एट्रोवेंट्रिकुलर (AV) सेप्टल डिफ़ेक्ट्स दिल की समस्याओं का कॉम्बिनेशन है। इनमें हृदय के ऊपरी चेंबर को अलग करने वाली सतह में छेद (एट्रियल सेप्टल डिफ़ेक्ट), दिल के ऊपरी और निचले चेंबर को अलग करने के लिए एक वाल्व (दो वाल्व के बजाय) और कभी-कभी दिल के निचले चेंबर को अलग करने वाली सतह में छेद (वेंट्रिकुलर सेप्टल डिफ़ेक्ट) शामिल हैं।
जिन बच्चों के वेंट्रिकल में कोई समस्या नहीं होती या बिल्कुल हल्की समस्या होती है तो हो सकता है कि उनमें कोई लक्षण न दिखे।
अगर वेंट्रिकुलर सेप्टल डिफ़ेक्ट बड़ा है, तो शिशुओं में खाते समय सांस लेने में समस्या, ठीक से वृद्धि न होना, दिल की धड़कन तेज़ होना और पसीना आना जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
स्टेथोस्कोप से सुनने पर दिल की विशेष आवाज़ के आधार पर डॉक्टर निदान का अंदाज़ा लगाते हैं और ईकोकार्डियोग्राफ़ी से निदान की पुष्टि की जाती है।
समस्याओं को सर्जरी के माध्यम से ठीक किया जाता है।
(दिल की समस्याओं का विवरण भी देखें।)
एट्रियोवेंटिकुलर सेप्टल डिफ़ेक्ट्स दिल की जन्मजात बीमारियों का लगभग 5% हैं।
एट्रियोवेंटिकुलर सेप्टल डिफ़ेक्ट के प्रकार
AV सेप्टल डिफ़ेक्ट इस तरह की हो सकती है
पूरी, जिसमें एट्रिया और वेंट्रिकल दोनों को मिलाकर एक बड़ा डिफ़ेक्ट होता है और साथ ही एक एंट्रियोवेंट्रिकुलर वाल्व मौजूद होता है
मध्यम, जिसमें एट्रियल सेप्टल डिफ़ेक्ट के अलावा हल्के या मध्यम आकार की वेंटिकुलर डिफ़ेक्ट समस्या होती है
आंशिक, जिसमें एट्रियल सेप्टल डिफ़ेक्ट होती है, लेकिन वेंट्रिकुलर सेप्टल डिफ़ेक्ट नहीं होती और सामान्य AV वाल्व एक दाएं और एक बाएं AV वाल्व में अलग हो जाता है
पूरी समस्या वाले ज़्यादातर शिशुओं में डाउन सिंड्रोम होता है। एंट्रियोवेंट्रिकुलर सेप्टल डिफ़ेक्ट उन शिशुओं में आम हैं जिनमें अंग तंत्र से जुड़ी अन्य असामान्यताएं होती हैं, जिनमें बिना स्प्लीन के पैदा होना या कई छोटे स्प्लीन होना शामिल हैं।
एंट्रियोवेंट्रिकुलर सेप्टल डिफ़ेक्ट्स के लक्षण
पूरी एट्रियोवेंट्रिकुलर सेप्टल डिफ़ेक्ट से अक्सर बाएं से दाएं एक बड़ा मुड़ाव आता है, जिसका मतलब है कि पहले से ही फेफड़ों से ऑक्सीजन लेकर निकला कुछ ब्लड, छेद के रास्ते फेफड़ों में वापस चला जाता है। इन शिशुओं का हृदय 4 से 6 हफ़्ते की उम्र में खराब हो सकता है (चित्र देखें हार्ट फ़ेल्योर: पंपिंग और फ़िलिंग की समस्या), जिससे तेज़ी से सांस लेना, भोजन निगलते समय सांस चढ़ना, वज़न का ठीक से न बढ़ना, विकास में समस्या और पसीना आना जैसे लक्षण हो सकते हैं। आखिरकार, फेफड़ों और दिल के बीच की रक्त वाहिका में रक्त प्रवाह बढ़ सकता है (पल्मोनरी हाइपरटेंशन) और हार्ट फ़ेल्योर या शंट दाएं से बाएं की ओर रिवर्सल (आइसेन्मेंजर सिंड्रोम) हो सकता है।
जिन बच्चों में AV सेप्टल डिफ़ेक्ट होते हैं उनमें वेंट्रिकुलर डिफ़ेक्ट के हल्के होने पर कोई लक्षण विकसित नहीं होते। बच्चों में ज़्यादा डिफ़ेक्ट होने पर यह हार्ट फ़ेल होने का संकेत हो सकता है।
आंशिक AV सेप्टल डिफ़ेक्ट से बचपन में आमतौर पर कोई लक्षण नहीं होते, जब तक कि वाल्व में से गंभीर रूप से लीकेज (रिगर्जिटेशन) न हो रही हो। हालांकि, किशोरावस्था के दौरान या व्यस्कता के शुरुआत में लक्षण (उदाहरण के तौर पर, एक्सरसाइज़ न कर पाना, थकान होना, दिल का तेज़ी से धड़कना) विकसित हो सकते हैं। मध्यम या गंभीर वाल्व रिगर्जिटेशन वाले शिशुओं में अक्सर हार्ट फ़ेल होने के संकेत हो सकते हैं।
एंट्रियोवेंट्रिकुलर सेप्टल डिफ़ेक्ट का निदान
इकोकार्डियोग्राफी
इसका निदान शिशु की जांच करते समय डॉक्टर को मिले संकेतों के आधार पर किया जाता है। इस निदान को पूरा करने में मदद करने के लिए इलेक्ट्रोकार्डियोग्राफ़ी (ECG) से महत्वपूर्ण संकेत मिल सकते हैं। दिल का आकार और फेफड़ों में होने वाले ब्लड फ़्लो को देखने के लिए, छाती का एक्स-रे किया जा सकता है।
ईकोकार्डियोग्राफ़ी (दिल की अल्ट्रासोनोग्राफ़ी) निदान की पुष्टि करने, समस्या का आकार पता करने और यह जानने के लिए किया जाता है कि वाल्व में से कितनी मात्रा में ब्लड लीक हो रहा है। कभी-कभी जब डॉक्टरों को इलाज की योजना बनाने से पहले समस्या की गंभीरता या पल्मोनरी हाइपरटेंशन के बारे में ज़्यादा जानकारी की ज़रूरत होती है, तो कार्डिएक कैथीटेराइजेशन किया जाता है।
एंट्रियोवेंट्रिकुलर सेप्टल डिफ़ेक्ट का इलाज
सर्जिकल मरम्मत
क्योंकि पूरी एट्रियोवेंट्रिकुलर सेप्टल डिफ़ेक्ट वाले अधिकांश शिशुओं का हृदय खराब हो जाता है और वे ठीक से बढ़ नहीं पाते, इसलिए 2 से 4 महीने की उम्र के शिशुओं को आमतौर पर सर्जरी से ठीक किया जाता है। हालांकि अगर शिशु की वृद्धि ठीक से हो रही हो और उसे कोई लक्षण न हो, तब भी 6 महीने की उम्र से पहले शिशु की सर्जरी की जाती है, ताकि जटिलताओं को विकसित होने से रोका जा सके।
जिन बच्चों को आंशिक या कोई लक्षण नहीं होते उन्हें बड़े होने से पहले सर्जरी की जाती है, आमतौर पर 1 से 3 साल की उम्र के बीच।
अगर शिशु में हार्ट फ़ेल्योर, सर्जरी करने के पहले विकसित हो जाता है, तो डॉक्टर सर्जरी के पहले लक्षणों को प्रबंधित करने में सहायता के लिए उसे दवाएं जैसे डाईयूरेटिक्स (जो शरीर से अतिरिक्त तरल को बाहर निकालती है) डाइजोक्सिन (जिससे हृदय को ज़्यादा दबाव से पंप करने सहायता मिलती है) और एंजियोटेन्सिन-कनवर्ट करने वाले एंज़ाइम इन्हिबिटर (रक्त वाहिकाओं को आराम देने के लिए और हृदय को ज़्यादा आसानी से पंप करने में सहायता के लिए) देते हैं।
आमतौर पर बच्चों को सर्जरी से समस्या को ठीक कराने के 6 महीने बाद तक, डेंटिस्ट से मिलने से पहले और किसी खास सर्जरी से पहले एंटीबायोटिक्स लेना ज़रूरी होता है (जैसे कि श्वसन तंत्र की सर्जरी)। अगर सर्जरी के बाद भी थोड़ा डिफ़ेक्ट रह जाता है, तो एंटीबायोटिक्स लेना बंद नहीं करना चाहिए। इन एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल एन्डोकार्डाइटिस जैसे इंफ़ेक्शन को ठीक करने के लिए किया जाता है।
अधिक जानकारी
निम्नलिखित अंग्रेजी भाषा के संसाधन उपयोगी हो सकते हैं। कृपया ध्यान दें कि इन संसाधनों की सामग्री के लिए मैन्युअल ज़िम्मेदार नहीं है।
American Heart Association: Common Heart Defects: माता-पिता और देखभाल करने वालों के लिए दिल से जुड़े सामान्य जन्मजात समस्याओं का विवरण देता है
American Heart Association: Infective Endocarditis: इंफ़ेक्टिव एन्डोकार्डाइटिस का विवरण देता है, जिसमें बच्चों और देखभाल करने वालों के लिए एंटीबायोटिक के इस्तेमाल का सार होता है