स्टीवंस-जॉन्सन सिंड्रोम (SJS) और टॉक्सिक एपिडर्मल नेक्रोलिसिस (TEN)

इनके द्वाराJulia Benedetti, MD, Harvard Medical School
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया अप्रै. २०२२

स्टीवंस-जॉन्सन सिंड्रोम और टॉक्सिक एपिडर्मल नेक्रोलिसिस, एक ही जानलेवा त्वचा विकार के दो रूप हैं, जिनमें ददोरे, त्वचा का उतरना, और म्युकस झिल्लियों पर घाव होते हैं।

(त्वचा की हाइपरसेंसिटिविटी और प्रतिक्रियाशीलता से जुड़े विकारों के विवरण भी देखें।)

  • स्टीवंस-जॉन्सन सिंड्रोम और टॉक्सिक एपिडर्मल नेक्रोलिसिस आम तौर पर दवाओं या संक्रमणों से होते हैं।

  • दोनों रोगों के आम लक्षणों में त्वचा का उतरना, बुखार, शरीर में दर्द, चपटा लाल ददोरा, और म्युकस झिल्लियों पर फफोले और घाव शामिल हैं।

  • प्रभावित लोगों को आम तौर पर अस्पताल की बर्न यूनिट में भर्ती किया जाता है, उन्हें तरल पदार्थ और कभी-कभी दवाएँ दी जाती हैं, और सभी संदिग्ध दवाएँ रोक दी जाती हैं।

त्वचा का उतरना इन स्थितियों का प्रमाण चिह्न होता है। इसमें त्वचा की पूरी-की-पूरी ऊपरी परत (एपिडर्मिस) उतर जाती है, जो कभी-कभी शरीर के बड़े-बड़े भागों से परत के रूप में उतरती है ( देखें त्वचा की संरचना और उसके कार्य)।

  • स्टीवंस-जॉन्सन सिंड्रोम में त्वचा के केवल छोटे-छोटे भाग ही उतरते हैं (शरीर का 10% से कम भाग प्रभावित होता है)।

  • टॉक्सिक एपिडर्मल नेक्रोलिसिस में त्वचा के बड़े-बड़े भाग उतरते हैं (शरीर का 30% से अधिक भाग प्रभावित होता है)।

  • यदि शरीर की सतह का 15 से 30% भाग प्रभावित हुआ है, तो इसे स्टीवंस-जॉन्सन सिंड्रोम और टॉक्सिक एपिडर्मल नेक्रोलिसिस, दोनों की उपस्थिति माना जाता है।

दोनों ही रूपों में, आम तौर पर मुंह, आंखों और योनि की म्युकस झिल्लियों में, और कभी-कभी पाचन तंत्र, श्वसन तंत्र, और मूत्र तंत्र की म्युकस झिल्लियों में फफोले हो जाते हैं।

दोनों विकार जानलेवा हो सकते हैं।

स्टीवंस-जॉन्सन सिंड्रोम के लगभग आधे मामले और टॉक्सिक एपिडर्मल नेक्रोलिसिस के लगभग सारे मामले किसी दवा पर प्रतिक्रिया के कारण होते हैं; इन दवाओं में अधिकतर सल्फ़ा वर्ग की और अन्य एंटीबायोटिक्स, एंटीसीज़र दवाएँ, जैसे फ़ेनिटॉइन और कार्बेमाज़ेपाइन; और कुछ अन्य दवाएँ जैसे पाइरॉक्सीकैम या एलोप्यूरिनॉल शामिल हैं। कुछ मामले जीवाणु संक्रमण, टीकाकरण या ग्राफ़्ट-वर्सेस-होस्ट डिजीज से होते हैं। कभी-कभी, कारण की पहचान नहीं हो पाती। स्टीवंस-जॉन्सन सिंड्रोम से ग्रस्त बच्चों में, कोई संक्रमण सर्वाधिक संभावित कारण होता है।

ये विकार सभी आयु वर्गों में होते हैं। ये विकार ऐसे लोगों में होने की संभावना अधिक होती है जिनका प्रतिरक्षा तंत्र असामान्य है, जैसे कि वे जिन्होंने बोन मैरो ट्रांस्प्लांट करवाया है या वे जो सिस्टेमिक लूपस एरिथेमेटोसस, जोड़ों व संयोजी ऊतकों के अन्य क्रोनिक रोगों या ह्यूमन इम्यूनोडिफिशिएंसी वायरस (HIV) संक्रमण से ग्रस्त हैं (विशेष रूप से तब जब लोगों को न्यूमोसिस्टिस जीरोवेकिआय से हुआ निमोनिया भी होता है)। ये विकार होने की प्रवृत्ति एक से दूसरी पीढ़ी में जा सकती है।

SJS और TEN के लक्षण

स्टीवंस-जॉन्सन सिंड्रोम और टॉक्सिक एपिडर्मल नेक्रोलिसिस की शुरुआत आम तौर पर बुखार, सिरदर्द, खाँसी, केरटोकंजंक्टिवाइटिस (आंखों में कंजंक्टाइवा और कॉर्निया का शोथ), और शरीर में दर्द के साथ होती है। यदि यह किसी दवा से हुआ हो, तो ये लक्षण दवा की शुरुआत से आम तौर पर 1 से 3 सप्ताह बाद दिखते हैं। इसके बाद त्वचा में बदलाव शुरू होते हैं, जिसमें चेहरे पर चपटा लाल ददोरा बनता है, जो आगे चलकर अक्सर अनियमित पैटर्न में पूरे शरीर पर फैल जाता है। ददोरे वाले स्थान बढ़ने और फैलने लगते हैं, और उनके बीच में अक्सर फफोले बन जाते हैं। फफोलों की त्वचा बहुत ढीली होती है, जो अक्सर हल्के से छूने या खींचने मात्र से अलग हो जाती है, और 1 से 3 दिनों में फफोलों की त्वचा उतर जाती है। प्रभावित स्थानों में दर्द होता है, और व्यक्ति को कंपकंपी और बुखार के साथ बहुत अस्वस्थता महसूस होती है। कुछ लोगों के बाल और नाख़ून भी गिर जाते हैं। हथेलियाँ और तलवे प्रभावित हो सकते हैं।

दोनों ही विकारों में मुंह, गले, गुदा, जननांगों, और आंखों का अस्तर वाली म्युकस झिल्लियों पर घाव दिखाई देते हैं। मुंह के अस्तर को हुए नुक़सान से खाना मुश्किल हो जाता है, और मुंह को बंद करने में दर्द हो सकता है, जिसके कारण व्यक्ति की लार बह सकती है। आंखों में बहुत दर्द और सूजन हो जाती है और आंखें इतनी पपड़ीदार हो जाती हैं कि वे पूरी तरह बंद हो जाती हैं। कॉर्निया पर घाव के निशान पड़ सकते हैं। जिस छेद से मूत्र निकलता है (यूरेथ्रा) वह भी प्रभावित हो सकता है, जिससे पेशाब करने में समस्या और दर्द होता है। कभी-कभी पाचन तंत्र और श्वसन तंत्र की म्युकस झिल्लियाँ भी प्रभावित हो जाती हैं, जिस कारण दस्त, खाँसी, निमोनिया और सांस लेने में कठिनाई हो जाती है।

स्टीवंस-जॉन्सन सिंड्रोम (SJS)
विवरण छुपाओ
इस फोटो में SJS से ग्रस्त एक व्यक्ति की त्वचा पर और आंखों व मुंह का अस्तर बनने वाली म्युकस झिल्लियों पर लाल ददोरे और फफोले देखे जा सकते हैं।
डॉ. पी. मराज़ी/SCIENCE PHOTO LIBRARY

टॉक्सिक एपिडर्मल नेक्रोलिसिस में बड़ी मात्रा में होने वाले त्वचा का नुकसान, गंभीर रूप से जलने के समान होता है और उतना ही जानलेवा भी होता है। लोग बहुत अस्वस्थ हो जाते हैं और खाने या आंखें खोलने में असमर्थ हो जाते हैं। बड़े, कच्चे और क्षतिग्रस्त जगहों से तरल पदार्थों और लवणों की भारी मात्राएँ रिस सकती हैं। इस विकार से ग्रस्त लोगों में अंगों के काम न करने की बहुत अधिक संभावना होती है। वे खराब और बिना त्वचा के ऊतकों वाले स्थानों पर संक्रमण होने के जोखिम में भी होते हैं। ऐसे संक्रमण, इस विकार से ग्रस्त लोगों की मृत्यु होने का सबसे आम कारण होते हैं।

SJS और TEN का निदान

  • एक डॉक्टर का मूल्यांकन

  • कभी-कभी एक त्वचा बायोप्सी

आम तौर पर प्रभावित त्वचा और म्युकस वाली झिल्लियों की दिखावट से, उनके लक्षणों (खुजली के बजाए दर्द) से, त्वचा पर दिखने वाले लक्षणों के बढ़ने की तेज़ी से और कितनी त्वचा प्रभावित हुई है, इस आधार पर डॉक्टर स्टीवंस-जॉन्सन सिंड्रोम और टॉक्सिक एपिडर्मल नेक्रोलिसिस का निदान कर सकते हैं।

त्वचा का नमूना लिया जा सकता है और उसे माइक्रोस्कोप के नीचे जांचा जा सकता है (जिसे स्किन बायोप्सी कहते हैं)।

SJS और TEN का पूर्वानुमान

टॉक्सिक डर्मल नेक्रोलिसिस में मृत्यु दर वयस्कों में 25% तक हो सकती है और गंभीर फफोलों से ग्रस्त बुज़ुर्गों में यह और भी अधिक हो सकती है। बच्चों में मृत्यु दर अनुमान के हिसाब से 10% से कम है।

स्टीवंस-जॉन्सन सिंड्रोम में, मृत्यु दर लगभग 5% है।

SJS और TEN का उपचार

  • बर्न सेंटर या इंटेंसिव केयर यूनिट में उपचार

  • शायद साइक्लोस्पोरिन, कॉर्टिकोस्टेरॉइड दवाएँ, प्लाज़्माफ़ेरेसिस, इम्यून ग्लोबुलिन, या इम्यूनोसप्रेसेंट दवाएँ

स्टीवंस-जॉन्सन सिंड्रोम या टॉक्सिक एपिडर्मल नेक्रोलिसिस से ग्रस्त लोगों को अस्पताल में भर्ती किया जाता है। जिन भी दवाओं के कारण उक्त विकार होने का संदेह हो उन्हें तुरंत रोक दिया जाता है। जब संभव हो, तब लोगों का उपचार बर्न सेंटर या इंटेंसिव केयर यूनिट में किया जाता है और संक्रमण से बचाने के लिए उनकी बहुत सावधानी से देखभाल की जाती है (गंभीर रूप से जलना देखें)। यदि व्यक्ति जीवित बचता है, तो त्वचा अपने-आप दोबारा बन जाती है और जलने के विपरीत, स्किन ग्राफ़्ट की ज़रूरत नहीं पड़ती। खराब त्वचा से हुई तरल पदार्थों और लवणों की हानि की भरपाई नसों के ज़रिए (इंट्रावीनस तरीके से) की जाती है।

इन विकारों का उपचार करने वाली दवाओं का उपयोग विवादास्पद है, हालांकि इस बात के सैद्धांतिक कारण हैं कि क्यों कुछ दवाएँ लाभकारी हो सकती हैं, लेकिन कोई भी दवा जीवित बचने की दर में स्पष्ट सुधार नहीं दिखा पाई है। साइक्लोस्पोरिन सक्रिय रूप से फफोले बनने और त्वचा उतरने की अवधि घटा सकती है और जीवित बचने की दर बढ़ा सकती है। कुछ डॉक्टर मानते हैं कि शुरुआती कुछ दिनों में कॉर्टिकोस्टेरॉइड दवाओं की ज़्यादा खुराक देने से लाभ होता है, जबकि कुछ अन्य मानते हैं कि उनका उपयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि उनसे गंभीर संक्रमण का जोखिम बढ़ सकता है। यदि संक्रमण हो जाए, तो डॉक्टर तुरंत एंटीबायोटिक्स देते हैं।

डॉक्टर प्लाज़्माफ़ेरेसिस कर सकते हैं। इस कार्यविधि में, व्यक्ति का खून निकाला जाता है, और उससे प्लाज़्मा अलग करके फेंक दिया जाता है। इस कार्यविधि से खून से कुछ हानिकारक पदार्थ अलग किए जाते हैं, जिनमें वे दवाएँ और एंटीबॉडीज (प्रतिरक्षा तंत्र के प्रोटीन) हो सकते हैं जिनसे उक्त विकार हो सकता है। इन पदार्थों को अलग कर देने के बाद, रक्त कोशिकाएँ वापस व्यक्ति में चढ़ा दी जाती हैं।

डॉक्टर टॉक्सिक एपिडर्मल नेक्रोलिसिस के उपचार के लिए, नसों के ज़रिए ह्यूमन इम्यून ग्लोबुलिन दे सकते हैं। यह पदार्थ त्वचा की कोशिकाओं को और नुक़सान से बचाता है।

इम्यूनोसप्रेसेंट नाम की दवाएँ दी जा सकती हैं। इम्यूनोसप्रेसेंट दवाएँ प्रतिरक्षा तंत्र को कमज़ोर बनाती (दबाती) हैं और उसे शरीर के अपने ही ऊतकों पर हमला करने से रोकने में मदद करती हैं। ट्यूमर नेक्रोसिस फैक्टर (TNF)–अवरोधी दवाएँ, इम्युनोसप्रेसेंट दवाओं का एक प्रकार हैं। स्टीवंस-जॉन्सन सिंड्रोम या टॉक्सिक एपिडर्मल नेक्रोलिसिस से ग्रस्त व्यक्तियों में शोथ उत्पन्न कर रही प्रतिरक्षा प्रक्रिया को कमज़ोर करने में मदद के लिए TNF अवरोधक दवाएँ, जैसे इन्फ़्लिक्सीमेब और इतानर्सेप्ट दी जाती हैं।