हृदय का जीव विज्ञान

इनके द्वाराJessica I. Gupta, MD, University of Michigan Health;
Michael J. Shea, MD, Michigan Medicine at the University of Michigan
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया मई २०२२ | संशोधित सित. २०२२

कार्डियोवैस्कुलर (संचरण) तंत्र हृदय और रक्त वाहिकाएं से बनता है। हृदय रक्त को फेफड़ों में पंप करता है ताकि वह वहाँ से ऑक्सीजन ले सके और फिर ऑक्सीजन से प्रचुर रक्त को शरीर में पंप करता है। इस प्रणाली में संचरित होने वाला रक्त शरीर के ऊतकों को ऑक्सीजन और पोषक तत्व प्रदान करता है और ऊतकों से अपशिष्ट उत्पादों (जैसे कि कार्बन डाइआक्साइड) को हटाता है।

हृदय, जो एक खोखला मांसल अवयव है, सीने के केंद्र में स्थित होता है। हृदय के दो पक्ष होते हैं, दायां और बायां। हृदय के प्रत्येक दायें और बायें पक्ष में होता है एक:

  • आलिंद: ऊपरी कक्ष जो रक्त एकत्र करता है और उसे निचले कक्ष में पंप करता है

  • निलय: निचला कक्ष, जो रक्त को हृदय से बाहर पंप करता है

यह सुनिश्चित करने के लिए कि रक्त केवल एक दिशा में प्रवाहित हो, प्रत्येक निलय में एक “इन” (इनलेट) वाल्व और एक “आउट” (आउटलेट) वाल्व होता है।

बायें निलय में, इनलेट वाल्व माइट्रल वाल्व, और आउटलेट वाल्व एओर्टिक वाल्व होता है। दायें निलय में, इनलेट वाल्व ट्राइकस्पिड वाल्व, और आउटलेट वाल्व पल्मोनिक (पल्मोनरी) वाल्व होता है।

प्रत्येक वाल्व में फ्लैप (कस्प या लीफलेट) होते हैं, जो एक तरफ झूलने वाले दरवाजों की तरह खुलते और बंद होते हैं। माइट्रल वाल्व में दो कस्प होते हैं। अन्य वाल्वों (ट्राइकस्पिड, एओर्टिक, और पल्मोनिक) में तीन कस्प होते हैं। बड़े इनलेट वाल्वों (माइट्रल और ट्राइकस्पिड) में जंजीरें (टेदर) होती हैं–-जो पैपिलरी मांसपेशियों और ऊतकों की रस्सियों से बनती हैं–-जो वाल्वों को पीछे की ओर आलिंदों में झूलने से रोकती हैं। यदि पैपिलरी मांसपेशी क्षतिग्रस्त हो जाती है (जैसे, दिल के दौरे से), तो वाल्व पीछे की ओर झूल सकता है और रिसने लगता है (जिसे रीगर्जिटेशन कहते हैं)। यदि वाल्व का छिद्र संकरा हो जाता है (जिसे स्टेनोसिस कहते हैं), तो वाल्व से रक्त का प्रवाह कम हो जाता है। एक ही वाल्व में रिसाव और संकरापन दोनों हो सकते हैं।

धड़कनें इस बात का प्रमाण हैं कि हृदय पंपिंग कर रहा है। डॉक्टर अक्सर धड़कन की आवाज़ का वर्णन लब-डब के रूप में करते हैं। जब डॉक्टर स्टेथस्कोप से धड़कन को सुनते हैं, तो उन्हें सुनाई देने वाली पहली आवाज़ (लब-डब में से लब), माइट्रल और ट्राइकस्पिड वाल्वों के बंद होने की आवाज़ होती है। दूसरी आवाज़ (डब) एओर्टिक और पल्मोनिक वाल्वों के बंद होने की आवाज़ होती है। प्रत्येक धड़कन के दो हिस्से होते हैं:

  • सिस्टोल: सिस्टोल के दौरान, निलय संकुचित होते हैं और रक्त को हृदय से बाहर पंप करते हैं, तथा आलिंद शिथिल होते हैं और फिर से रक्त से भरने लगते हैं।

  • डायस्टोल: डायस्टोल के दौरान, निलय शिथिल होते हैं और रक्त से भरते हैं। फिर आलिंद संकुचित होते हैं, जिससे निलयों में अधिक रक्त जाता है।

हृदय का कार्य

हृदय का एकमात्र कार्य रक्त को पंप करना है।

  • हृदय का दायां पक्ष: रक्त को फेफड़ों में पंप करता है, जहाँ रक्त में ऑक्सीजन मिलाई जाती है और कार्बन डाइआक्साइड निकाली जाती है

  • हृदय का बायां पक्ष: शरीर के शेष भाग में रक्त को पंप करता है, जहाँ ऊतकों को ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की आपूर्ति मिलती है और अपशिष्ट उत्पादों (जैसे कार्बन डाइआक्साइड) को अन्य अवयवों (जैसे कि फेफड़े और गुर्दे) द्वारा निकाले जाने के लिए रक्त में स्थानांतरित किया जाता है।

हृदय के अंदर का एक दृश्य

हृदय का यह क्रॉस-सेक्शनल दृश्य सामान्य रक्त प्रवाह की दिशा दर्शाता है।

रक्त निम्नलिखित मार्ग से यात्रा करता है: शरीर से आने वाला रक्त, जो ऑक्सीजन से रहित और कार्बन डाइआक्साइड से लदा होता है, दो सबसे बड़ी शिराओं के माध्यम से–-सुपीरियर वेना केवा और इन्फीरियर वेना केवा, जिन्हें सामूहिक रूप से वेने केवा कहा जाता है–-दायें आलिंद में प्रवाहित होता है। जब दायां निलय शिथिल होता है, तब दायें आलिंद में मौजूद रक्त ट्राइकस्पिड वाल्व के माध्यम से दायें निलय में प्रवेश करता है। जब दायां निलय लगभग पूरा भर जाता है, तो दायां आलिंद संकुचित होता है, जिससे उसका अतिरिक्त रक्त दायें निलय में चला जाता है, जो इसके बाद संकुचित होता है। यह संकुचन ट्राइकस्पिड वाल्व को बंद कर देता है और रक्त को पल्मोनरी वाल्व के माध्यम से पल्मोनरी धमनियों में आगे बढ़ाता है, जो रक्त को फेफड़ों में ले जाती हैं। फेफड़ों में, रक्त महीन केशिकाओं में से बहता है जो वायु की थैलियों को घेरे रहती हैं। यहाँ, रक्त ऑक्सीजन अवशोषित करता है और कार्बन डाइआक्साइड को त्याग देता है, जिसे सांस में बाहर छोड़ा जाता है।

अब ऑक्सीजन से प्रचुर हो चुका रक्त फेफड़ों से पल्मोनरी शिराओं के माध्यम से बायें आलिंद में प्रवाहित होता है। जब बायां निलय शिथिल होता है, तब बायें आलिंद में मौजूद रक्त माइट्रल वाल्व के माध्यम से बायें निलय में प्रवेश करता है। जब बायां निलय लगभग पूरा भर जाता है, तो बायां आलिंद संकुचित होता है, जिससे उसका अतिरिक्त रक्त बायें निलय में चला जाता है, जो इसके बाद संकुचित होता है। (वृद्ध लोगों में, बायां निलय बायें आलिंद के संकुचित होने से पहले इतनी अच्छी तरह से नहीं भरता है, जिस वजह से बायें आलिंद का यह संकुचन विशेष रूप से महत्वपूर्ण होता है।) बायें निलय का संकुचन माइट्रल वाल्व को बंद करता है और रक्त को एओर्टिक वाल्व के माध्यम से महाधमनी में धकेलता है, जो शरीर की सबसे बड़ी धमनी है। यह रक्त फेफड़ों के सिवाय शरीर के सभी भागों में ऑक्सीजन ले जाता है।

पल्मोनरी संचरण हृदय के दायें पक्ष, फेफड़ों, और बायें आलिंद में से गुजरने वाला सर्किट है।

प्रणालीगत संचरण हृदय के बायें पक्ष, अधिकांश शरीर और दायें आलिंद में से गुजरने वाला सर्किट है।

हृदय की रक्त आपूर्ति

सभी अवयवों की तरह, हृदय की मांसपेशी को ऑक्सीजन से प्रचुर रक्त की लगातार आपूर्ति की जरूरत होती है। हालांकि हृदय के कक्ष रक्त से भरे होते हैं, हृदय की मांसपेशी को अपनी स्वयं की समर्पित रक्त आपूर्ति की जरूरत होती है जिसे कहा जाता है

  • करोनरी संचरण

करोनरी संचरण धमनियों और शिराओं की प्रणाली है जो हृदय की मांसपेशी (मायोकार्डियम) को ऑक्सीजन से प्रचुर रक्त की आपूर्ति करती हैं और फिर कम ऑक्सीजन वाले रक्त को दायें आलिंद में लौटाती है।

दायीं करोनरी धमनी और बायीं करोनरी धमनी महाधमनी से (उसके हृदय से बाहर निकलने के तत्काल बाद) निकलती हैं और हृदय की मांसपेशी को ऑक्सीजन से प्रचुर रक्त वितरित करती हैं। ये दो धमनियाँ अन्य धमनियों में विभाजित होती हैं जो हृदय को भी रक्त की आपूर्ति करती हैं। हृदय की शिराएं हृदय की मांसपेशी से रक्त को एकत्र करती हैं और उसे हृदय की पिछली सतह पर स्थित एक बड़ी शिरा, जिसे करोनरी साइनस कहते हैं, में खाली करती हैं, जहाँ से रक्त दायें आलिंद में वापस जाता है। हृदय के संकुचित होने पर उसमें बनने वाले विशाल दबाव के कारण, अधिकांश रक्त करोनरी संचरण के माध्यम से केवल तभी प्रवाहित होता है जब धड़कनों के बीच निलय शिथिल हो रहे होते हैं (डायस्टोल के दौरान)।

हृदय को रक्त की आपूर्ति करना

शरीर के किसी भी अन्य ऊतक की तरह, हृदय की मांसपेशी को भी ऑक्सीजन से प्रचुर रक्त प्राप्त होना चाहिए और रक्त द्वारा वहाँ से अपशिष्ट उत्पादों को हटाया जाना चाहिए। दायीं करोनरी धमनी और बायीं करोनरी धमनी, जो महाधमनी के हृदय से बाहर निकलने के तत्काल बाद उससे निकलती हैं, हृदय की मांसपेशी को ऑक्सीजन से प्रचुर रक्त वितरित करती हैं। दायीं करोनरी धमनी मार्जिनल धमनी और पोस्टीरियर इंटरवेंट्रिकुलर धमनी में विभाजित होती है, जो हृदय की पिछली सतह पर स्थित होती हैं। बायीं करोनरी धमनी (जिसे आमतौर पर लेफ्ट मेन करोनरी धमनी कहते हैं) सर्कुमफ्लेक्स और लेफ्ट एंटीरियर डेसेंडिंग धमनी में विभाजित होती है। हृदय की शिराएं हृदय की मांसपेशी से अपशिष्ट उत्पादों से युक्त रक्त को एकत्र करती हैं और उसे हृदय की पिछली सतह पर स्थित एक बड़ी शिरा, जिसे करोनरी साइनस कहते हैं, में खाली करती हैं, जहाँ से रक्त दायें आलिंद में वापस जाता है।

हृदय का विनियमन

हृदय में मांसपेशी तंतुओं का संकुचन बहुत संगठित और अत्यंत नियंत्रित होता है। हृदय की मांसपेशी का प्रत्येक तंतु एक ही समय पर संकुचित नहीं होता है। इसकी बजाय, तंतु एक ऐसे अनुक्रम में संकुचित होते हैं जो रक्त को हृदय के प्रत्येक कक्ष से बाहर सबसे अच्छी तरह से पंप करता है। इस संकुचन अनुक्रम को लयबद्ध विद्युतीय आवेगों (डिस्चार्ज) द्वारा नियंत्रित किया जाता है जो हृदय के माध्यम से विशिष्ट पथों से सटीक ढंग से और नियंत्रित रफ्तार पर प्रवाहित होते हैं। ये आवेग हृदय के प्राकृतिक पेसमेकर (साइनस या साइनोएट्रियल नोड–दायें आलिंद की दीवार में ऊतक का एक छोटा सा पिंड) में शुरू होते हैं, जो एक छोटा सा विद्युतीय करेंट उत्पन्न करता है।

हृदय के विद्युतीय मार्ग को ट्रेस करना

साइनोएट्रियल (साइनस) नोड (1) एक विद्युतीय आवेग आरंभ करता है जो दायें और बायें आलिंदों (2) में से प्रवाहित होता है, जिससे वे संकुचित होते हैं। जब विद्युतीय आवेग एट्रियोवेंट्रिकुलर नोड (3) में पहुँचता है, तो उसमें थोड़ा सा विलम्ब होता है। इसके बाद आवेग बंडल ऑफ हिज़ (4) में प्रवेश करता है, जो दायें निलय (5) के लिए राइट बंडल ब्रांच और बायें निलय (5) के लिए लेफ्ट बंडल ब्रांच में विभाजित होता है। फिर आवेग निलयों में फैल जाता है, जिससे वे संकुचिात होते हैं।

हृदय एक मिनट में जितनी बार धड़कता है, उस संख्या को हृदय दर या नब्ज कहते हैं। जब शरीर को अधिक ऑक्सीजन की जरूरत होती है तो हृदय दर बढ़ जाती है (जैसे कसरत के दौरान)। जब शरीर को कम ऑक्सीजन की जरूरत होती है तो हृदय दर कम हो जाती है (जैसे विश्राम के दौरान)।

साइनस नोड जिस दर पर अपने आवेग भेजता है, हृदय दर उससे प्रशासित होती है। साइनस नोड की आवेगों को भेजने की अपनी खुद की दर होती है। इस दर को स्वायत्त तंत्रिका प्रणाली के दो परस्पर विरोधी भागों द्वारा संशोधित किया जा सकता है–-एक भाग हृदय की रफ्तार को बढ़ाता है (तंत्रिका प्रणाली का सिम्पेथेटिक प्रभाग) और एक उसे धीमा करता है (पैरासिम्पेथेटिक प्रभाग)।

  • सिम्पेथेटिक प्रभाग सिम्पेथेटिक प्लेक्सस नामक तंत्रिका जाल के माध्यम से तथा एपिनेफ्रीन (एड्रीनलीन) और नॉरएपिनेफ्रीन (नॉरएड्रीनलीन) हार्मोनों के माध्यम से काम करता है, जो एड्रीनल ग्रंथियों और तंत्रिकाओं के सिरों द्वारा रिलीज़ होते हैं।

  • पैरासि्म्पेथेटिक प्रभाग केवल एक तंत्रिका––वैगस तंत्रिका––के माध्यम से काम करता है, जो न्यूरोट्रांसमिटर एसीटाइलकोलीन रिलीज़ करती है।