वायरस तालिका देखें) एक आम कारण है। कभी-कभी फ़ाइब्रोसिस का कारण ज्ञात नहीं होता है।

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लिवर फ़ाइब्रोसिस के लक्षण

अपने आप में फ़ाइब्रोसिस द्वारा कोई लक्षण नहीं होते हैं। लक्षण फ़ाइब्रोसिस करने वाले विकार के परिणामस्वरूप हो सकते हैं। साथ ही, यदि फ़ाइब्रोसिस में प्रगति होती है, तो सिरोसिस हो सकता है। सिरोसिस के कारण जटिलताएं (जैसे पोर्टल हाइरपटेंशन) पैदा हो सकती हैं, जिनके कारण लक्षण होते हैं।

लिवर फ़ाइब्रोसिस का निदान

  • एक डॉक्टर का मूल्यांकन

  • कभी-कभी रक्त परीक्षण, इमेजिंग परीक्षण या दोनो

  • कभी-कभी लिवर बायोप्सी

डॉक्टरों को फ़ाइब्रोसिस का संदेह तब होता है, जब लोगों को कोई ऐसा विकार होता है या वे ऐसी दवा लेते हैं, जिससे फ़ाइब्रोसिस हो सकता है या फिर जब लिवर की जांच करने के लिए किए जाने वाले टेस्ट में यह दिखाई देता है कि लिवर क्षतिग्रस्त है या ठीक से काम नहीं कर रहा है। निदान की पुष्टि के लिए परीक्षण किए जाते हैं, तथा यदि फ़ाइब्रोसिस मौजूद होता है, तो इसकी गंभीरता को तय करने के लिए परीक्षण किए जाते हैं। इन परीक्षणों में इमेजिंग परीक्षण, रक्त परीक्षण, लिवर बायोप्सी, तथा कभी-कभी विशेषज्ञतापूर्ण इमेजिंग परीक्षण शामिल होते हैं, ताकि यह तय किया जा सके कि लिवर कितना कड़ा है।

इमेजिंग परीक्षण जैसे अल्ट्रासोनोग्राफ़ी, कंप्यूटेड टोमोग्राफ़ी (computerized tomography, CT) तथा मैग्नेटिक रीसोनेंस इमेजिंग (Magnetic resonance imaging, MRI) प्रारम्भिक या मध्यम रूप से उन्नत फ़ाइब्रोसिस का पता नहीं लगाते हैं। लेकिन, इन परीक्षणों से उन असामान्यताओं का पता लग सकता है जो सिरोसिस और पोर्टल हाइपरटेंशन के साथ होती है (जैसे बढ़ी हुई स्प्लीन या वेरिसेस)।

रक्त परीक्षणों के कुछ खास संयोजनों से फ़ाइब्रोसिस के दो स्तरों में भेद किया जा सकता है:

  • अनुपस्थित या हल्के

  • मध्यम से लेकर गंभीर

ये परीक्षण मध्यम से गंभीर फ़ाइब्रोसिस के बीच डिग्री को विश्वसनीय रूप से विभेद नहीं कर सकते हैं। फ़ाइब्रोसिस की गंभीरता से ऐसे लोगों में पूर्वानुमान लगाने में सहायता मिलती है जिनको क्रोनिक वायरल हैपेटाइटिस है।

फ़ाइब्रोसिस का पता लगाने और उसके चरण को निर्धारित करने तथा फ़ाइब्रोसिस (की मात्रा का निर्धारण करना) के कारणात्मक विकार की पहचान करने के लिए लिवर बायोप्सी सर्वाधिक विश्वसनीय तरीका है। अक्सर निदान की पुष्टि करने, लिवर रोग के कारण की पहचान करने, फ़ाइब्रोसिस के स्तर को तय करने या सिरोसिस की मौजूदगी को तय करने तथा साथ ही उपचार की प्रतिक्रिया का आकलन करने के लिए बायोप्सी की जाती है। क्योंकि लिवर बायोप्सी इनवेसिव होती है और इसके कारण जटिलताएं हो सकती हैं, डॉक्टर पहले रक्त परीक्षण और इमेजिंग यह तय करने के लिए करते हैं कि फ़ाइब्रोसिस का स्तर क्या है और फिर वे लिवर बायोप्सी की आवश्यकता को तय करते हैं। वर्तमान में डॉक्टर बायोप्सी के विकल्प के तौर पर कुछ खास विशेषज्ञतापूर्ण इमेजिंग परीक्षणों पर अधिक भरोसा करने लगे हैं।

विशेषज्ञतापूर्ण इमेजिंग परीक्षणों से यह निर्धारित किया जा सकता है कि लिवर कितना कड़ा है। जितने अधिक लिवर ऊतक कड़े होंगे, उतना ही अधिक लिवर के फ़ाइब्रोसिस के गंभीर होने की संभावना होती है। इन परीक्षणों में (ट्रांसिएंट एलास्टोग्राफ़ी, मैग्नेटिक रीसोनेंस इलास्टोग्राफ़ी, तथा अकूस्टिक रेडिएशन फोर्स इम्प्लस इमेजिंग) साउंड वेव्स का प्रयोग किया जाता है, उन्हें पेट पर अप्लाई किया जाता है, ताकि यह तय किया जा सके कि लिवर ऊतक कितने कठोर हैं। लिवर बायोप्सी के विपरीत, ये परीक्षण इनवेसिव नहीं होते और इसलिए इनके कुछ लाभ होते हैं। फ़ाइब्रोसिस के निदान और चरण के निर्धारण के लिए ट्रांसिएंट इलास्टोग्राफ़ी तथा मैग्नेटिक रीसोनेंस एलास्टोग्राफ़ी का प्रयोग लिवर के विभिन्न विकारों से पीड़ित लोगों में किया जा रहा है। इसके अलावा, इन परीक्षणों का प्रयोग फैटी लिवर रोग से पीड़ित लोगों में लिवर फैट की मात्रा का निर्धारण करने के लिए किया जा रहा है। परंपरागत अल्ट्रासोनोग्राफ़ी अविश्वसनीय हो सकती है क्योंकि परिणाम, प्रक्रिया को करने वाले व्यक्ति के कौशल पर निर्भर करते हैं। इसकी तुलना में, इन विशेषज्ञतापूर्ण परीक्षणों में अपनी माप को संख्या में रिपोर्ट किया जाता है जिससे वस्तुनिष्ठ आकलन संभव हो पाता है।

लिवर फ़ाइब्रोसिस का इलाज

डॉक्टर कारण के उपचार पर ध्यान केन्द्रित करते हैं, जिसके परिणामस्वरूप लिवर की आगे स्कारिंग को रोक दिया जाता है अथवा धीमा कर दिया जाता है तथा कभी-कभी इसके परिणामस्वरूप सुधार प्राप्त होता है। इस प्रकार के उपचार में निम्नलिखित शामिल हो सकता है

  • यदि लोगों को क्रोनिक वायरल हैपेटाइटिस है, तो वायरस को दूर करने के लिए एंटीवायरल दवाओं का इस्तेमाल

  • यदि लोगों को अल्कोहोलिक लिवर विकार है, तो अल्कोहल का सेवन न करना

  • यदि लोगों को आयरन ओवरलोड (हीमोक्रोमेटोसिस) है या विल्सन रोग (जिसकी वजह से कॉपर संचित हो जाता है), तो भारी धातुओं को हटाने के लिए दवाओं का प्रयोग करना

  • ऐसी किसी भी दवा या अनुपूरक को रोकना जिसकी वजह से फ़ाइब्रोसिस हो रहा है

  • बाइल डक्ट में अवरोध को हटाना या डिसॉल्व करना

  • ऐसे लोगों में वजन कम करना तथा रक्त शूगर और लिपिड स्तरों को नियंत्रित करना जिनको नॉन-अल्कोहोलिक फैटी लिवर है

किसी भी उपलब्ध दवा से प्रभावी तथा सुरक्षित रूप से स्कार ऊतक के फॉर्मेशन को नहीं रोका जा सकता है। लेकिन, ऐसी दवाएं जिनसे फ़ाइब्रोसिस को कम किया जा सकता है, उनका अध्ययन जारी है। मिल्क थिसल या कॉफी में पाई जाने वाली सिलिमरीन से लिवर में फ़ाइब्रोसिस के विरूद्ध सुरक्षा में सहायता मिल सकती है, लेकिन इसकी उपचार के रूप में सिफारिश करने के लिए पर्याप्त साक्ष्य उपलब्ध नहीं हैं।