आँख की संरचना और प्रकार्य

इनके द्वाराJames Garrity, MD, Mayo Clinic College of Medicine and Science
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया मार्च २०२२ | संशोधित सित॰ २०२२

    आँखों की संरचनाएं और प्रकार्य पेचीदा हैं। प्रत्येक आँख अपने अंदर आने वाले प्रकाश की मात्रा को लगातार समायोजित करती है, करीब और दूर की वस्तुओं पर फोकस करती है, और अनवरत छवियों का निर्माण करती हैं जिन्हें तत्काल मस्तिष्क में भेजा जाता है।

    ऑर्बिट हड्डी की वह गुहा है जिसमें नेत्र गोलक, मांसपेशियाँ, नाड़ियाँ, और रक्त वाहिकाओं के साथ-साथ वे संरचनाएं होती हैं जो आँसुओं का उत्पादन और निकास करती हैं। प्रत्येक ऑर्बिट एक नाशपाती के आकार की संरचना होता है जो कई हड्डियों से बनता है।

    आँख के अंदर का दृश्य

    नेत्र गोलक के बाहरी आवरण में स्क्लेरा (या आँख का सफेद भाग) नामक एक अपेक्षाकृत मजबूत, सफेद पर्त होती है।

    आँख के सामने के भाग के करीब, पलकों द्वारा संरक्षित क्षेत्र में, स्क्लेरा एक पतली, पारदर्शी झिल्ली (कंजंक्टाइवा) से ढकी होती है, जो कोर्निया के सिरे तक जाती है। कंजंक्टाइवा पलकों और नेत्र गोलकों की नम पिछली सतह को भी ढकती है।

    प्रकाश आँख में कोर्निया के माध्यम से प्रवेश करता है, जो परितारिका और पुतली के सामने स्थित पारदर्शी, वक्र पर्त है। कोर्निया आँख के सामने के भाग के लिए सुरक्षात्मक आवरण का काम करती है और प्रकाश को आँख के पिछवाड़े में स्थित रेटिना पर फोकस करने में भी मदद करती है।

    कोर्निया से गुजरने के बाद, प्रकाश पुतली (आँख के बीचों-बीच काला बिंदु) के माध्यम से यात्रा करता है।

    परितारिका––पुतली के चारों ओर स्थित आँख का वलयाकार, रंगीन क्षेत्र––आँख में प्रवेश करने वाले प्रकाश की मात्रा को नियंत्रित करती है। परितारिका अंधेरे में (पुतली को बड़ा या विस्फारित करके) आँख में अधिक प्रकाश को प्रवेश होने देती है और उजाले में (पुतली को सिकोड़ कर या संकुचित करके) आँख में कम प्रकाश को प्रवेश करने देती है। इस तरह, आसपास के परिवेश में प्रकाश की मात्रा के कम-ज्यादा होने के साथ-साथ परितारिका कैमरे के लेंस के छिद्र की तरह फैलती और सिकुड़ती है। पुतली के आकार को प्युपिलरी स्फिंक्टर मांसपेशी और डाइलेटर मांसपेशी द्वारा नियंत्रित किया जाता है।

    परितारिका के पीछे लेंस स्थित होता है। अपने आकार को बदलकर, लेंस प्रकाश को रेटिना पर फोकस करता है। छोटी मांसपेशियों (जिन्हें सिलियरी मांसपेशियाँ कहते हैं) की हरकत के माध्यम से, लेंस करीब की वस्तुओं पर फोकस करने के लिए मोटा और दूर की वस्तुओं पर फोकस करने के लिए पतला हो जाता है।

    रेटिना में प्रकाश-संवेदी कोशिकाएं (फोटोरिसेप्टर) और उनका पोषण करने वाली रक्त वाहिकाएं होती हैं। रेटिना का सबसे संवेदनशील क्षेत्र एक छोटा सा क्षेत्र होता है जिसे मैक्युला कहते हैं, जिसमें लाखों कसकर समूहबद्ध फोटोरिसेप्टर (जिन्हें कोन कहते हैं) होते हैं। मैक्युला में कोनों की अधिकता के कारण दृष्टिगत छवि विस्तृत होती है, ठीक वैसे ही जैसे हाई-रिजोल्यूशन डिजिटल कैमरे में अधिक मेगापिक्सेल होते हैं।

    प्रत्येक फोटोरिसेप्टर एक तंत्रिका तंतु से जुड़ा होता है। फोटोरिसेप्टरों के तंत्रिका तंतुओं के बंडल को ऑप्टिक नाड़ी कहते हैं। ऑप्टिक नाड़ी का पहला भाग, ऑप्टिक डिस्क, आँख के पिछवाड़े में स्थित होता है।

    रेटिना में मौजूद फोटोरिसेप्टर छवि को विद्युतीय संकेतों में बदलते हैं, जिन्हें ऑप्टिक नाड़ी द्वारा मस्तिष्क तक ले जाया जाता है। फोटोरिसेप्टरों के दो मुख्य प्रकार हैं: कोन और रॉड।

    कोन तीक्ष्ण, विस्तृत केंद्रीय दृष्टि और रंगीन दृष्टि की लिए जिम्मेदार होते हैं तथा मुख्य रूप से मैक्युला में स्थित होते हैं।

    रॉड रात्रि के समय की और परिधीय (पार्श्व) दृष्टि के लिए जिम्मेदार होते हैं। रॉड कोनों की अपेक्षा अधिक संख्या में होते हैं और वे प्रकाश के प्रति बहुत ज्यादा संवेदनशील होते हैं, लेकिन वे कोनों की तरह रंगों की पहचान या विस्तृत केंद्रीय दृष्टि में योगदान महीं करते हैं। रॉड मुख्य रूप से रेटिना के परिधीय भाग में समूहबद्ध होते हैं।

    नेत्र गोलक दो खंडों में बंटा होता है, जिनमें से प्रत्येक में तरल भरा होता है। इन तरलों से उत्पन्न दबाव नेत्र गोलक को भरता है और उसके आकार को कायम रखने में मदद करता है।

    सामने का खंड (एंटीरियर सेगमेंट) कोर्निया के भीतर के भाग से लेकर लेंस की सामने की सतह तक फैला होता है। यह एक्वियस ह्यूमर नामक एक तरल से भरा होता है, जो आंतरिक संरचनाओं का पोषण करता है। एंटीरियर सेगमेंट दो कक्षों में बंटा होता है। सामने (एंटीरियर) का कक्ष कोर्निया से परितारिका तक फैला होता है। पिछला (पोस्टीरियर) कक्ष परितारिका से लेंस तक फैला होता है। सामान्य तौर से, एक्वियस ह्यूमर पोस्टीरियर कक्ष में बनता है, धीरे-धीरे बहते हुए पुतली से होता हुआ एंटीरियर कक्ष में जाता है, और फिर परितारिका के कोर्निया से मिलने के स्थान पर स्थित आउटफ्लो चैनलों के माध्यम से नेत्र गोलक के बाहर चला जाता है।

    पिछला खंड (पोस्टीरियर सेगमेंट) लेंस की पिछली सतह से रेटिना तक फैला होता है। इसमें एक जेली-नुमा तरल होता है जिसे विट्रियस ह्यूमर कहते हैं।

    विजुअल मार्गों को ट्रेस करना

    प्रत्येक आँख से तंत्रिका संकेत संबंधित ऑप्टिक नाड़ी और अन्य तंत्रिका तंतुओं (जिसे विजुअल मार्ग कहते हैं) से होते हुए मस्तिष्क के पिछले भाग में जाते हैं, जहाँ दृष्टि को महसूस करके उसकी व्याख्या की जाती है। दोनों ऑप्टिक नाड़ियाँ ऑप्टिक कयास्म पर मिलती हैं, जो आखों के पीछे पिट्यूटरी ग्रंथि के ठीक सामने और मस्तिष्क के सामने वाले भाग (सेरेब्रम) के ठीक नीचे स्थित एक क्षेत्र है। वहाँ, प्रत्येक आँख की ऑप्टिक नाड़ी विभाजित होती है, और प्रत्येक ओर के आधे तंत्रिका तंतु दूसरी ओर जाते हैं और मस्तिष्क के पिछवाड़े में चले जाते हैं। इस तरह से, मस्तिष्क के दायें भाग को बायें दृष्टि क्षेत्र के लिए दोनों ऑप्टिक नाड़ियों से जानकारी मिलती है, और मस्तिष्क के बायें भाग को दायें दृष्टि क्षेत्र के लिए दोनों ऑप्टिक नाड़ियों से जानकारी मिलती है। इन दृष्टि क्षेत्रों का बीच वाला भाग प्रतिच्छादित होता है। यह दोनों आँखों को दिखाई देता है (जिसे द्विनेत्री दृष्टि कहते हैं)।

    प्रत्येक आँख वस्तु को अलग-अलग कोणों से देखती है, इसलिए मस्तिष्क को प्रत्येक आँख से प्राप्त होने वाली जानकारी अलग होती है, हालांकि वह प्रतिच्छादित होती है। मस्तिष्क जानकारी को एकीकृत करके पूरी तस्वीर बनाता है।

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