ब्रोंकोपल्मोनरी डिस्प्लेसिया, नवजात शिशुओं में वेंटिलेटर (एक मशीन जो फेफड़ों में हवा को अंदर और बाहर जाने में मदद करती है) के लंबे समय तक उपयोग, पूरक ऑक्सीजन के ज़्यादा समय तक उपयोग की आवश्यकता या दोनों के कारण होने वाला फेफड़ों का क्रोनिक विकार है।
यह विकार अक्सर उन शिशुओं में होता है जो समय से बहुत पहले पैदा होते हैं, जिन्हें फेफड़ों की गंभीर बीमारी होती है, जिन्हें ज्यादा समय तक वेंटिलेटर या ऑक्सीजन की आवश्यकता होती है या जिनके फेफड़ों में अपर्याप्त रूप से विकसित हवा की थैली होती है।
सांस लेना तेज़, कठिन या दोनों हो सकता है और त्वचा और/या होंठ नीले पड़ सकते हैं, ये सभी ऑक्सीजन थेरेपी या वेंटिलेटर सपोर्ट को लगातार लगाए रखने के संकेत हैं।
निदान इस बात पर आधारित है कि शिशु कैसे सांस ले रहा है और शिशु को कितने समय तक पूरक ऑक्सीजन, वेंटिलेटर या दोनों की जरूरत पड़ती है।
उपचार में पूरक ऑक्सीजन देना, यदि आवश्यक हो तो वेंटिलेटर का उपयोग करना, अच्छा आहार-पोषण देना और यदि आवश्यक हो तो अन्य दवाएँ देना शामिल होता है।
इस विकार वाले अधिकांश शिशु जीवित रहते हैं।
अस्पताल से छुट्टी होने के बाद, प्रभावित नवजात शिशुओं को सिगरेट के धुएं या स्पेस हीटर या चूल्हे के धुएं के संपर्क में नहीं आना चाहिए।
सामान्य श्वसन तंत्र संक्रमण, रेस्पिरेटरी सिंकाइटियल वायरस (RSV) से बचाने के लिए उपयुक्त बच्चों को निर्सेविमैब (या अगर निर्सेविमैब उपलब्ध नहीं है तो पैलिविज़ुमैब) दी जाती है।
(नवजात शिशुओं में सामान्य चोटों का विवरण भी देखें।)
ब्रोंकोपल्मोनरी डिस्प्लेसिया (BPD) फेफड़ों से संबंधित एक क्रोनिक विकार है, जो अक्सर उन शिशुओं में होता है, जो बहुत प्रीमैच्योर पैदा होते हैं (गर्भावस्था के 32 सप्ताह से पहले डिलिवर हो जाते हैं) और जो फेफड़े के किसी गंभीर विकार (जैसे रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम) या संक्रमण (जैसे इंट्रा-एम्नियोटिक संक्रमण या सेप्सिस) के साथ पैदा होते हैं। BPD विशेष रूप से उन शिशुओं को प्रभावित करता है जिन्हें जन्म के बाद कुछ हफ्तों से अधिक समय तक वेंटिलेटर (एक मशीन जो फेफड़ों में हवा को अंदर और बाहर जाने में मदद करती है), पूरक ऑक्सीजन या दोनों के साथ इलाज की आवश्यकता होती है।
आमतौर पर, BPD भी निरंतर सकारात्मक वायुमार्ग दबाव (CPAP—एक ऐसी तकनीक है जो नवजात शिशुओं को नाक की नली के माध्यम से थोड़ा दबाव वाली हवा या ऑक्सीजन लेते हुए खुद से सांस लेने में मदद करती है) के परिणामस्वरूप होने वाली जटिलता के रूप में हो सकता है।
फेफड़ों के नाजुक ऊतकों को तब चोट लग सकती है जब हवा की थैलियां वेंटिलेटर द्वारा या CPAP के माध्यम से दिए गए दबाव से अधिक खिंच जाती हैं या जब वे कुछ समय के लिए उच्च ऑक्सीजन स्तर के संपर्क में आते हैं। नतीजतन, फेफड़ों में सूजन आ जाती है और फेफड़ों के भीतर अतिरिक्त द्रव जमा हो जाता है। प्रभावित शिशु में सामान्य संख्या में हवा की थैलियों का विकास नहीं हो पाता है।
BPD कुछ ऐसे शिशुओं में भी हो सकता है जो बहुत प्रीमेच्योर पैदा हुए थे लेकिन जिन्हें फेफड़े का कोई विकार नहीं था जिसके लिए वेंटिलेटर से उपचार की आवश्यकता पड़े।
समय पर जन्मे नवजात शिशु जिन्हें फेफड़े संबंधी विकार होते हैं, उनमें कभी-कभी BPD का विकास हो जाता है।
ब्रोंकोपल्मोनरी डिस्प्लेसिया के लक्षण
प्रभावित नवजात शिशु आमतौर पर तेजी से सांस लेते हैं और सांस लेने में परेशानी (श्वसन तंत्र संकट) के लक्षण हो सकते हैं, जैसे कि सांस लेते समय छाती के निचले हिस्से में खिंचाव होना और रक्त में ऑक्सीजन का निम्न स्तर होना। रक्त में ऑक्सीजन का निम्न स्तर त्वचा और/या होठों (सायनोसिस) के नीले रंग का कारण बनता है।
नवजात अश्वेत शिशुओं में त्वचा पीले-भूरे, भूरे या सफेद जैसे रंगों में बदल सकती है। ये बदलाव मुंह, नाक और पलकों के अंदर की म्युकस मेम्ब्रेन में अधिक आसानी से देखे जा सकते हैं।
इन सभी लक्षणों और संकेतों से पता चलता है कि नवजात शिशु को अभी भी पूरक ऑक्सीजन या वेंटिलेटर की जरूरत है।
ब्रोंकोपल्मोनरी डिस्प्लेसिया का निदान
पूरक ऑक्सीजन और/या वेंटिलेटर या CPAP की विस्तारित आवश्यकता
छाती का एक्स-रे
उन शिशुओं में ब्रोंकोपल्मोनरी डिस्प्लेसिय के निदान का संदेह होता है जो समय से पहले पैदा हुए हों, जिन्हें अधिक समय तक (आमतौर पर कई हफ्तों या महीनों के लिए) वेंटिलेशन और/या पूरक ऑक्सीजन या CPAP दिया गया हो, जिनमें श्वसन तंत्र संबंधी परेशानी के लक्षण हों और जिन्हें बाद में भी शायद पूरक ऑक्सीजन की जरूरत हो।
निदान की पुष्टि करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारक यह है कि शिशुओं को जन्म के कम से कम पहले 28 दिनों के लिए पूरक ऑक्सीजन और/या वेंटिलेटर या CPAP की आवश्यकता होती है और फिर भी उन्हें सांस लेने में समस्या होती है।
छाती के एक्स-रे के परिणामों से निदान किया जाता है।
ब्रोंकोपल्मोनरी डिस्प्लेसिया का उपचार
यदि आवश्यक हो तो पूरक ऑक्सीजन या वेंटिलेटर
नवजात शिशु के लिए बढ़ी हुई कैलोरी
कभी-कभी मूत्रवर्धक और तरल पदार्थों का प्रतिबंध
रेस्पिरेटरी सिंकाइटियल वायरस (RSV) संक्रमण की रोकथाम के लिए निर्सेविमैब (या निर्सेविमैब उपलब्ध न होने पर पैलिविज़ुमैब) दी जाती है
डॉक्टर फेफड़ों के संक्रमण का निदान करते हैं और आवश्यकतानुसार उनका इलाज करते हैं।
चूंकि वेंटिलेशन और पूरक ऑक्सीजन फेफड़ों को चोट पहुंचा सकती है, इसलिए डॉक्टर नवजात शिशुओं को जल्द से जल्द वेंटिलेटर और CPAP से निकालने की कोशिश करते हैं और पूरक ऑक्सीजन के उपयोग को कम करते हैं।
नवजात शिशु के फेफड़ों को विकसित करने में मदद हेतु और फेफड़े के नए ऊतकों को स्वस्थ रखने के लिए अच्छा आहार-पोषण महत्वपूर्ण है। नवजात शिशुओं को उनके फेफड़ों को ठीक करने और विकसित होने में मदद करने के लिए हर रोज अधिक मात्रा में कैलोरी दी जाती है।
क्योंकि द्रव, सूजन वाले फेफड़ों में जमा होने लगता है, कभी-कभी तरल पदार्थों का दैनिक सेवन प्रतिबंधित करना पड़ता है। पेशाब बढ़ाने वाली दवाओं के उपयोग से नवजात शिशु की किडनी को पेशाब के साथ अतिरिक्त फ़्लूड निकालने में मदद मिल सकती है।
जिन नवजात शिशुओं में ब्रोंकोपल्मोनरी डिस्प्लेसिया है, उन्हें निरंतर पूरक ऑक्सीजन की आवश्यकता हो सकती है। यदि लंबे समय के लिए वेंटिलेटर आवश्यक हो, तो उनकी श्वासनली में सर्जिकल रूप से बनाए गए छेद के माध्यम से वेंटिलेटर से जुड़ी एक ट्यूब डालनी पड़ सकती है जिसे ट्रैकियोस्टॉमी कहा जाता है।
हॉस्पिटल से छुट्टी के बाद, BPD से ग्रसित शिशुओं को सिगरेट के धुएँ या स्पेस हीटर या चूल्हे के धुएँ के संपर्क में नहीं आना चाहिए। जितना संभव हो सके उन्हें ऊपरी श्वसन तंत्र नली के संक्रमण से ग्रसित लोगों के संपर्क में आने से बचाना चाहिए।
निर्सेविमैब और पैलिविज़ुमैब दो दवाएँ हैं जिनमें RSV के विरुद्ध एंटीबॉडीज होते हैं। ये दवाएँ अमेरिका शिशुओं और बच्चों में RSV की रोकथाम के लिए उपलब्ध हैं। हालांकि, पैलिविज़ुमैब तभी दी जाती है, जब निर्सेविमैब उपलब्ध न हो (RSV की रोकथाम भी देखें)।
6 महीने से अधिक उम्र के शिशुओं को इन्फ्लूएंजा (फ्लू) की वैक्सीन भी लगवानी चाहिए।
ब्रोंकोपल्मोनरी डिस्प्लेसिया का पूर्वानुमान
ब्रोंकोपल्मोनरी डिस्प्लेसिया वाले शिशुओं में आमतौर पर पूरक ऑक्सीजन या सहायक वेंटिलेशन के 2 से 4 महीने के बाद धीरे-धीरे सुधार होता है। हालांकि बहुत गंभीर BPD वाले कुछ शिशु कई महीनों की देखभाल के बाद भी मर जाते हैं, पर अधिकांश शिशु जीवित रहते हैं।
कई महीनों में फेफड़े की चोट की गंभीरता कम हो जाती है क्योंकि स्वस्थ फेफड़े के ऊतक बढ़ जाते हैं। हालाँकि, बाद में, इन बच्चों में मस्तिष्क या केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की वृद्धि और विकास में समस्याएं हो सकती हैं। इन बच्चों में बाद में अस्थमा के साथ-साथ ब्रोन्कियोलाइटिस या निमोनिया जैसे फेफड़ों के संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है।
ब्रोंकोपल्मोनरी डिस्प्लेसिया की रोकथाम
ब्रोंकोपल्मोनरी डिस्प्लेसिया की रोकथाम शिशु के जन्म से पहले शुरू हो जाती है। गर्भावस्था को लम्बा करने से, भले ही केवल कुछ दिनों से लेकर हफ्तों तक और शिशु के फेफड़ों को अधिक तेज़ी से परिपक्व होने में मदद के लिए मां को कॉर्टिकोस्टेरॉइड देने से समय से पहले पैदा होने वाले नवजात शिशु (रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम) में फेफड़ों की बीमारी की गंभीरता को कम किया जा सकता है।
यदि प्रीमैच्योर नवजात शिशु होने के बाद वेंटिलेटर या ऑक्सीजन बहुत ही आवश्यक है, तो फेफड़ों को चोट से बचाने के लिए सबसे कम संभव सेटिंग्स का उपयोग किया जाता है। यह तरीका BPD की रोकथाम का मुख्य आधार है। नवजात शिशुओं को जल्द से जल्द वेंटिलेटर और ऑक्सीजन से निकाल लेना सुरक्षित होता है। सांस को उत्तेजित करने वाली कैफ़ीन जैसी दवाएँ शुरू करने से नवजात शिशुओं को वेंटिलेटर से अलग रखने में मदद मिल सकती है।
प्रीमैच्योर नवजात शिशुओं का जन्म उनके फेफड़ों के सर्फ़ेक्टेंट बनाने से पहले हो सकता है जो एक ऐसा पदार्थ होता है, जो वायु थैली के अंदर एक आवरण बनाता है और वायु थैली को खुला रहने देता है। सर्फ़ेक्टेंट के नहीं होने की वजह से रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम हो सकता है और फेफड़े खराब हो सकते हैं, इससे BPD का खतरा बढ़ सकता है। जन्म के बाद रेस्पिरेटरी डिस्ट्रेस सिंड्रोम को रोकने में मदद के लिए कुछ नवजात शिशुओं को वायुमार्ग (ट्रेकिया) में सर्फ़ेक्टेंट दिया जाता है।