खुद पर थोपा गया नकली विकार

इनके द्वाराJoel E. Dimsdale, MD, University of California, San Diego
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया अग. २०२२

नकली विकार में बिना किसी स्पष्ट बाहरी कारण के शारीरिक या मनोवैज्ञानिक लक्षण होने या हो रहे होने का दिखावा किया जाता है।

  • कारण अज्ञात हैं, लेकिन तनाव और गंभीर व्यक्तित्व विकार इसमें योगदान कर सकते हैं।

  • लक्षण नाटकीय और विश्वसनीय हो सकते हैं।

  • लोग उपचार की खोज में एक डॉक्टर या अस्पताल से दूसरे तक घूमते रहते हैं।

  • डॉक्टर अन्य विकारों के न होने की पुष्टि करने और यह प्रमाण पा लेने के बाद ही इस विकार का निदान करते हैं कि लक्षण नकली हैं।

  • इसके कोई स्पष्ट रूप से कारगर उपचार नहीं हैं, लेकिन मनश्चिकित्सा उपयोगी हो सकती है।

खुद पर थोपे जाने वाले नकली विकार को पहले मन्चौसेन सिंड्रोम कहते थे। नकली विकार को किसी अन्य व्यक्ति पर भी थोपा जा सकता है (देखें किसी अन्य व्यक्ति पर थोपा गया नकली विकार और दैहिक लक्षण और संबंधित विकारों का संक्षिप्त वर्णन)।

खुद पर थोपे जाने वाले नकली विकार से ग्रस्त लोग बार-बार दिखावा करते हैं कि उन्हें कोई विकार है। यदि उन्हें कोई विकार है, तो वे लक्षणों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं या उनके बारे में झूठ बोलते हैं, और दिखावा करते हैं कि वे वास्तविकता से अधिक अस्वस्थ या कमज़ोर हैं। हालाँकि, यह विकार सीधी-सादी बेईमानी से अधिक पेचीदा है। यह एक मानसिक स्वास्थ्य समस्या है जो गंभीर भावनात्मक कठिनाइयों से जुड़ी होती है।

खुद पर थोपे जाने वाले नकली विकार का कारण अज्ञात है, लेकिन तनाव और कोई गंभीर व्यक्तित्व विकार, अधिकतर सीमावर्ती व्यक्तित्व विकार, शामिल हो सकता है। लोगों का भावनात्मक और शारीरिक दुर्व्यवहार का आरंभिक इतिहास हो सकता है, या उन्हें बचपन के दौरान कोई गंभीर अस्वस्थता हुई हो सकती है या उनका कोई गंभीर रूप से अस्वस्थ संबंधी हो सकता है। उन्हें अपनी पहचान और/या आत्मसम्मान के साथ समस्याओं के साथ-साथ अस्थिर रिश्तों की समस्याएँ भी होती हैं। अस्वस्थता का बहाना बनाना अपनी अस्वस्थता के लिए सामाजिक या कार्यस्थल की समस्याओं को दोषी ठहरा कर, प्रतिष्ठित डॉक्टरों और चिकित्सा केंद्रों से संबंधित होकर, या अद्वितीय, बहादुर, या चिकित्सीय जानकार और संभ्रांत प्रतीत होने के द्वारा आत्मसम्मान को बढ़ाने या सुरक्षित करने का तरीका हो सकता है।

इस विकार से ग्रस्त लोग छद्मरोगियों की तरह दिखते हैं क्योंकि उनकी हरकतें सचेतन मन से और इरादतन होती हैं। हालाँकि, छद्मरोगियों के विपरीत, नकली विकार ग्रस्त लोग बाह्य फ़ायदों (जैसे बीमे का भुगतान प्राप्त करना या काम से छुट्टी लेना) से प्रेरित नहीं होते हैं।

लक्षण

खुद पर थोपे गए नकली विकार से ग्रस्त लोग किसी विशेष विकार का संकेत देने वाले शारीरिक लक्षणों का वर्णन कर सकते हैं, जैसे सीने में ऐसा दर्द जो दिल के दौरे के जैसा दिखता है। या वे कई अलग-अलग विकारों से होने वाले लक्षणों की सूचना दे सकते हैं, जैसे मूत्र में खून आना, दस्त, या बुखार। उन्हें अकसर दिखावटी विकार के बारे में बहुत-कुछ पता होता है—जैसे, दिल के दौरे का दर्द सीने से बायीं बाँह या जबड़े में फैल सकता है। वे यह प्रमाणित करने के लिए मेडिकल रिकॉर्डों को बदल सकते हैं कि उन्हें कोई विकार है। कभी-कभी लक्षण उत्पन्न करने के लिए वे स्वयं के साथ कोई चीज़ करते हैं। जैसे, वे अंगुली में सुई चुभा सकते हैं और खून को मूत्र के नमूने में डाल सकते हैं। या वे बुखार और घाव पैदा करने के लिए अपनी त्वचा के नीचे जीवाणु इंजेक्ट कर सकते हैं।

इस विकार से ग्रस्त लोग अक्सर काफ़ी बुद्धिमान और चतुर होते हैं। वे न केवल विकार का विश्वसनीय रूप से दिखावा करना जानते हैं, बल्कि उन्हें चिकित्सीय तौर-तरीकों का भी बढ़िया ज्ञान होता है। वे अपनी देखभाल को तोड़-मरोड़ सकते हैं ताकि उन्हें अस्पताल में भर्ती किया जाए तथा गहन परीक्षण और उपचार किए जाएँ, जिनमें बड़े ऑपरेशन शामिल हैं। उनकी चालबाज़ी सचेतन मन से की जाती है, लेकिन उनकी प्रेरणा और आकर्षित करने की इच्छा अधिकांशतः अचेतन रूप से होती है। वे अक्सर उपचार के लिए एक डॉक्टर या अस्पताल से दूसरे तक घूमते रहते हैं।

खुद पर थोपा गया नकली विकार जीवन भर बना रह सकता है।

निदान

  • एक डॉक्टर का मूल्यांकन

डॉक्टर सबसे पहले एक पूरा चिकित्सीय इतिहास लेकर, व्यापक शारीरिक परीक्षा करके, और परीक्षण करके शारीरिक और मानसिक विकारों के लिए जाँचते हैं। अधिकांश समय, व्यक्ति का लक्षणों का वर्णन विश्वसनीय होता है, और कभी-कभी डॉक्टरों को गुमराह करता है। हालाँकि, डॉक्टर निम्नलिखित के आधार पर विकार के होने का संदेह कर सकते हैं:

  • चिकित्सीय इतिहास नाटकीय लेकिन असंगत होता है।

  • उपचार से लक्षण ठीक होने की बजाए बिगड़ जाते हैं।

  • जब परीक्षणों के परिणाम नकारात्मक आते हैं या लक्षणों के एक समूह का उपचार करने के बाद, लोग अलग लक्षण विकसित कर लेते हैं, या देखभाल के लिए किसी और अस्पताल में जाते हैं।

  • लोगों को चिकित्सीय तौर-तरीकों का विस्तृत ज्ञान होता है।

  • लोग नैदानिक परीक्षण और सर्जिकल प्रक्रियाएँ करवाने को तैयार या उत्सुक रहते हैं।

  • उनका कई अलग-अलग डॉक्टरों और अस्पतालों में बार-बार जाने का इतिहास होता है।

  • वे डॉक्टरों को परिवार के सदस्यों और अतीत में अपना उपचार करने वाले डॉक्टरों से बात करने से रोकते हैं।

खुद पर थोपे गए नकली विकारों का निदान तब किया जाता है जब निम्नलिखित में से सभी की पुष्टि हो जाती है:

  • अन्य विकारों के न होने की पुष्टि होती है।

  • डॉक्टरों को अतिशयोक्ति, दिखावा करने, झूठ बोलने, लक्षणों को खुद उत्पन्न करने, या चिकित्सीय इतिहास में फेरबदल करने के प्रमाण दिखते या मिलते हैं।

  • व्यक्ति को दिखावा करने या लक्षणों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाने से कोई स्पष्ट बाह्य लाभ नहीं मिलता है।

डॉक्टर व्यक्ति को किसी मनोरोग विशेषज्ञ या अन्य मानसिक चिकित्सक के पास भेज सकते हैं।

यदि रोग का निदान जल्दी हो जाता है, तो जोखिमपूर्ण प्रवेशी परीक्षणों, सर्जिकल प्रक्रियाओं, और अनावश्यक उपचारों से बचा जा सकता है।

उपचार

  • कोई स्पष्ट रूप से कारगर उपचार नहीं हैं

कोई स्पष्ट रूप से कारगर उपचार नहीं हैं। यदि लोगों का नकली विकार के लिए उपचार किया जाता है, तो वे अस्थायी रूप से राहत पा सकते हैं लेकिन आम तौर पर अतिरिक्त लक्षणों की सूचना देते हैं और अधिक उपचार की माँग करते हैं। उपचार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा यह है कि डॉक्टरों को अनावश्यक परीक्षण और उपचार करने से बचना चाहिए।

मनश्चिकित्सा, खास तौर से संज्ञानात्मक-व्यवहार-संबंधी थैरेपी से मदद मिल सकती है। यह व्यक्ति की सोच और व्यवहार को बदलने पर केंद्रित होती है। यह विकार को उत्पन्न करने वाले अंतर्निहित मुद्दों को पहचानने और उन पर काम करने में भी व्यक्ति की मदद कर सकती है।