डायबिटीज मैलिटस का दवाई से इलाज

इनके द्वाराErika F. Brutsaert, MD, New York Medical College
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया अक्टू. २०२३

डायबिटीज से पीड़ित लोगों को ब्लड ग्लूकोज़ लेवल कम करने, लक्षणों से आराम पाने और डायबिटीज की जटिलताओं से बचने के लिए दवाई की ज़रूरत होती है।

डायबिटीज मैलिटस दो तरह के होते हैं

  • टाइप 1, जिसमें शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली अग्नाशय के इंसुलिन पैदा करने वाली कोशिकाओं पर हमला करती है और उनमें से 90% से ज़्यादा हमेशा के लिए नष्ट हो जाती हैं

  • टाइप 2, जिसमें हमारा शरीर इंसुलिन के प्रभावों के प्रति प्रतिरोध पैदा करता है

टाइप 1 डायबिटीज के सामान्य उपचार के लिए जीवनशैली में बदलाव की ज़रूरत होती है, जिसमें स्वस्थ डाएट लेना और कसरत करना शामिल हैं। टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित लोगों को इंसुलिन के इंजेक्शन और अक्सर ग्लूकोज़ लेवल की निगरानी करने की ज़रूरत होती है।

टाइप 2 डायबिटीज के सामान्य उपचार के लिए भी जीवनशैली में बदलाव की ज़रूरत होती है, जिसमें वज़न कम करना, अच्छी डाएट लेना और कसरत करना शामिल हैं। टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित कुछ लोग ब्लड ग्लूकोज़ लेवल को डाइट और एक्सरसाइज़ से नियंत्रित कर सकते हैं, लेकिन ज़्यादातर लोगों को ब्लड ग्लूकोज़ लेवल कम करने के लिए दवाई की ज़रूरत होती है, जिसमें कभी-कभी इंसुलिन शामिल होता है। टाइप 2 डायबिटीज की दवाई लेने वाले लोगों को अक्सर हर रोज़, दिन में कई बार ब्लड ग्लूकोज़ लेवल की जांच करने की ज़रूरत होती है।

दवाई से डायबिटीज का इलाज करते वक्त डॉक्टर को ध्यान रखना चाहिए, क्योंकि इंसुलिन और मुंह से दी जाने वाली कुछ दवाओं से ब्लड ग्लूकोज़ लेवल बहुत कम (हाइपोग्लाइसीमिया) हो जाता है।

इंसुलिन रिप्लेसमेंट थेरेपी

टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित लोगों को लगभग हर बार इंसुलिन थेरेपी की ज़रूरत होती है और इसके बिना वे काफ़ी बीमार हो जाते हैं। टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित ज़्यादातर लोगों को इंसुलिन की ज़रूरत भी होती है। इंसुलिन को त्वचा के नीचे इंजेक्ट किया जाता है। कुछ खास लोगों के लिए, सूंघने के लिए इंसुलिन उपलब्ध होता है, हालांकि यह आम नहीं है। इंसुलिन को मुंह से नहीं लिया जा सकता, क्योंकि पेट के अंदर इंसुलिन नष्ट हो जाता है। नए तरह के इंसुलिन टेस्ट किए जा रहे हैं, जैसे कि वे प्रकार जिन्हें मुंह से लिया जा सके।

इंसुलिन को त्वचा के नीचे की मोटी परत में इंजेक्ट किया जाता है, आमतौर पर बांह, जांघ या पेट में। बहुत ही बारीक सुइयों वाली छोटी सिरिंज इंजेक्शन को लगभग दर्द रहित बनाती हैं।

इंसुलिन को अपने साथ रखने और इस्तेमाल करने के लिए इंसुलिन पेन एक आसान तरीका है, जिसमें इंसुलिन से भरी एक कार्ट्रिज होती है, खासतौर पर उन लोगों के लिए अच्छा है जो घर से बाहर कई इंजेक्शन लेते हैं।

एक अन्य डिवाइस इंसुलिन पंप है, जिससे त्वचा में लगे एक छोटे कैनुला (प्लास्टिक की खाली ट्यूब) के माध्यम से एक संग्रह से लगातार इंसुलिन पंप करता रहता है। इंसुलिन प्रबंधन की दर दिन के समय, व्यक्ति के एक्सरसाइज़ करते समय या अन्य पैरामीटर के आधार पर समायोजित की जा सकती है। व्यक्ति अपने खाने की ज़रूरत या ब्लड ग्लूकोज़ लेवल बढ़ने के आधार पर इंसुलिन की अतिरिक्त खुराक ले सकता है। पंप के काम करने का तरीका, शरीर के सामान्य रूप से इंसुलिन बनाने के लगभग समान ही है। जिन लोगों को दिन में तीन से ज़्यादा इंजेक्शन लगाने की ज़रूरत होती है उनके लिए पंप थेरेपी इस्तेमाल की जाती है। कुछ लोगों में, पंप ज़्यादा अच्छे से नियंत्रण कर पाता है, जबकि बाकी लोगों को पंप का इस्तेमाल करना असहज लगता है या इससे कैनुला इन्सर्शन वाली जगह पर घाव हो जाता है।

हाइब्रिड क्लोज़-लूप इंसुलिन-डिलीवरी सिस्टम भी उपलब्ध हैं। इन सिस्टम में (जिसे कभी-कभी कृत्रिम अग्नाशय कहते हैं), लगातार चलने वाले एक ग्लूकोज़ मीटर से मिलने वाले इनपुट के आधार पर, एक एल्गोरिद्म इंसुलिन की मात्रा तय करता है और बेसलाइन इंसुलिन की खुराक दे देता है, जिसके लिए इंसुलिन पंप का इस्तेमाल किया जाता है। हालांकि, इस डिवाइस का इस्तेमाल करने से व्यक्ति के ब्लड ग्लूकोज़ लेवल की जांच करने और खाने से पहले इंसुलिन देने की ज़रूरत खत्म नहीं होती।

इंसुलिन के प्रकार

इंसुलिन के सामान्य तौर पर चार प्रकार होते हैं, जिन्हें शुरू होने की गति और काम करते रहने की अवधि के आधार पर वर्गीकृत किया गया है:

  • तुरंत काम करने वाले इंसुलिन में लिस्प्रो, एस्पार्ट और ग्लूलिसिन इंसुलिन शामिल हैं। ये सबसे तेज़ होते हैं, जो लगभग 1 घंटे में पूरी तरह काम करना शुरू कर देते हैं और 3 से 5 घंटे तक काम करते हैं। तुरंत काम करने वाले इंसुलिन को खाने की शुरुआत में या 15 मिनट पहले इंजेक्ट किया जाता है।

  • धीरे काम करने वाले इंसुलिन, जैसे कि सामान्य इंसुलिन, जो कि थोड़ा धीरे काम करना शुरू करते हैं और तेज़ी से काम करने वाले इंसुलिन से ज़्यादा देर तक सक्रिय रहते हैं। सामान्य इंसुलिन 2 से 4 घंटे में पूरी तरह काम करना शुरू कर देते हैं और 6 से 8 घंटे तक काम करते हैं। इसे खाने से 30 मिनट पहले इंजेक्ट किया जाता है।

  • मध्यम गति से काम करने वाले इंसुलिन, जैसे कि इंसुलिन आइसेफेन (जिसे कभी-कभी न्यूट्रल प्रोटमिन हैगेडॉर्न या NPH कहा जाता है) या U-500 इंसुलिन, 0.5 से 2 घंटे में काम करना शुरू कर देते हैं, 4 से 12 घंटे में पूरी तरह सक्रिय हो जाते हैं और 13 से 26 घंटो तक काम करते हैं, जो कि इस बात पर निर्भर करता है कि मध्यम गति से काम करने वाला कौनसा इंसुलिन इस्तेमाल किया गया है। इस तरह के इंसुलिन का इस्तेमाल सुबह किया जाता है, ताकि दिन के पहले हिस्से को कवर किया जा सके या शाम को किया जाता है, ताकि रात के समय को कवर किया जा सके।

  • लंबे समय तक काम करने वाले इंसुलिन, जैसे कि इंसुलिन ग्लार्जिन, इंसुलिन डिटर्मिर, U-300 इंसुलिन ग्लार्जिन या इंसुलिन डिग्लूडेक का शुरुआत के कुछ घंटों में बहुत कम असर होता है, लेकिन यह 20 से 40 घंटे तक काम करता है, जो कि इसके टाइप पर निर्भर करता है।

तेज़ी से काम करने वाले इंसुलिन और धीरे काम करने वाले इंसुलिन, दोनों को ऐसे लोग इस्तेमाल करते हैं जो दिन में कई इंजेक्शन लेते हैं और जिन्हें खाने के लिए अतिरिक्त इंसुलिन की ज़रूरत होती है।

इंसुलिन के पहले से ही मिक्स किये हुए कुछ कॉम्बिनेशन उपलब्ध हैं। इसके साथ ही, कंसेन्ट्रेटेड इंसुलिन उन लोगों के लिए उपलब्ध हैं जिन्हें इंसुलिन की ज़्यादा खुराक की ज़रूरत होती है।

सूंघे जाने वाले इंसुलिन कुछ स्थितियों में उन लोगों के लिए उपलब्ध हैं जो इंसुलिन के इंजेक्शन ले नहीं सकते या लेना नहीं चाहते। सूंघे जाने वाले इंसुलिन इन्हेलर (अस्थमा इन्हेलर की तरह) उपलब्ध हैं और व्यक्ति इंसुलिन को अवशोषित करने के लिए इसे फेफड़ों में इन्हेल करते हैं। सूंघे जाने वाले इंसुलिन धीरे काम करने वाले इंसुलिन की तरह ही काम करते हैं और इन्हें दिन में कई बार लेना पड़ता है। व्यक्ति को लंबे समय तक काम करने वाले इंसुलिन की ज़रूरत भी पड़ती है। लोग इन्हेल किये जाने वाले इंसुलिन का इस्तेमाल करते हैं, इसलिए डॉक्टर उनके फेफड़ों के प्रकार्य की हर 6 से 12 महीने में जांच करते हैं।

इंसुलिन को 1 महीने तक कमरे के तापमान में खुला रखा जा सकता है, जिसमें उन्हें अपने साथ रखना, काम पर ले जाना या यात्रा पर ले जाना शामिल है। हालांकि इंसुलिन को बहुत गर्मी में खुला नहीं रखना चाहिए और 1 महीने से ज़्यादा समय तक संग्रहित करने के लिए फ़्रिज में रखा जाना चाहिए।

इंसुलिन के टाइप और खुराक का चुनाव

इंसुलिन का चुनाव करना मुश्किल होता है। डॉक्टर इन कारकों को ध्यान में रखते हुए यह चुनाव करते हैं कि कौनसा इंसुलिन सबसे अच्छा है और कितना इंसुलिन इस्तेमाल किया जाना चाहिए:

  • शरीर किस तरह इंसुलिन पर प्रतिक्रिया देता है

  • खाने के बाद रक्त में ग्लूकोज़ की मात्रा कितनी बढ़ती है

  • क्या इंसुलिन की जगह अन्य एंटीहाइपरग्लाइसेमिक दवाओं का इस्तेमाल किया जा सकता है

  • व्यक्ति अपना ब्लड शुगर लेवल मॉनिटर करने और इंसुलिन की खुराक को एडजस्ट करने में कितना इच्छुक और सक्षम है

  • व्यक्ति कितनी बार इंसुलिन का इंजेक्शन लगा सकता है

  • दिन में कितनी गतिविधियां की जाती हैं

  • व्यक्ति को हाइपोग्लाइसीमिया (ब्लड ग्लूकोज़ लेवल कम होना) के लक्षण होने की संभावना कितनी है

कभी-कभी सुबह की खुराक में डॉक्टर व्यक्ति को दो तरह के इंसुलिन संयोजित करके लगाते हैं—एक तेज़ी से काम करने वाले और एक मध्यम गति से काम करने वाले इंसुलिन—का एक सुबह का डोज़। इंसुलिन का दूसरा इंजेक्शन या दोनों रात के खाने या सोते समय लिया जा सकता है।

कुछ लोग हर दिन एक ही मात्रा में इंसुलिन लेते हैं। अन्य लोगों, विशेष रूप से टाइप 1 डायबिटीज से पीड़ित लोगों को अपनी डाइट, एक्सरसाइज़ और रक्त में ग्लूकोज़ की मात्रा के पैटर्न के आधार पर, इंसुलिन की खुराक को एडजस्ट करना होता है, विशेष रूप से भोजन के समय ली जाने वाली खुराक को। साथ ही, अगर व्यक्ति का वज़न कम या ज़्यादा हो या तनाव या बीमारी, विशेष रूप से संक्रमण हों, तो इंसुलिन की खुराक में बदलाव हो सकता है।

एक समायोजी खुराक में लंबे समय तक काम करने वाला इंसुलिन, सुबह के समय या शाम के समय दिया जाता है, जिसके साथ ही दिन के समय खाने के साथ तेज़ी से काम करने वाले इंसुलिन के इंजेक्शन शामिल हैं। इंसुलिन की ज़रूरत में बदलाव होने पर समायोजन किये जाते हैं। इन समायोजन में मदद पाने के लिए, दिन में कई बार ब्लड ग्लूकोज़ लेवल को मापने की ज़रूरत होती है। इस खुराक के लिए व्यक्ति को डायबिटीज के बारे में काफ़ी जानकारी होनी चाहिए, ताकि इलाज की जानकारी पर पूरी तरह ध्यान दिया जा सके।

हाइपोग्लाइसीमिया

इंसुलिन से इलाज करने की सबसे आम जटिलता है ब्लड ग्लूकोज़ लेवल का कम होना (हाइपोग्लाइसीमिया)। हाइपोग्लाइसीमिया उन लोगों को ज़्यादा होता है, जो अपने रक्त में ग्लूकोज़ की मात्रा को नियंत्रित करने के लिए पूरी कोशिश करते हैं।

हल्के या मध्यम हाइपोग्लाइसीमिया के लक्षणों में सिरदर्द, पसीना आना, घबराहट, सिर चकराना, धुंधला दिखना, बेचैनी और भ्रम शामिल हैं। हाइपोग्लाइसीमिया के ज़्यादा गंभीर लक्षणों में सीज़र्स और बेहोशी शामिल हैं। बुजुर्ग लोगों में, हाइपोग्लाइसीमिया से आघात के जैसे लक्षण पैदा हो सकते हैं।

जिन लोगों को अक्सर हाइपोग्लाइसीमिया होता है उन्हें हाइपोग्लाइसेमिक दौरों का पता नहीं चलता, क्योंकि उन्हें लक्षण महसूस नहीं होते (हाइपोग्लाइसीमिया का पता न चलना)।

डॉक्टर लोगों को हाइपोग्लाइसीमिया के लक्षण पहचानना और इसके लक्षणों का इलाज करना सिखाते हैं। आमतौर पर, व्यक्ति ब्लड ग्लूकोज़ लेवल को तुरंत बढ़ाने के लिए कुछ मीठा खा सकता है। व्यक्ति हाइपोग्लाइसीमिया की स्थिति के लिए ग्लूकोज़ की गोलियां भी अपने पास रख सकता है। हाइपोग्लाइसीमिया से पीड़ित लोगों को हाइपोग्लाइसेमिक होने का पता लगाने में भ्रम हो सकता है, इसलिए यह ज़रूरी है कि उनके घर के सदस्यों और विश्वासपात्रों को हाइपोग्लाइसीमिया के लक्षणों की जानकारी हो।

इंसुलिन एंटीबॉडीज

बहुत कम मामलों में, हमारा शरीर इंजेक्ट किये गए इंसुलिन के लिए एंटीबॉडीज तैयार करना शुरू कर देता है, क्योंकि इंजेक्ट किया गया इंसुलिन हमारे शरीर के बनाए इंसुलिन की तरह नहीं होता। ये एंटीबॉडीज शरीर में इंसुलिन की गतिविधि को बिगाड़ सकते हैं, जिससे बहुत ज़्यादा मात्रा में इंसुलिन की ज़रूरत पड़ सकती है।

इंसुलिन के लिए एलर्जिक प्रतिक्रिया

इंसुलिन इंजेक्शन से त्वचा और उसके अंदर मौजूद ऊतकों पर असर पड़ सकता है। एलर्जिक प्रतिक्रिया से इंजेक्शन वाली जगह पर दर्द और जलन हो सकती है, जिसके बाद लाली, खुजली और सूजन हो जाती है जो कई घंटो तक रहती है, ऐसा बहुत कम होता है। बहुत दुर्लभ मामलों में, व्यक्ति को इंसुलिन का इंजेक्शन लगाने के बाद एनाफाइलेटिक प्रतिक्रिया हो सकती है।

इंसुलिन से त्वचा की प्रतिक्रियाएं

इंसुलिन इंजेक्शन से फ़ैट जमा हो सकता है, जिससे त्वचा मोटी दिखती है या फ़ैट हट जाता है जिससे त्वचा में खरोंच आ सकती हैं। हालांकि त्वचा पर हुई यह प्रतिक्रिया कोई एलर्जिक प्रतिक्रिया नहीं होती, लेकिन यह इंजेक्ट किये गए इंसुलिन के अवशोषण को कम कर सकती है। इसलिए यह इंजेक्शन की जगह बदलते रहना चाहिए, उदाहरण के लिए, एक दिन जांघ पर, दूसरे दिन पेट पर और अगले दिन बांह पर लगाने से इन समस्याओं से बचा जा सकता है।

मुंह से ली जाने वाली एंटीहाइपरग्लाइसेमिक दवाएँ

मुँह से ली जाने वाली एंटीहाइपरग्लाइसेमिक दवाएँ अक्सर टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित लोगों रक्त में ग्लूकोज़ की मात्रा को बहुत कम कर देती हैं। हालांकि, ये टाइप 1 डायबिटीज के लिए असरदार नहीं होती। इनके कई प्रकार हो सकते हैं, लेकिन मुंह से ली जाने वाली एंटीहाइपरग्लाइसेमिक दवाएँ चार तरह से ली जा सकती हैं:

  • इंसुलिन स्त्रावित करने वाली अग्नाशय को ज़्यादा इंसुलिन पैदा करने के लिए उत्तेजित करती है

  • इंसुलिन सेंसिटाइज़र इंसुलिन के स्त्राव पर असर नहीं डालते, लेकिन इसके प्रति शरीर की प्रतिक्रिया को बढ़ा देता है

  • कुछ दवाओं से अग्नाशय में ग्लूकोज़ का अवशोषण धीमा हो जाता है

  • अन्य दवाओं से यूरिन में ज़्यादा ग्लूकोज़ बह जाता है

इंसुलिन सेक्रेटागॉग्स करने वालों में सल्फ़ोनिलयूरियास (उदाहरण के लिए, ग्लाइबुराइड, ग्लिपीज़ाइड और ग्लिमेपिराइड) और मेग्लिटिनाइडेस (उदाहरण के लिए, रेपेग्लिनाइड और नेटग्लिनाइड)।

इंसुलिन सेंसिटाइज़र में बाइगुआनाइड्स (उदाहरण के लिए मेटफ़ॉर्मिन) और थियाज़ोलिडिनेडाइऑन (जैसे पियोग्लिटाज़ोन) शामिल हैं।

जिन दवाओं से पेट में ग्लूकोज़ का अवशोषण धीमा हो जाता है उनमें अल्फा-ग्लूकोसियाडेस इन्हिबिटर (उदाहरण के लिए अकार्बोस और मिग्लिटोल) शामिल हैं।

जिन दवाओं से यूरिन में ग्लूकोज़ ज़्यादा निकलता है उनमें सोडियम-ग्लूकोज़ को-ट्रांसपोर्टर-2 (SGLT2) इन्हिबिटर शामिल हैं (उदाहरण के लिए, केनाग्लिफ़्लोज़िन, डेपाग्लिफ़्लोज़िन और एंपेग्लिफ़्लोज़िन)।

डाइपेप्टाइडिल पेप्टाइडेज़-4 (DPP 4) इन्हिबिटर (उदाहरण के लिए, सिटाग्लिप्टिन, सेक्साग्लिप्टिन, लिनाग्लिप्टिन और एलोग्लिप्टिन) दोनों अग्नाशय को ज़्यादा इंसुलिन पैदा करने और आंतों को ग्लूकोज़ के अवशोषण को धीमा करने के लिए उत्तेजित करते हैं। ये दवाएँ ग्लूकागॉन-जैसे पेप्टाइड 1 (GLP-1) को बढ़ाती हैं।

अगर डाएट लेने और कसरत करने से ब्लड में ग्लूकोज़ की मात्रा उचित रूप से कम न हो रही हो, तो टाइप 2 डायबिटीज से ग्रसित व्यक्ति को अक्सर मुंह से ली जाने वाली एंटीहाइपरग्लाइसेमिक दवाइयाँ लिखी जानी चाहिए। ग्लूकोज़ के लेवल और वज़न कम करने वाली दवाई की ज़रूरत के आधार पर, निदान के समय एक दवाई या एकाधिक दवाइयाँ शुरू की जा सकती हैं। सबसे शुरू में दी जाने वाली एक दवाई मेटफ़ॉर्मिन है, लेकिन अगर एक दवाई पर्याप्त न हो, तो मुंह से दी जाने वाली एक से ज़्यादा तरह की दवाइयों और मुंह से दी जाने वाली किसी दवाई के साथ इंसुलिन, इंजेक्शन से दी जा सकने वाली ग्लूकागॉन-जैसा पेप्टाइड 1 (GLP-1) दवाई या GLP-1 और ग्लूकोज़-डिपेंडेंट इंसुलिनोट्रॉपिक पोलिपेप्टाइड (GIP) वाली संयोजन दवाई का उपयोग किया जा सकता है। डायबिटीज के उपचार के लिए अक्सर दवाई में बदलाव करने और समय के साथ और भी दवाइयाँ लेने की ज़रूरत होती है।

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इंजेक्ट किए जाने योग्य एंटीहाइपरग्लाइसेमिक दवाएँ

इंसुलिन सबसे आम इंजेक्ट किए जाने योग्य एंटीहाइपरग्लाइसेमिक दवा है। इसका इस्तेमाल ऊपर बताया गया है।

इंजेक्शन से दी जा सकने वाली एंटीहाइपरग्लाइसेमिक दवाइयों के 3 और प्रकार हैं:

  • ग्लूकागॉन-जैसे पेप्टाइड 1 (GLP-1) दवाएँ

  • संयोजन दवाई जिसमें GLP-1 और ग्लूकोज़-डिपेंडेंट इंसुलिनोट्रॉपिक पोलिपेप्टाइड (GIP) शामिल होते हैं

  • एमिलिन-जैसी दवाएँ

इंजेक्ट किए जाने योग्य एंटीहाइपरग्लाइसेमिक दवा दूसरी एंटीहाइपरग्लाइसेमिक दवा के साथ दी जाती है।

ग्लूकागॉन-जैसी पेप्टाइड दवाएँ (GLP-1 दवाएँ) मुख्य तौर पर अग्नाशय में इंसुलिन का स्त्राव बढ़ाकर काम करती हैं। ये दवाएँ पेट में से खाने के बाहर जाने की गति को धीमा करती हैं (ब्लड ग्लूकोज़ की मात्रा के बढ़ने को धीमा करती हैं) और भूख को कम करती हैं और वज़न कम करती हैं। GLP-1 दवाएँ इंजेक्शन के साथ दी जाती हैं। इसके सबसे आम दुष्प्रभाव मतली और उल्टी होना हैं। इन दवाओं से पैंक्रियाटाइटिस का खतरा बढ़ जाता है (अग्नाशय में दर्दनाक सूजन), हालांकि इसके सबूत साफ़ नहीं हैं। इनका इस्तेमाल उन लोगों को नहीं करना चाहिए जिन्हें खुद या परिवार में किसी को मेडुलरी थायरॉइड कैंसर हो, क्योंकि जानवरों पर अध्ययन में थायरॉइड ट्यूमर होने का खतरा सामने आया है। अभी तक, बड़े क्लिनिकल ट्रायल के डेटा से यह पता नहीं चला है कि इस तरह के कैंसर का खतरा इंसानों को भी है।

टिरज़ेपेटाइड एक ऐसा दवाई है जो दोनों GLP-1 रिसेप्टर (जैसे कि GLP-1 दवाइयाँ) पर काम करती है और ग्लूकोज़ इंसुलिनोट्रॉपिक पोलिपेप्टाइड नाम के एक अन्य रिसेप्टर (GIP) पर भी काम करती है, जो कि इंसुलिन के सेक्रेशन और वज़न कम करने पर असर डालती है। जिन लोगों को टाइप 2 डायबिटीज और मोटापा है वे भी इस दवा का इस्तेमाल कर सकते हैं।

एमिलिन-जैसी दवाएँ एमिलिन की तरह काम करती हैं, जो अग्नाशय का ऐसा हार्मोन है जो खाना खाने के बाद ग्लूकोज़ लेवल ठीक करने में मदद करता है। प्रैमलिनटाइड अभी सिर्फ़ एमिलिन के जैसी दवाई में उपलब्ध है। यह ग्लूकागॉन नाम के हार्मोन के स्त्राव पर दबाव डालता है। ग्लूकागॉन से ब्लड ग्लूकोज़ बढ़ता है, इसलिए प्रैमलिनटाइड ब्लड ग्लूकोज़ का लेवल कम करने में मदद करता है। यह शरीर में से खाने के बाहर आने का रास्ता दिखाता है और व्यक्ति को पेट भरे होने का अहसास दिलाता है। यह इंजेक्शन के माध्यम से दिया जाता है और टाइप 1 या टाइप 2 डायबिटीज से पीड़ित लोगों को, खाने के समय इंसुलिन के साथ दिया जाता है।

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रोग-संशोधन करने वाली दवाई

मोनोक्लोनल एंटीबॉडी, टेप्लिज़ुमैब, टाइप 1 डायबिटीज से ग्रसित कुछ लोगों में लक्षणों के शुरू होने में देरी कर सकती है। लोगों को 14 दिनों तक हर दिन टेप्लिज़ुमैब का एक इन्फ़्यूज़न दिया जाता है और दवाई करीब-करीब 2 सालों तक लक्षणों के शुरू होने में देरी करती है।

डायबिटीज से पीड़ित लोगों को अन्य दवाएँ दी जा सकती हैं

डायबिटीज मैलिटस से पीड़ित लोगों को जटिलताएं होने का खतरा होता है, जैसे हार्ट अटैक या आघात, इसलिए यह ज़रूरी है कि वे लोग इन जटिलताओं से बचें या इनका इलाज करें। किसी वजह के बिना व्यक्ति को ऐसी दवाएँ नहीं दी जाती (उदाहरण के लिए, दवा से एलर्जी होना), उन्हें ये दवाएँ दी जाती हैं:

  • एंजियोटेन्सिन कन्वर्टिंग एंज़ाइम (ACE) अवरोधक या एंजियोटेन्सिन II रिसेप्टर ब्लॉकर्स (ARB): जिन लोगों को डायबिटीज है और हाई ब्लड प्रेशर या क्रोनिक किडनी रोग है

  • एस्पिरिन: जिन लोगों को डायबिटीज है और कार्डियोवैस्कुलर रोग होने के जोखिम कारक हैं

  • स्टेटिन: डायबिटीज से पीड़ित 40 से 75 साल की उम्र के लोगों में कार्डियोवैस्कुलर रोग का खतरा कम करने के लिए

अधिक जानकारी

निम्नलिखित अंग्रेजी भाषा के संसाधन उपयोगी हो सकते हैं। कृपया ध्यान दें कि संसाधनों की सामग्री के लिए मैन्युअल उत्तरदायी नहीं है।

  1. American Diabetes Association: डायबिटीज के साथ जीने के संसाधनों सहित डायबिटीज पर पूरी जानकारी

  2. JDRF (previously called Juvenile Diabetes Research Foundation): टाइप 1 डायबिटीज मैलिटस के बारे में सामान्य जानकारी

  3. National Institute of Diabetes and Digestive and Kidney Diseases: डायबिटीज के बारे में सामान्य जानकारी, जिसमें नवीनतम अनुसंधान और सामुदायिक पहुंच कार्यक्रम शामिल हैं