कैंडिडिआसिस, कैंडिडा नामक यीस्ट के संक्रमण को कहते हैं।
कैंडिडिआसिस अक्सर त्वचा के नम स्थानों में होता है।
त्वचा का यह संक्रमण फुंसियाँ, पपड़ी, खुजली और सूजन उत्पन्न कर सकता है।
डॉक्टर प्रभावित स्थानों की जांच करते हैं और त्वचा के नमूनों को माइक्रोस्कोप से या कल्चर में देखते हैं।
एंटीफंगल क्रीम या मुंह से ली जाने वाली एंटीफंगल दवाओं से कैंडिडिआसिस आम तौर पर ठीक हो जाता है।
(त्वचा के फ़ंगल संक्रमणों का विवरण भी देखे।)
यीस्ट एक प्रकार का फ़ंगस होता है।
कैंडिडा एक यीस्ट है जो आम तौर पर त्वचा पर और मुंह में, पाचन तंत्र में और योनि में रहता है और आम तौर पर कोई नुक़सान नहीं पहुंचाता है। कुछ स्थितियों में कैंडिडा म्युकस झिल्लियों पर और त्वचा के नम स्थानों पर बहुत अधिक बढ़ सकता है। इससे आम तौर पर मुंह की अंदरूनी त्वचा, जांघों के बीच वाली जगह, बगलें, हाथों और पैरों की अंगुलियों के बीच की जगह, खतना नहीं किया गया शिश्न, स्तनों के नीचे की त्वचा की तहें, नाखून और पेट की त्वचा की तहें प्रभावित होती हैं। कैंडिडा शरीर के अन्य हिस्सों, जैसे मुंह, इसोफ़ेगस और योनि में भी संक्रमण कर सकता है (कैंडिडिआसिस भी देखें)।
कैंडिडा को त्वचा को संक्रमित करने में समर्थ बनाने वाली स्थितियों में शामिल हैं:
गर्म और नम मौसम
कसे हुए और सिंथेटिक अंडरगारमेंट
खराब साफ़-सफ़ाई
डायपर या अंडरगारमेंट को देरी से बदलना, ख़ास तौर पर बच्चों और बुज़ुर्गों में
डायबिटीज़, HIV संक्रमण/एड्स के कारण या कॉर्टिकोस्टेरॉइड के इस्तेमाल या प्रतिरक्षा तंत्र को कमज़ोर करने वाली अन्य दवाओं (कैंसर का इलाज करने वाली दवाओं सहित) के इस्तेमाल के कारण कमज़ोर हुआ प्रतिरक्षा तंत्र
गर्भावस्था, मोटापा या एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल
त्वचा के अन्य विकार, जैसे इंटरट्राइगो और सोरियसिस
एंटीबायोटिक्स लेने वाले लोगों में कैंडिडिआसिस हो सकता है, क्योंकि एंटीबायोटिक्स शरीर पर सामान्य रूप से रहने वाले उन बैक्टीरिया को मार डालती हैं जो कैंडिडा को अनियंत्रित रूप से बढ़ने से रोकते हैं। कॉर्टिकोस्टेरॉइड से या अंग प्रत्यारोपण के बाद प्रतिरक्षा तंत्र को दबाने वाली दवाओं से भी कैंडिडिआसिस के विरुद्ध शरीर की रक्षा व्यवस्था कमज़ोर पड़ सकती है। सूंघ कर ली जाने वाली कॉर्टिकोस्टेरॉइड, जिन्हें आम तौर पर दमे के रोगी लेते हैं, कभी-कभी मुंह में कैंडिडिआसिस पैदा कर देती हैं।
कुछ लोगों में (आम तौर पर कमज़ोर प्रतिरक्षा तंत्र वाले लोगों में) कैंडिडा और गहरे ऊतकों और रक्त तक में प्रवेश कर जाता है जिससे जानलेवा सिस्टेमिक कैंडिडिआसिस हो जाता है।
कैंडिडिआसिस के लक्षण
कैंडिडिआसिस के लक्षण संक्रमण की जगह पर निर्भर करते हैं।
क्यूटेनियस कैंडिडिआसिस
त्वचा की तहों या नाभि में संक्रमण से आम तौर पर चमकदार लाल रंग की फुंसियाँ बन जाती हैं और कभी-कभी त्वचा कट-फट जाती है। छोटी-छोटी फुंसियाँ दिखाई दे सकती हैं, विशेष रूप से दाने के किनारों पर और दाने में बहुत तेज़ खुजली या जलन हो सकती है। गुदा के इर्द-गिर्द हुआ कैंडिडल दाना कच्चा, सफ़ेद या लाल और खुजलीदार हो सकता है।
नवजात शिशुओं में कैंडिडा से होने वाला डायपर रैश हो सकता है।
थॉमस हबीफ, MD द्वारा प्रदान की गई छवि।
वैजिनल और पेनाइल कैंडिडिआसिस
वैजिनल कैंडिडिआसिस (योनि का खमीर संक्रमण) एक आम संक्रमण है, जो ख़ास तौर पर गर्भवती महिलाओं, डायबिटीज़ से ग्रस्त महिलाओं या एंटीबायोटिक्स ले रही महिलाओं में उत्पन्न होता है।
योनि में कवक के संक्रमण के लक्षणों में योनि से सफ़ेद या पीला चीज़/पनीर जैसा स्राव होना और योनि की दीवारों और बाहरी भाग में जलन, खुजली और लालिमा होना शामिल होता है।
पिनाइल कैंडिडिआसिस अधिकतर ऐसे पुरुषों को प्रभावित करता है जिन्हें डायबिटीज़ है, जिनका खतना नहीं हुआ है या जिनकी महिला यौन साथियों को वैजिनल कैंडिडिआसिस है।
कभी-कभी दाने से कोई लक्षण नहीं होते, पर आम तौर पर संक्रमण से शिश्न के ऊपरी सिरे पर एक लाल, कच्चा, खुजलीदार, जलनदार या कभी-कभी दर्दयुक्त दाना हो जाता है।
थ्रश
मुंह के अंदर होने वाले कैंडिडिआसिस को थ्रश कहते हैं। जीभ से और मुंह के किनारों पर क्रीमी सफ़ेद चकत्ते चिपट जाते हैं जो थ्रश की पहचान हैं और इनमें दर्द हो सकता है। चकत्तों को अंगुली से या किसी कुंद वस्तु से खुरचा जा सकता है और खुरचने पर उनसे रक्त बह सकता है।
अन्यथा स्वस्थ बच्चों में थ्रश असामान्य नहीं है, पर अन्यथा स्वस्थ वयस्कों में इसका होना प्रतिरक्षा तंत्र के कमज़ोर पड़ने का संकेत हो सकता है और यह कमज़ोरी संभवतः कैंसर, डायबिटीज़ या ह्यूमन इम्यूनोडिफिशिएंसी वायरस (HIV) संक्रमण के कारण हो सकती है। कैंडिडा को अनियंत्रित ढंग से बढ़ने से रोकने वाले बैक्टीरिया को मारने वाली एंटीबायोटिक्स के इस्तेमाल से थ्रश होने का जोखिम बढ़ जाता है।
एंगुलर चीलाइटिस (परलैश)
मुंह के कोनों पर होने वाली कैंडिडिआसिस को एंगुलर चीलाइटिस कहा जाता है, जिससे कोने फटने लगते हैं और उनमें बारीक दरारें पड़ जाती हैं। यह क्रोनिक होंठ चाटने, अंगूठा चूसने, ठीक से फ़िट न होने वाली बत्तीसी या ऐसी अन्य स्थितियों के कारण हो सकता है जो मुंह के कोनों को इतना नम रखती हैं जिनसे यीस्ट को बढ़ने का मौका मिल जाता है।
नेल कैंडिडिआसिस
कैंडिडल पैरोनिकिया नाखूनों की तहों या क्यूटिकल में होने वाला कैंडिडिआसिस होता है, जिसके कारण नाखून के इर्द-गिर्द दर्द वाली लालिमा और सूजन पैदा हो जाती है। संक्रमण लंबे समय तक बना रहे तो नाखून के नीचे का स्थान सफ़ेद या पीला पड़ जाता है और नेल प्लेट नेल बेड से अलग हो सकती है (ओनिकोलिसिस)। यह विकार आम तौर पर डायबिटीज़ से ग्रस्त या कमज़ोर प्रतिरक्षा तंत्र वाले लोगों में या उन अन्यथा स्वस्थ लोगों में होता है जिनकी हथेलियाँ बारंबार गीली होती हैं या धुलती हैं।
क्रोनिक म्यूकोक्यूटेनियस कैंडिडायसिस
क्रोनिक म्यूकोक्यूटेनियस कैंडिडिआसिस से लाल, मवाद से भरे, खुरंटदार और मोटे स्थान बनते हैं जो देखने में सोरियसिस जैसे होते हैं, विशेष रूप से नाक और माथे पर। इस स्थिति से ग्रस्त लोगों में थ्रश होने की संभावना भी अधिक होती है।
कैंडिडिआसिस का निदान
डॉक्टर द्वारा त्वचा की जांच
खुरचन के नमूने की जांच या कल्चर
आम तौर पर डॉक्टर कैंडिडिआसिस से होने वाले विशेष दाने या उससे निकलने वाले गाढ़े, सफ़ेद, पेस्ट जैसे अवशेष की मदद से इसकी पहचान कर लेते हैं।
कैंडिडिआसिस के निदान की पुष्टि के लिए डॉक्टर थोड़ी-सी त्वचा या अवशेष को स्कैलपल या टंग डिप्रेसर की मदद से खुरचकर निकाल लेते हैं। इसके बाद खुरचन के नमूने को माइक्रोस्कोप से जांचा जाता है या उसे कल्चर मीडियम (एक पदार्थ जिसमें सूक्ष्मजीव अपनी संख्या बढ़ा सकते हैं) में रखा जाता है और फिर विशेष फ़ंगस की पहचान की जाती है।
कैंडिडिआसिस के इलाज
त्वचा पर लगाई जाने वाली या मुंह से ली जाने वाली एंटीफंगल दवाएँ
स्थान को सूखा रखने के उपाय
कैंडिडिआसिस का इलाज आम तौर पर संक्रमण के स्थान पर निर्भर करता है। (त्वचा पर लगाई जाने वाली कुछ एंटीफंगल दवाएँ (टॉपिकल दवाएँ) तालिका भी देखें)।
त्वचा की तहों के संक्रमणों का इलाज एंटीफंगल क्रीम, पाउडर, सलूशन या ऐसे अन्य उत्पादों से किया जाता है जिन्हें सीधे त्वचा पर लगाया जाता है (टॉपिकल उत्पाद)। उदाहरणों में मिकोनाजोल, ऑक्सीकोनाज़ोल, ऑक्सिकॉनज़ोल, कीटोकोनाज़ोल, इकोनाज़ोल, साइक्लोपिरॉक्स और निस्टेटिन शामिल हैं। स्वस्थ लोगों में त्वचा की तहों के संक्रमण आम तौर पर आसानी से ठीक हो जाते हैं। त्वचा को सूखा रखने से संक्रमण को सुखाने और उसे दोबारा होने देने से रोकने में मदद मिलती है। त्वचा को सुखाने वाले सॉल्यूशन (जैसे बुरो का घोल) या टॉपिकल एंटीपर्सपिरेंट उत्पाद सतही स्थान को सूखा रखने में मदद देते हैं। स्थान को सूखा रखने से संक्रमण को दोबारा होने से रोकने में भी मदद मिल सकती है। जिन लोगों में त्वचा की कई तहों में संक्रमण होता है, उन्हें मुंह से ली जाने वाली दवाएँ (जैसे फ्लुकोनाज़ोल) दी जा सकती हैं।
वैजिनल कैंडिडिआसिस का इलाज ऐसी एंटीफंगल दवाओं से किया जाता है, जिन्हें क्रीम के रूप में प्रभावित स्थान पर लगाया जा सकता है, सपोजिटरी के रूप में योनि में घुसाया जा सकता है या मुंह से लिया जा सकता है (जैसे फ्लुकोनाज़ोल)।
डायपर रैश के इलाज के लिए डायपर को जल्दी-जल्दी बदला जाता है, सूपर-एब्ज़ॉर्बेंट या अल्ट्रा-एब्ज़ॉर्बेंट डिस्पोज़ेबल डायपर का इस्तेमाल किया जाता है और किसी एंटीफंगल दवा (जैसे ब्यूटोकोनाज़ोल, क्लोट्राइमाज़ोल, फ्लुकोनाज़ोल, कीटोकोनाज़ोल या माइकोनाज़ोल) से युक्त क्रीम का इस्तेमाल किया जाता है।
कैंडिडल पैरोनिकिया का इलाज प्रभावित स्थान को गीलेपन से बचाकर किया जाता है। डॉक्टर त्वचा पर लगाई जाने वाली या मुंह से ली जाने वाली एंटीफंगल दवाएँ देते हैं। इन संक्रमणों का इलाज अक्सर कठिन होता है।
वयस्कों में थ्रश का इलाज सीधे मुंह से ली जाने वाली दवाओं से किया जाता है। एंटीफंगल दवा (जैसे क्लोट्राइमाज़ोल) मुंह में घुलने वाली टैबलेट या लॉज़ेंज के रूप में ली जा सकती है। डॉक्टर लोगों को अधिक-से-अधिक समय तक लिक्विड निस्टेटिन से गरारा करने और फिर उसे थूक देने या निगल लेने को भी कह सकते हैं। डॉक्टर दवाओं को निगली जाने वाली गोलियों (फ्लुकोनाज़ोल) के रूप में भी दे सकते हैं।
नवजात शिशुओं में थ्रश का इलाज लिक्विड निस्टेटिन से किया जा सकता है। लिक्विड को मुंह के भीतर गालों वाले स्थान पर अंगुली से या रुई के फाहे से लगाया जा सकता है।
क्रोनिक म्यूकोक्यूटेनियस कैंडिडिआसिस का इलाज मुंह से दी जाने वाली फ्लुकोनाज़ोल से किया जाता है। यह दवा लंबे समय तक ली जाती है।