सिफलिस बैक्टीरियाट्रेपोनिमा पैलिडम के कारण होने वाला एक संक्रमण है। जन्म लेने से पहले संक्रमित शिशुओं में यह गंभीर समस्या पैदा करता है।
सिफ़िलिस बैक्टीरिया के कारण होता है।
गर्भावस्था के दौरान गंभीर जटिलताएं विकसित हो सकती हैं।
नवजात शिशुओं में कोई लक्षण नहीं भी हो सकते हैं या गंभीर लक्षण और जटिलताएं विकसित हो सकती हैं।
आमतौर पर निदान नवजात शिशु और मां के ब्लड परीक्षण पर आधारित होता है।
संक्रमण के इलाज के लिए पेनिसिलिन का इस्तेमाल किया जाता है
(नवजात शिशुओं में संक्रमण और वयस्कों में सिफ़िलिस का विवरण भी देखें।)
सिफ़िलिस यौन संपर्क से फैलता है। हालांकि, अगर कोई गर्भवती महिला संक्रमित है, तो उसका गर्भस्थ शिशु जन्म से पहले ही संक्रमित हो सकता है, अगर सिफलिस पैदा करने वाले बैक्टीरिया गर्भनाल (गर्भस्थ शिशु को पोषण प्रदान करने वाला अंग) को पार कर जाए। जब कोई बच्चा सिफ़िलिस के साथ पैदा होता है, तो यह संक्रमण जन्मजात सिफ़िलिस कहलाता है।
जन्मजात सिफलिस अमेरिका में व्यापक है। 2023 में, जन्मजात सिफलिस के 3,800 से अधिक मामले दर्ज किए गए, जिनमें 279 गर्भस्थ शिशु की मौत, मृत जन्म और शिशु की मौत शामिल थी। संक्रमण उन शिशुओं में अधिक आम है, जो कुछ खास क्षेत्रों में रहते हैं, और अमेरिका में कुछ नस्लीय और जातीय समूहों में शिशुओं में होता है। इन समूहों के अधिक प्रभावित होने का कारण साफ़ नहीं है, लेकिन शायद इसका कारण सामान्य रूप से उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य देखभाल तक कम पहुँच और यौन स्वास्थ्य के लिए सार्वजनिक स्वास्थ्य गतिविधियों में कमी है, जिसमें संक्रमित लोगों की जाँच और फ़ॉलो-अप कार्रवाई करने तथा यह देखने के लिए कि उन्हें उपचार मिल रहा है या नहीं, कम सार्वजनिक स्वास्थ्य नर्स और फील्ड स्टॉफ शामिल हैं।
दुनिया भर में 2022 में, जन्मजात सिफलिस के अनुमानित 700,000 मामले दर्ज किए गए थे।
जिन गर्भवती महिलाओं को सिफलिस होता है, जिनको इसका उपचार नहीं मिलता है, वे समय से पहले जन्म के उच्च जोखिम पर होते हैं और उनके बच्चे के जन्म से पहले (मृत जन्म) या जन्म के तुरंत बाद मर जाते हैं।
नवजात शिशु में सिफ़िलिस के लक्षण
जन्म के समय, कई नवजात शिशुओं में सिफलिस के कोई लक्षण नहीं होते हैं। जिन नवजात शिशुओं में लक्षण होते हैं, उनमें जन्मजात सिफ़िलिस के लक्षणों को जल्द शुरू होने या देर से शुरू होने के रूप में वर्गीकृत किया जाता है।
प्रारंभिक जन्मजात सिफ़िलिस जीवन के पहले 3 महीनों के दौरान शुरू होता है। बड़े फफोले या एक चपटा तांबे के रंग का दाना, जो आसपास की त्वचा की तुलना में हल्का या गहरा हो सकता है, हथेलियों और तलवों पर विकसित हो सकता है। नाक और मुंह के आसपास और डायपर के संपर्क में आने वाली जगह में गांठ बन सकती हैं। हो सकता है नवजात शिशु का ठीक से विकास ना हो। वे उनके मुँह के चारों ओर दरारें हो सकती हैं या उनके नाक से म्युकस, मवाद या खून बह सकता है। आमतौर पर उनकी लसीका ग्रंथि, लिवर और स्प्लीन बढ़े हुए होते हैं।
कभी-कभी आँखों या मस्तिष्क में सूजन, सीज़र्स, मेनिनजाइटिस या बौद्धिक विकलांगता होती है।
जीवन के पहले 8 महीनों के भीतर, हड्डियों और कार्टिलेज, खास तौर पर लंबी हड्डियों और पसलियों में सूजन आ जाती है, जिससे शिशुओं के लिए चलना मुश्किल हो सकता है और हो सकता है हड्डियों का विकास ठीक से ना हो।
इस तस्वीर में जन्मजात सिफ़िलिस से पीड़ित नवजात शिशु में फफोलेदार दाने दिखाई दे रहे हैं।
देर से होने वाले जन्मजात सिफ़िलिस पैदा होने के 2 साल बाद शुरू होता है। नाक और मुंह में छाले पड़ सकते हैं और हड्डियां असामान्य रूप से बढ़ सकती हैं। आँखों की समस्याओं के कारण अंधापन हो सकता है और कॉर्निया (आइरिस और प्यूपिल के सामने स्पष्ट परत) पर निशान पड़ सकते हैं। चेहरे में दांतों और हड्डियों के विकास में भी दिक्कत आने लगती है। बहरापन किसी भी उम्र में हो सकता है।
नवजात शिशुओं में सिफ़िलिस का निदान
जल्द शुरू होने वाले जन्मजात सिफ़िलिस: त्वचा, गर्भनाल और/या गर्भनाल के पदार्थ की जांच; मां और नवजात शिशु का ब्लड परीक्षण; और इसके अलावा संभवतः स्पाइनल टैप, दूसरे किस्म के ब्लड परीक्षण और हड्डी का एक्स-रे
देर से होने वाले जन्मजात सिफ़िलिस: माँ और नवजात शिशु के रक्त परीक्षण
जल्द शुरू होने वाले जन्मजात सिफ़िलिस
प्रारंभिक जन्मजात सिफलिस का निदान आमतौर पर गर्भवती महिला के रक्त परीक्षण के नतीजे पर आधारित होता है, जो नियमित रूप से गर्भावस्था के आरंभ में किया जाता है तथा तीसरी तिमाही में और कुछ जोखिम कारकों वाले लोगों में प्रसव के समय दोहराया जाता है। अगर किसी गर्भवती महिला को सिफलिस हो, तो डॉक्टरों को उसके नवजात शिशु में भी यह होने का संदेह होता है। संक्रमित महिला से जन्मे नवजात शिशु में सिफलिस है या नहीं, यह निर्धारित करने के लिए डॉक्टर अच्छी तरह से शारीरिक जाँच करते हैं और घावों या दाने की तलाश करते हैं। अगर घाव या छाले होते हैं, तो बैक्टीरिया का पता करने के लिए डॉक्टर उनसे नमूने लेते हैं और माइक्रोस्कोप से उनकी जांच करते हैं। सिफ़िलिस के लिए वे नाल, गर्भनाल और नवजात शिशु का ब्लड टेस्ट करते हैं।
जिन शिशुओं और 2 वर्ष तक की आयु वाले बच्चों में सिफलिस के लक्षण हों या जिनका रक्त परीक्षण पॉज़िटिव हो, उन्हें भी स्पाइनल टैप (लम्बर पंक्चर) करवाना चाहिए, ताकि यह देखा जा सके कि क्या संक्रमण ने मस्तिष्क को प्रभावित है या नहीं। डॉक्टर, जन्मजात सिफ़िलिस के लक्षणों की जांच करने के लिए हड्डियों का एक्स-रे भी करते है।
देर से होने वाले जन्मजात सिफ़िलिस
शारीरिक जाँच और माँ तथा नवजात बच्चे के रक्त परीक्षणों के नतीजे के आधार पर डॉक्टर देर से होने वाले जन्मजात सिफलिस का संदेह करते हैं।
डॉक्टर बच्चों की जांच करते हैं और संक्रमण के कारण होने वाली विशिष्ट समस्याओं का पता लगाते हैं। इसमें खास समस्याएं आँखों की सूजन, दांतों की विकृति और बहरेपन की होती है। इन विशेष समस्याओं से पीड़ित बच्चों में देर से होने वाले जन्मजात सिफ़िलिस के निदान की पुष्टि होती है।
नवजात शिशुओं में सिफ़िलिस का इलाज
पेनिसिलिन
ऐसे लोग जो सिफ़िलिस से पीड़ित है उन सभी लोगों का इलाज एंटीबायोटिक पेनिसिलिन से किया जाता है। गर्भवती होने के दौरान, संक्रमित महिलाओं को दवा का एक इंजेक्शन (या इंजेक्शन की एक श्रृंखला) मांसपेशियों में (इंट्रामस्क्युलर) या कभी-कभी शिरा में (नस के माध्यम से) दिया जाता है।
नवजात शिशुओं, शिशुओं और संक्रमित बच्चों को पेनिसिलिन शिरा द्वारा या मांसपेशियों द्वारा दिया जाता है।
कॉर्टिकोस्टेरॉइड और एट्रोपिन के ड्रॉप आँखों की सूजन के लिए दिए जा सकते हैं। सुनने में समस्या से पीड़ित बच्चों को पेनिसिलिन और मुँह से ली जाने वाली कॉर्टिकोस्टेरॉइड से लाभ हो सकता है, लेकिन इस उपचार से सुनने की क्षमता हमेशा बहाल नहीं होती।
नवजात शिशुओं में सिफ़िलिस से बचाव
गर्भवती महिलाओं को पहली तिमाही के दौरान सिफलिस के लिए नियमित रूप से परीक्षण किया जाना चाहिए और तीसरी तिमाही तथा प्रसव के समय फिर से तब परीक्षण किया जाना चाहिए यदि वे किसी ऐसे समुदाय में रहते हैं, जिसमें सिफलिस के मामले बहुत ज़्यादा हुआ करते है या सिफलिस के लिए कोई जोखिम कारक (उदाहरण के लिए, HIV संक्रमण या असुरक्षित यौन व्यवहार) हैं।
अधिकांश मामलों में, गर्भावस्था के दौरान पेनिसिलिन से इलाज से माँ और गर्भस्थ शिशु दोनों ठीक हो जाते हैं। हालांकि, प्रसव में रह गए 4 सप्ताह से कम समय से पहले गर्भवती महिला का उपचार करने से गर्भस्थ शिशु में संक्रमण का पूरी तरह से इलाज नहीं हो सकता है।
