सुअरों में निपाह वायरस का संक्रमण
सुअरों में निपाह वायरस का संक्रमण
(पोर्सीन रेस्पिरेटरी और न्यूरोलॉजिक सिंड्रोम, बार्किंग पिग सिंड्रोम)निपाह वायरस रोग, सुअरों और मनुष्यों का तुलनात्मक तौर पर नया खोजा गया रोग है, जो नोवल पैरामिक्सोवायरस के संक्रमण की वजह से होता है, जिसे निपाह वायरस कहा जाता है। यह रोग मलेशिया में 1998 और 1999 में ज़ाहिर हुआ था। यह मलेशिया और सिंगापुर में ऐसे लोगों के बीच गंभीर एन्सेफ़ेलाइटिस से जुड़ा था, जो कभी-कभी संक्रमित सुअरों के संपर्क में आते थे। रोग का उन्मूलन व्यावसायिक तौर पर पाले गए सुअरों की देश में मौजूद आबादी से इसके नियंत्रण के उपायों के द्वारा किया गया। इस प्रजाति की कई फ्रूट बैट्स Pteropus[Pteropus]टेरोपस, एशिया में इस वायरस का संग्रह दिखाई देता है।
एटियोलॉजी और एपिडर्मियोलॉजी
सुअरों में निपाह वायरस के संक्रमण की एटियोलॉजी और एपिडर्मियोलॉजी एटियोलॉजिक एजेंट, निपाह वायरस, (प्रजाति Henipavirus[Henipavirus]हेनिपेरायरस, फ़ैमिली पैरामिक्सोवायरिडे), एन्वेलप्ड, नेगेटिव सेंस, सिंगल-स्ट्रेंडेड RNA वायरस है। यह वायरस हेंड्रा वायरस से करीबी से संबंधित है, जो इस प्रजाति का एकमात्र दूसरा सदस्य है।
मलेशिया और सिंगापुर में मनुष्यों में इसका प्रकोप, संक्रमित सुअरों के संपर्क में आने के बाद हुआ और इसका परिणाम एन्सेफ़ेलाइटिस के रूप में सामने आया, जिसकी मृत्यु दर ~40% थी। ऐसा माना गया कि यह वायरस सुअरों की आबादी में दो टेरोपस spp से प्रविष्ट हुआ, जिसका पता प्रकोप की पड़ताल के दौरान अलग होने योग्य एंटीबॉडीज़ के ज़रिए लगाया गया। टेरोपस का भौगोलिक फैलाव पश्चिमी प्रशांत से लेकर दक्षिण पूर्व एशिया, दक्षिण एशिया और नीचे मेडागास्कर सहित तटवर्ती अफ़्रीकी द्वीपों तक है। टेरोपस की कई प्रजातियों में एंटीबॉडी का पता चला है, जिससे पता चलता है कि वायरस या निकट संबंधी वायरस बैट्स की इस प्रजाति की सीमा के भीतर अन्य क्षेत्रों में पाए जाते हैं।
मलेशिया में, मानव रोगियों और सुअरों से मिले वायरल नमूनों का जेनेटिक विश्लेषण वायरस के प्रवेश का एक ही स्थान होने और इसके साथ व्यावसायिक उद्देश्य से रखे गए सुअरों के समूहों में इसके बाद इसके फैलने की थ्योरी
का पुरज़ोर समर्थन करता है। कुत्तों, बिल्लियों और घोड़ों सहित पालतू पशुओं की कई अन्य प्रजातियों के बीच इसके संक्रमण के सबूतों की रिपोर्ट की गई है।
रिपोर्ट के अनुसार मानव रोगियों में, निपाह वायरस की वजह से होने वाला एन्सेफ़ेलाइटिस 2001 से बांग्लादेश और हाल ही में भारत के समीपवर्ती क्षेत्रों में नियमित रूप से हुआ है। इन क्षेत्रों में, महामारी से जुड़े अध्ययनों में होस्ट के तौर पर मध्यवर्ती पालतू प्रजातियों की भूमिका का समर्थन नहीं किया गया है; इसके बजाय, वायरस के फ़्लाइंग फ़ॉक्स रेज़रवॉयर से सीधा ट्रांसमिशन माना गया है।
हाल ही में, टेरोपिडे परिवार से जुड़े फ्रूट बैट्स; जो हालांकि, प्रजाति टेरोपस, के नहीं है, में अफ़्रीका में इससे संबंधित वायरस पाए गए हैं। 2014 में दक्षिणी फ़िलीपींस के मिंडानाओ में निपाह वायरस का संक्रमण घोड़ों और मनुष्यों में फैला था, जिससे पता चला कि घोड़ों में हेंड्रा वायरस के लिए इसके समान एटियोलॉजिक परिवेश निपाह वायरस के साथ हो सकता है।
ट्रांसमिशन और पैथोजेनेसिस
सुअरों में निपाह वायरस के संक्रमण का ट्रांसमिशन और पैथोजेनेसिस
सुअरों में निपाह वायरस का संक्रमण रेज़रवॉयर बैट्स की प्रजातियों से सुअरों में स्थानांतरित हुआ माना गया है। वायरस के सुअर पालन के घनी आबादी वाले क्षेत्रों में प्रवेश के बाद, इलाके के अंतर्गत पशुओं में संक्रमण तेज़ी से
फैलता है और सीरोलॉजिक परीक्षण बताते हैं कि किसी संक्रमित परिसर के लगभग सभी सुअर इससे प्रभावित होते हैं। परिसरों के बीच इसका ट्रांसमिशन, खराब जैव-सुरक्षा प्रक्रियाओं और संक्रमित जानवरों की आवाजाही की वजह से होना माना जाता है। गीलॉन्ग में उच्च जैविक-सुरक्षा वाले परिसर में निपाह वायरस से संक्रमित सुअर का प्रायोगिक संक्रमण इस धारणा को बल देता है कि करीबी संपर्क में मौजूद सुअरों के बीच ट्रांसमिशन तुरंत होता है।
दक्षिणी एशिया में, मनुष्यों में संक्रमण रेज़रवॉयर फ्रूट बैट्स से अप्रत्यक्ष रूप से हुआ लगता है; बांग्लादेश में मिलने वाले नियमित मामलों में ताड़ के पेड़ों पर बर्तनों में इकट्ठा किया गया प्रदूषित रस संक्रमण के बार-बार होने की वजह है। इससे मिलती-जुलती अन्य परिस्थितियां जैसे बैट्स द्वारा संदूषित पेड़ों के संपर्क में आना, या बैट्स द्वारा आंशिक रूप से खाए गए फलों का उपभोग करना, बांग्लादेश में संक्रमण के वे अन्य कारण हैं, जो दस्तावेज़ में बताए गए हैं। हालांकि मानव-से-मानव में ट्रांसमिशन मलेशिया में नहीं देखा गया है, लेकिन यह दक्षिण एशिया में भी हुआ है।
क्लिनिकल निष्कर्ष
सुअरों में निपाह वायरस के संक्रमण का क्लिनिकल निष्कर्ष
संक्रमित सुअरों से और आपातकालीन परिवेश से मनुष्यों में संक्रमण होने के खतरे की वजह से, निपाह वायरस के संक्रमण की मूल महामारी के दौरान क्षेत्र में क्लिनिकल निरीक्षणों का विवरण नहीं दिया गया था। ज़्यादातर सुअरों में काफ़ी ज़्यादा खांसी के साथ श्वास-संबंधी फ़ेब्राइल रोग विकसित होता है, जिसकी वजह से इस रोग को―"बार्किंग पिग सिंड्रोम" और "वन-माइल कफ़" का नाम दिया गया। प्रभावित परिसरों में विशेष रूप से मादा सुअरों और जंगली सुअरों में एन्सेफ़ेलाइटिस भी देखा गया था। रोग के प्रत्येक स्वरूप वाले पशुओं का अनुपात अनिश्चित है, हालांकि इसके श्वास संबंधित स्वरूप ज़्यादा हैं। प्रभावित परिसरों के अंतर्गत मौत के सभी मामलों को भी दस्तावेज़ों में सही तरीके से रिकॉर्ड नहीं किया गया था लेकिन यह सभी आयु समूहों के बीच संभावित रूप से >5% नहीं थी।
निदान
सुअरों में निपाह वायरस के संक्रमण का निदान
निपाह वायरस संक्रमण का लैबोरेटरी निदान, वायरस को अलग-थलग करके, रिवर्स ट्रांसक्रिप्टेज़-PCR इस्तेमाल के ज़रिए RNA की पहचान करके, विशिष्ट एंटीबॉडीज़ के साथ इम्युनोहिस्टोकेमिकल स्टेनिंग करके ऊतकों में एंटीजन का पता लगा कर या सीरोलॉजिकल परीक्षणों जैसे ELISA और वायरस न्यूट्रालिज़ेशन परीक्षणों द्वारा किया जा सकता है। वायरस को अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया में जैविक सुरक्षा स्तर 4 का माना जाता है और इसके लिए सीमित लैबोरेटरीज़ में लैबोरेटरी को सख्ती से अलग-थलग करके रखने पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
उपचार
सुअरों में निपाह वायरस के संक्रमण का उपचार
- सहायक देखभाल
- फ़िलहाल, इसका कोई भी प्रभावी उपचार मौजूद नहीं है
मलेशिया में आपातकाल के दौरान निपाह वायरस से संक्रमित सुअरों के उपचार का प्रयास नहीं किया गया। मानव रोगियों के लिए एन्सेफ़ेलाइटिस का प्रबंधन करने के लिए गहन देखभाल के साथ वेंटिलेशन की सहायता की आवश्यकता होती है; इसका कोई विशिष्ट उपचार उपलब्ध नहीं है। इसके कुछ रोगियों को रिबावाइरिन दी गई थी, लेकिन इसके बाद लैबोरेटरी में पशुओं पर किए गए अध्ययनों से पता चला कि यह अप्रभावी है।
नियंत्रण और रोकथाम
सुअरों में निपाह वायरस के संक्रमण का नियंत्रण और रोकथाम
मलेशिया में निपाह वायरस की महामारी/एपिज़ूटिक का नियंत्रण सख्ती से अलग-थलग करने और प्रभावित परिसरों से सभी सुअरों को मारने के उपाय शुरू करने पर निर्भर था। दूसरे संक्रामक रोगों की तरह परिसरों के अंतर्गत उपयुक्त जैविक सुरक्षा और अलग-थलग करने की प्रक्रियाओं के अनुपालन का महत्व संक्रमण फैलने की रोकथाम में सबसे अधिक होता है। निगरानी और मारने के सक्रिय प्रोग्राम से व्यावसायिक तौर पर पाले गए सुअरों की देश में मौजूद आबादी से वायरस का उन्मूलन सफलतापूर्वक किया गया, जो संक्रमण से मुक्त रह गई है।
काफ़ी व्यापक भौगोलिक क्षेत्र में बैट्स की रेज़रवॉयर प्रजातियों में वायरस की मौजूदगी से इस रोग की अच्छी निगरानी और जैव-
सुरक्षा प्रक्रियाओं का महत्व बढ गया है, ताकि इस रोग का शुरुआती स्थिति में ही पता चल सके और इसके दोबारा शुरू होने पर इसे शुरुआती परिसरों तक ही सीमित किया जा सके।
हेंड्रा वायरस पर आधारित सबयूनिट वैक्सीन, घोड़ों में हेंड्रा वायरस के संक्रमणों की रोकथाम में प्रभावी साबित हुई है और इसी एंटीजन को शुरुआती गैर-मानव रोगियों में प्रायोगिक चुनौती में निपाह वायरस की रोकथाम में प्रभावी होना पाया गया है। इसी तरह, एक फ़ेरेट मॉडल में हेंड्रा और निपाह दोनों वायरस की प्रायोगिक चुनौती में अंतर-प्रतिक्रियात्मक मोनोक्लोनल एंटीबॉडी को भी प्रभावी उपचार बताया गया है।
ज़ूनोटिक जोखिम
सुअरों में निपाह वायरस के संक्रमण का ज़ूनोटिक जोखिम
संक्रमित सुअरों से मनुष्यों में ट्रांसमिशन मुख्य रूप से व्यावसायिक परिसरों में हुआ था और मानव संक्रमण से जुड़े जोखिम कारकों के एक अध्ययन में बताया गया है कि मलेशिया में हुए निपाह वायरस के लगभग सभी संक्रमणों का तरीका जीवित संक्रमित सुअरों से करीबी संपर्क का था।
ऑस्ट्रेलिया में हेंड्रा वायरस से घोड़ों और इसके बाद मनुष्यों के लगातार पीड़ित होने के छिटपुट मामलों के साथ इनमें से कुछ समूहों में गंभीर रोग होने की वजह से उन मामलों में, जहां हेंड्रा या निपाह वायरस के संक्रमण की शंका हो, पशु चिकित्सा की क्लिनिकल जांच या पोस्टमॉर्टेम प्रक्रियाओं में सही पर्सनल प्रोटेक्टिव उपकरणों के इस्तेमाल करने के महत्व पर जोर दिया जाता है।
मुख्य बिंदु
- निपाह वायरस, तुलनात्मक रूप से एक नया ज़ूनोटिक रोग है, जो मनुष्यों और सुअरों को प्रभावित करता है।
- इसका फैलाव दुनिया भर में है; फ़्लाइंग फ़ॉक्स (बैट्स) इसके वायरल रेज़रवॉयर के तौर पर काम करते हैं।
- रोग की सही निगरानी और जैव-सुरक्षा उपाय मनुष्य के रोग सहित इसके फैलाव से बचने का मुख्य तरीका हैं।