आनुवंशिक नैदानिक प्रौद्योगिकियां

इनके द्वाराQuasar S. Padiath, MBBS, PhD, University of Pittsburgh
द्वारा समीक्षा की गईGlenn D. Braunstein, MD, Cedars-Sinai Medical Center
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया जून २०२५ | संशोधित जुल॰ २०२५
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आनुवंशिक नैदानिक प्रौद्योगिकियां वे वैज्ञानिक विधियां है जिनका उपयोग जीव के जीन को समझने और उनका मूल्यांकन करने के लिए किया जाता है।

(जीन और क्रोमोसोम भी देखें।)

जीन, डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (DNA) के सेगमेंट होते हैं, जिनमें एक खास प्रोटीन का कोड होता है, जो शरीर में एक या इससे ज़्यादा तरह की कोशिकाओं में काम करता है या कार्यात्मक RNA अणुओं के लिए कोड होता है।

आनुवंशिक नैदानिक प्रौद्योगिकी में तेज़ी से सुधार हो रहा है। जीन के भागों की प्रतिलिपि बनाने के लिए या जीन में परिवर्तनों को ढूंढ़ने के लिए विभिन्न विधियों का उपयोग किया जाता है।

पॉलीमरेज़ चेन रिएक्शन (PCR)

पॉलीमरेज़ चेन रिएक्शन (PCR) एक प्रयोगशाला संबंधी तकनीक है जो एक जीन या जीन के खंडों की बहुत सी प्रतिलिपियां बना सकती है, जिससे जीन का अध्ययन करना आसान हो जाता है। प्रयोगशाला में डीऑक्सीराइबोन्यूक्लिक एसिड (DNA) के एक विशिष्ट खंड, जैसे कि एक विशिष्ट जीन, की प्रतिलिपि बनाई (बढ़ी हुई मात्रा में) जा सकती है। एक DNA अणु से आरंभ करते हुए, 30 द्विगुणन होने के अंत तक (केवल कुछ घंटों बाद) लगभग अरबों प्रतिलिपियां तैयार हो जाती हैं।

जीन प्रोब

जीन प्रोब का उपयोग एक विशेष क्रोमोसोम में जीन के किसी विशिष्ट खंड (जीन के DNA का एक खंड) या संपूर्ण जीन का पता लगाने के लिए किया जा सकता है। प्रोब का उपयोग DNA के सामान्य या उत्परिवर्तित खंडों को प्राप्त करने के लिए किया जा सकता है। DNA का वह खंड जिसका क्लोन या प्रतिलिपि तैयार की गई है, उसमें जब रेडियोएक्टिव परमाणु या फ़्लोरेसेंट डाई जोड़ा जाता है तो वह एक लेबल युक्त प्रोब बन जाता है। प्रोब DNA के खंड के छाया-चित्र को ढूंढ़कर उससे जुड़ जाता है। इस लेबल युक्त प्रोब का फिर परिष्कृत अति सूक्ष्म और फ़ोटोग्राफिक तकनीकों द्वारा पता लगाया जा सकता है। जीन प्रोब से, जन्म से पहले और बाद के अनेक विकारों का निदान किया जा सकता है। भविष्य में, जीन प्रोब का उपयोग लोगों में संभवतः एक साथ अनेक प्रमुख आनुवंशिक विकारों की जांच करने के लिए किया जाएगा।

DNA माइक्रोएरेज़ (DNA चिप्स)

DNA चिप्स ऐसे पावरफ़ुल टूल्स होते हैं जिनका इस्तेमाल DNA म्यूटेशंस की पहचान करने के लिए किया जा सकता है। एक ही माइक्रोएरे केवल 1 नमूने का उपयोग करके लाखों अलग-अलग DNA बदलावों का परीक्षण कर सकता है। DNA माइक्रोएरेज़ का इस्तेमाल जीनोम-वाइड एसोसिएशन स्टडीज़ (GWAS) में कर ऐसे वेरिएंट की पहचान की जाती है जिनका रोग में योगदान हो सकता है, इसके लिए बड़ी संख्या में लोगों और सामान्य आबादी के DNA की तुलना की जाती है।

एरे कंपेरेटिव जीनोमिक हाइब्रिडाइज़ेशन (aCGH)

aCGH एक तरह का माइक्रोएरे है जिसका इस्तेमाल अब नियमित रूप से खास क्रोमोसोम में DNA के डिलीट किए गए या डुप्लीकेट किए गए सेगमेंट की पहचान करने के लिए किया जाता है। इस एरे में, किसी एक व्यक्ति के DNA की तुलना रेफ़रेंस जीनोटाइप (व्यक्ति में जीन या आनुवंशिक मेकअप के यूनीक कॉम्बीनेशन) से की जाती है, जिसके लिए कई जांचों का इस्तेमाल किया जाता है। सैंपल का रेफ़रेंस लेने के लिए व्यक्ति के DNA में अलग-अलग रंग वाली फ़्लोरोसेंट डाई जोड़ी जाती हैं। अगर कोई सेगमेंट गायब हो, तो जांच में रेफ़रेंस सैंपल की तुलना में व्यक्ति के DNA सैंपल में फ़्लोरोसेंट डाई की घटी हुई मात्रा का पता चलता है। अगर कोई सेगमेंट डुप्लीकेट या तिगुना हो गया है, तो जांच में रेफ़रेंस सैंपल की तुलना में रोगी के फ़्लोरोसेंट डाई की बढ़ी हुई मात्रा का पता चलता है। इन प्रोब का उपयोग संपूर्ण जीनोटाइप की जांच करने के लिए किया जा सकता है।

अगली-पीढ़ी अनुक्रमण प्रौद्योगिकियां

अगली-पीढ़ी अनुक्रमण प्रौद्योगिकियां संपूर्ण जीनोटाइप (या जीनोम) को छोटे-छोटे खंडों में तोड़कर और फिर कुछ या इन सभी खंडों के DNA अनुक्रम का विश्लेषण करते हुए जीन और DNA के छोटे से छोटे भागों का भी पता लगा सकती हैं। इसके परिणामों का फिर एक शक्तिशाली कंप्यूटर द्वारा विश्लेषण किया जाता है। क्षारकों में एकल या एकाधिक विविधताओं की पहचान की जा सकती है और साथ ही उन क्षेत्रों का पता लगाया जा सकता है जहां क्षारक अनुपस्थित हैं या जहां क्षारकों को गलत स्थान पर जोड़ा गया है। इस प्रौद्योगिकी की लागतों में आश्चर्यजनक रूप से गिरावट आई है और लगातार गिरावट आ रही है। उपकरण और कंप्यूटेशनल विधियों में भी लगातार सुधार हो रहा है।

इनमें से कुछ विविधताओं से डॉक्टरों को आनुवंशिक विकारों का निदान करने में मदद मिल सकती है। अगली-पीढ़ी अनुक्रमण प्रौद्योगिकियां इतनी संवेदनशील हैं कि डॉक्टर माता से लिए गए रक्त नमूने में मौजूद भ्रूण से DNA का पता लगा सकते हैं और उस भ्रूण में डाउन सिंड्रोम है या नहीं उसके निर्धारण के लिए विश्लेषण कर सकते हैं। हालांकि, जीनोटाइप का विश्लेषण करने से जनरेट हुई जानकारी की बहुतायत की वजह से तरह-तरह की समस्याएं हो जाती हैं जिनसे कभी-कभी डॉक्टरों के लिए उन नतीजों को समझना और उनकी व्याख्या करना मुश्किल हो जाता है (उदाहरण के लिए, महत्वपूर्ण अंतरों को अनयमित या नगण्य अंतरों से अलग करना)। इन मुद्दों के बावजूद, ये प्रौद्योगिकियां आनुवंशिक परीक्षण का एक मुख्य आधार बन गई हैं।

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