ट्रांसप्लांटेशन का ब्यौरा

इनके द्वाराMartin Hertl, MD, PhD, Rush University Medical Center
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया अग. २०२२

शरीर के किसी भाग से जीवित, कार्यशील कोशिकाओं, टिशूज़ या अंगों को हटाकर उन्हें उसी शरीर के किसी अन्य भाग में या किसी दूसरे शरीर में स्थानांतरित करना, ट्रांसप्लांटेशन कहलाता है।

ट्रांसप्लांटेशन का सबसे आम प्रकार ब्लड ट्रांसफ़्यूजन है। हर साल लाखों लोगों के इलाज के लिए ब्लड ट्रांसफ़्यूजन का उपयोग किया जाता है। आम भाषा में कहें तो ट्रांसप्लांटेशन अंगों या टिशूज़ को एक जगह से दूसरी जगह पर लगाने (ठोस अंग का ट्रांसप्लांटेशन) को कहते हैं।

ट्रांसप्लांटेशन में निम्न शामिल हो सकते हैं

  • व्यक्ति के अपने टिशू

  • जुड़वां लोगों के टिशू, जिसके जीन एक दूसरे से मेल खाते हैं

  • किसी ऐसे व्यक्ति के टिशू जिसके जींस उस व्यक्ति के जीन से पूरी तरह से मेल नहीं खाते हों

  • शायद ही कभी, एक अलग प्रजाति के टिशू (जैसे कि सुअर)

ट्रांसप्लांट किए जाने वाले टिशू

ब्लड ट्रांसफ़्यूजन की तुलना में अगर बात करें तो, ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन में बड़ी सर्जरी की जाती है, प्रतिरक्षा प्रणाली को दबाने के लिए दवाओं का उपयोग (इम्यूनोसप्रेसेंट, कॉर्टिकोस्टेरॉइड सहित) और इन्फेक्शन, ट्रांसप्लांटेशन रिजेक्शन और अन्य गंभीर जटिलताओं की संभावना शामिल होती है जिसमें मृत्यु भी शामिल है। हालांकि, जिन लोगों के महत्वपूर्ण अंगों ने काम करना बंद कर दिया हो, उनके लिए ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन, जीवित रहने का एकमात्र उपाय है।

कुछ प्रक्रियाएँ, जैसे हाथ या चेहरे का ट्रांसप्लांटेशन, किसी व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता में बहुत सुधार ला सकती हैं, लेकिन जीवन को बचाने में ये सहायक नहीं हैं। इन प्रक्रियाओं में जोखिम ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन जैसे ही होते हैं। वे बेहद खास होते हैं और कभी-कभी किए जाते हैं लेकिन अब उन्हें प्रायोगिक नहीं माना जाता है।

ट्रांसप्लांटेशन दाता

एक टिशू या अंग का दाता हो सकता है

  • एक जीवित व्यक्ति—प्राप्तकर्ता से संबंधित हो भी सकता है या नहीं भी

  • एक व्यक्ति जिसकी हाल ही में मृत्यु हुई है (मृत दाता)

जीवित दाताओं के टिशू और अंग बेहतर होते हैं क्योंकि वे आमतौर पर स्वस्थ होते हैं। स्टेम सैल (बोन मैरो, गर्भनाल का रक्त या शिरा का रक्त) और किडनी अक्सर जीवित दाताओं द्वारा दान किए जाने वाले टिशू होते हैं। आमतौर पर, एक किडनी सुरक्षित रूप से दान की जा सकती है क्योंकि शरीर में दो किडनियां होती हैं और केवल एक किडनी के साथ भी शरीर अच्छी तरह से काम कर सकता है। जीवित दाता भी लिवर या फेफड़े या पैंक्रियास का केवल एक हिस्सा दान कर सकते हैं। जीवित दाताओं के अंग आमतौर पर निकाले जाने के कुछ ही मिनटों के भीतर प्रत्यारोपित कर दिए जाते हैं। अमेरिका में, अंग दान करने के लिए भुगतान किया जाना अवैध है, लेकिन कोशिकाओं और टिशूज़ के लिए रिइम्बर्समेंट मिलता है।

कुछ अंग, जैसे हृदय, स्वाभाविक रूप से जीवित दाताओं से नहीं लिए जा सकते।

मृतक दाताओं के अंग आमतौर पर उन लोगों से लिए जाते हैं जो पहले अंग दान करने के लिए सहमत हुए थे। कई राज्यों में, लोग अपने ड्राइविंग लाइसेंस पर अंगों को दान करने की इच्छा का संकेत दे सकते हैं, हालांकि लाइसेंस पर दाता की स्थिति का संकेत होने पर भी उसके परिवार के सदस्यों से भी सलाह ली जाती है। अगर मृतक की इच्छा की जानकारी नहीं है, तो मृतक के निकटतम परिवार के सदस्य से भी दान की अनुमति प्राप्त की जा सकती है। मृत दाता स्वस्थ लोग हो सकते हैं जिनकी मृत्यु एक बड़ी दुर्घटना के कारण हुई हो, साथ ही वे लोग जो किसी ऐसे चिकित्सा विकार से मरते हैं, जिसके कारण दान किया जाने वाला अंग प्रभावित नहीं होता है। मरणासन्न रूप से बीमार या ब्रेन डेड वाले लोगों को लाइफ़ सपोर्ट से हटाने की सलाह देने का निर्णय लेते समय डॉक्टर उनके अंग दान की संभावना को ध्यान में नहीं रखते हैं।

एक मृत दाता कई लोगों को ट्रांसप्लांटेशन प्रदान कर सकता है। उदाहरण के लिए, एक दाता दो कॉर्निया, एक पैंक्रियास, दो किडनियां, लिवर के दो भाग, दो फेफड़े, एक छोटी आंत और एक हृदय दान कर सकता है। जब लोग मरते हैं तो अंग जल्दी खराब हो जाते हैं। कुछ अंग शरीर के बाहर केवल कुछ घंटे ही रहते हैं। अन्य अंगों को यदि ठंडा रखा जाए तो वे कुछ दिनों तक जीवित रह सकते हैं।

क्या आप जानते हैं...

  • एक मृतक दाता दो कॉर्निया, एक पैंक्रियास, दो किडनियां, लिवर के दो भाग, एक छोटी आंत, दो फेफड़े और एक हृदय दान कर सकता है।

ऑर्गन मैचिंग (अंगों का मिलान) और उनका डिस्ट्रीब्यूशन

अमेरिका में, एक राष्ट्रीय संगठन (यूनाइटेड नेटवर्क फॉर ऑर्गन शेयरिंग) कंप्यूटर डेटाबेस के उपयोग के माध्यम से ट्रांसप्लांटेशन के लिए दाताओं और प्राप्तकर्ताओं का मिलान करता है। डेटाबेस में उन सभी लोगों के नाम होते हैं जो किसी ट्रांसप्लांटेशन के लिए प्रतीक्षा सूची में हैं, साथ ही उनके रक्त और टिशू टाइप, दाता अस्पताल से दूरी और उनके विकार कितने गंभीर हैं, इसके बारे में जानकारी भी उस डेटाबेस में होती हैं। किसी व्यक्ति को किस अंग की आवश्यकता है, इसके आधार पर अन्य जानकारी शामिल की जाती है। जब अंग उपलब्ध हो जाते हैं, तो वह सूचना दर्ज कर ली जाती है और मिलान किया जाता है। किसी विशिष्ट अंग प्रकार के ट्रांसप्लांटेशन के मानदंड पूरे हो जाने पर अंग दिए जाते हैं।

प्रीट्रांसप्लांटेशन स्क्रीनिंग

चूंकि ट्रांसप्लांटेशन थोड़ा जोखिम भरा होता है और दाता अंग मुश्किल से ही मिलते हैं, इसलिए संभावित प्राप्तकर्ताओं जांच की जाती हैं ताकि उन कारकों का पता लगाया जा सके जो ट्रांसप्लांटेशन की सफलता की संभावना को प्रभावित कर सकते हैं।

टिशू मैचिंग

प्रतिरक्षा प्रणाली सामान्य रूप से, ट्रांसप्लांट किए गए टिशूज़ सहित बाहरी टिशू पर हमला करती है। इस प्रतिक्रिया को रिजेक्शन (रिजेक्शन) कहा जाता है। जब प्रतिरक्षा प्रणाली एक कोशिका की सतह पर कुछ अणुओं की बाहरी अणुओं के रूप में पहचान करती है तो रिजेक्शन शुरू हो जाती है। इन कोशिका सतह के अणुओं को एंटीजेन कहा जाता है।

ब्लड ट्रांसफ़्यूजन के लिए, रिजेक्शन अपेक्षाकृत आसानी से टाल दी जाती है क्योंकि लाल रक्त कोशिकाओं की सतह पर केवल तीन मुख्य एंटीजेन होते हैं। ये एंटीजेन रक्त के प्रकार का निर्धारण करते हैं और इन्हें A, B, और Rh कहा जाता है। डॉक्टर यह सुनिश्चित करने के लिए जांच करते हैं कि दाता रक्त और प्राप्तकर्ता रक्त के एंटीजेन पूरी तरह मेल खाते हों।

ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन के लिए, हालांकि, कई एंटीजेन शामिल होते हैं। इन एंटीजेन को ह्यूमन ल्यूकोसाइट एंटीजेन (HLA) या मेजर कम्पैटिबिलिटी कॉम्प्लेक्स (MHC) कहा जाता है। वे शरीर में हर कोशिका की सतह पर होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति के पास खास HLA होते हैं, जो टिशू टाइप को निर्धारित करते हैं। आदर्श रूप से, दाता का टिशू प्रकार प्राप्तकर्ता के टिशू प्रकार से बिल्कुल मेल खाता है। हालांकि, एक बेहतरीन HLA मिलान बहुत कम ही होता है और कुछ लोग इतने ज्यादा बीमार होते हैं कि वे बहुत कम्पेटिबल दाता की प्रतीक्षा नहीं कर सकते। इन मामलों में, डॉक्टर कभी-कभी दाता के टिशू का उपयोग करते हैं जो एक सटीक मिलान नहीं होता है लेकिन यह एक करीबी मिलान होता है। दाता और प्राप्तकर्ता के बीच एक सटीक HLA मिलान, रिजेक्शन की संभावना और गंभीरता को कम करता है और दीर्घकालिक परिणाम में सुधार करता है। हालांकि, चूंकि इम्युनोसप्रेसेंट थेरेपी ज़्यादा असरदार हो गई है, इसलिए मिलान के स्तर से ट्रांसप्लांटेशन की सफलता कम प्रभावित होती है।

ट्रांसप्लांटेशन से पहले, दाता के टिशूज़ के खिलाफ एंटीबॉडीज़ के लिए प्राप्तकर्ता के रक्त की जांच की जाती है। हो सकता है कि शरीर ने ब्लड ट्रांसफ़्यूजन, पिछले ट्रांसप्लांटेशन या गर्भावस्था के दौरान प्रतिक्रिया के रूप में ऐसे एंटीबॉडीज़ पैदा किए हों। यदि ये एंटीबॉडीज़ मौजूद हैं, तो ट्रांसप्लांटेशन संभव नहीं हो सकता है क्योंकि इससे शरीर तत्काल तथा गंभीर रिजेक्शन पैदा कर सकता है। प्लाज़्मा एक्सचेंज और इंट्रावीनस इम्यून ग्लोबुलिन (IVIG) का उपयोग एंटीबॉडीज़ को निकालने या दबाने के लिए किया गया है और इस प्रकार यह एक करीबी मिलान उपलब्ध न होने पर ट्रांसप्लांटेशन को संभव बनाता है। (IVIG रक्त से प्राप्त एंटीबॉडीज़ हैं जो सामान्य प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों से एकत्र की जाती हैं।)

डोनर स्क्रीनिंग

ट्रांसप्लांटेशन के दौरान फ़ैल सकने वाले कैंसर और इन्फेक्शन के लिए दाताओं की जांच की जाती है। डॉक्टर दाताओं के चिकित्सा इतिहास की पूरी तरह से समीक्षा करके और अंग की रिकवरी के समय ऑपरेटिंग रूम में अंग का सावधानीपूर्वक निरीक्षण करके कैंसर के लिए स्क्रीनिंग करते हैं। कैंसर वाले ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन के लिए उपयोग नहीं किए जाते हैं। जिन दाताओं के किसी अन्य अंग में पहले कैंसर था उनके अंगों का उपयोग करना है या नहीं, यह इस पर निर्भर करता है कि कैंसर कोशिकाएं अभी भी मौजूद हैं या प्रत्यारोपित अंग में फैल गई हैं।

ज़्यादातर बैक्टीरियल इन्फेक्शन, दाता के समग्र स्वास्थ्य के आधार पर डॉक्टरों को स्पष्ट दिखाई देते हैं और अक्सर अंग दान करने के निर्णय से पहले ही उनका निदान और इलाज किया जाता है। यदि पर्याप्त इलाज किया गया है, तो ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन सुरक्षित है, हालांकि प्राप्तकर्ता को अतिरिक्त एंटीबायोटिक इलाज दिया जा सकता है।

जो वायरल इन्फेक्शन अक्सर स्पष्ट नहीं होते हैं उन्हें फैलने से रोकने के लिए, डॉक्टर आमतौर पर कुछ वायरल इन्फेक्शनों के लिए दाता के रक्त की जांच करते हैं। इन इन्फेक्शनों में साइटोमेगालोवायरस (CMV), एपस्टीन-बार वायरस (EBV), हैपेटाइटिस B और C वायरस, ह्यूमन इम्यूनोडिफ़िशिएंसी वायरस (HIV) और ह्यूमन T-सेल लिम्फोट्रोपिक वायरस (HTLV) शामिल हैं। दाता में कुछ वायरल इन्फेक्शन, जैसे कि HIV इन्फेक्शन, होने का अर्थ है कि इन्फेक्शन को नियंत्रित करने तक ट्रांसप्लांटेशन नहीं किया जा सकता। अन्य वायरल इन्फेक्शन, जैसे CMV और EBV और हाल ही में हैपेटाइटिस C इन्फेक्शन हो तो भी ट्रांसप्लांटेशन को नहीं रोका जाता है, लेकिन प्राप्तकर्ता को बाद में एंटीवायरल दवाएँ लेनी चाहिए।

शारीरिक स्वास्थ्य के पूर्ण मूल्यांकन के अलावा, जीवित डोनर के मानसिक स्वास्थ्य से संबंधित समस्याओं; उसके अतीत और वर्तमान की धूम्रपान की आदत, अल्कोहल का उपयोग या मादक पदार्थों का सेवन; दान के जोखिमों को समझने और बिना किसी दबाव के व्यक्त सहमति प्रदान करने की क्षमता; और रिकवरी के दौरान पर्याप्त साधन और सहायता के लिए उसका व्यापक मनो-सामाजिक मूल्यांकन किया जाता है।

प्राप्तकर्ता की स्क्रीनिंग

प्राप्तकर्ताओं में कैंसर और अन्य इन्फेक्शन की भी जांच की जाती है और उनके सामान्य स्वास्थ्य का मूल्यांकन किया जाता है। चूंकि ऑर्गन ट्रांसप्लांट प्राप्तकर्ताओं को ट्रांसप्लांटेशन के समय इम्यूनोसप्रेसेंट की उच्च खुराक दी जाती है, इसलिए जिन प्राप्तकर्ताओं को इन्फेक्शन या कैंसर है, वे इन स्थितियों के नियंत्रित या ठीक होने तक ट्रांसप्लांटेशन नहीं करवा सकते। इम्यूनोसप्रेसेंट लेने से इन्फेक्शन या कैंसर और भी बदतर हो सकता है।

ट्रांसप्लांटेशन की आवश्यकता वाले अंग के खराब होने के अलावा समग्र खराब स्वास्थ्य, कुछ वायरल इन्फेक्शन या अन्य चिकित्सा समस्याओं वाले लोगों का सही तरह ट्रांसप्लांटेशन होने की संभावना कम होती है। ट्रांसप्लांटेशन का निर्णय व्यक्ति की विशिष्ट परिस्थितियों पर आधारित होता है, जिसमें उम्र भी शामिल है।

साइकोसोशल स्क्रीनिंग इसलिए की जाती है क्योंकि ट्रांसप्लांट किए गए अंग को चालू रखने के लिए आवश्यक दवाओं, इलाजों और फॉलोअप विज़िट की आजीवन व्यवस्था के लिए काफ़ी चीज़ों की जरूरत होती है और सभी लोग इन जरूरतों को पूरा करने के इच्छुक या सक्षम नहीं होते हैं। नर्सों और डॉक्टरों के अलावा, मनोचिकित्सक और सामाजिक कार्यकर्ता, लोगों और उनके परिवारों को ट्रांसप्लांटेशन को स्वीकार करने में शामिल दीर्घकालिक प्रतिबद्धता और कठिनाइयों को समझने में मदद करने के लिए सहयोग करते हैं। किसी व्यक्ति के लिए ऑर्गन ट्रांसप्लांटेशन सही है या नहीं, यह तय करने में सभी का योगदान महत्वपूर्ण होता है।

प्रतिरक्षा प्रणाली का कमज़ोर होना

भले ही टिशू टाइप बिल्कुल मेल खाते हों, फिर भी खून चढ़ाए जाने की तुलना में अगर बात करें तो, रिजेक्शन को रोकने के उपाय नहीं किए जाने पर ट्रांसप्लांट किए गए अंग आमतौर पर अस्वीकृत हो जाते हैं। ट्रांसप्लांट किए गए उस अंग पर प्राप्तकर्ता की प्रतिरक्षा प्रणाली के हमले का परिणाम रिजेक्शन होता है, जिसकी पहचान प्रतिरक्षा प्रणाली बाहरी सामग्री के रूप में करती है। रिजेक्शन हल्का और आसानी से नियंत्रित करने योग्य या गंभीर हो सकता है, जिसके परिणामस्वरूप प्रत्यारोपित अंग खराब हो सकता है।

रिजेक्शन को आमतौर पर इम्युनोसप्रेसेंट नामक दवाओं से नियंत्रित किया जा सकता है, जो प्रतिरक्षा प्रणाली और बाहरी पदार्थों को पहचानने और नष्ट करने की शरीर की क्षमता को दबा देती हैं। इम्युनोसप्रेसेंट के उपयोग से, ट्रांसप्लांट किए गए अंग के जीवित रहने की संभावना अधिक होती है।

इम्यूनोसप्रेसेंट ज़िन्दगी भर लिए जाने चाहिए। ज़्यादा खुराक आमतौर पर केवल ट्रांसप्लांटेशन के पहले कुछ हफ्तों के दौरान या रिजेक्शन के एक एपिसोड के दौरान आवश्यक होती है। उसके बाद, छोटी खुराक आमतौर पर रिजेक्शन को रोक सकती है (जिसे मेंटेनेंस इम्यूनोसप्रैशन कहा जाता है)। यदि प्राप्तकर्ता को गंभीर इन्फेक्शन हो जाता है या यदि दवा के परेशानी भरे दुष्प्रभाव होते हैं, तो इम्यूनोसप्रेसेंट की खुराक को और कम करने की आवश्यकता हो सकती है, लेकिन इम्यूनोसप्रेसेंट की खुराक कम करने से रिजेक्शन का खतरा बढ़ जाता है।

रिजेक्शन के पहले संकेत पर, डॉक्टर इम्युनोसप्रेसेंट की खुराक बढ़ाते हैं, इम्युनोसप्रेसेंट के प्रकार को बदलते हैं, या एक अन्य इम्युनोसप्रेसेंट चालू करते हैं।

विभिन्न प्रकार के इम्युनोसप्रेसेंट प्रतिरक्षा प्रणाली के विभिन्न भागों को लक्ष्य बनाते हैं। इस प्रकार, कई दवाओं का एक साथ उपयोग किया जा सकता है। कुछ दवाएं, जैसे कॉर्टिकोस्टेरॉइड, प्रतिरक्षा प्रणाली को पूरी तरह से कमज़ोर बना देती हैं। दूसरों के पास श्वेत रक्त कोशिकाओं के उत्पादन और गतिविधि को बाधित करने के विभिन्न तरीके हैं। श्वेत रक्त कोशिकाएं बाहरी कोशिकाओं को पहचानने और नष्ट करने में शरीर की मदद करती हैं, जैसे कि ट्रांसप्लांट किए गए अंग में।

टेबल

गर्भावस्था और ट्रांसप्लांटेशन

कई इम्यूनोसप्रेसेंट भ्रूण के लिए असुरक्षित होते हैं, इसलिए गर्भावस्था के दौरान ट्रांसप्लांटेशन नहीं किया जा सकता है। हालांकि, जिन महिलाओं में ट्रांसप्लांटेशन हुआ है, वे गर्भवती हो सकती हैं और उनके प्रत्यारोपित अंग के कार्य स्थिर होने पर स्वस्थ बच्चे पैदा कर सकती हैं। वे जो इम्यूनोसप्रेसेंट ले रही हैं उन्हें विशेष रूप से समायोजित या जरूरत पड़ने पर बदला जा सकता है।

ट्रांसप्लांटेशन के बाद जटिलताएं

ट्रांसप्लांटेशन के बाद होने वाली जटिलताओं में निम्न शामिल हैं

  • रिजेक्शन

  • संक्रमण

  • कैंसर

  • एथेरोस्क्लेरोसिस

  • किडनी की समस्याएं

  • गठिया

  • ग्राफ़्ट-वर्सेस-होस्ट डिसीज़

  • ऑस्टियोपोरोसिस

इम्यूनोसप्रेसेंट के उपयोग से कुछ समस्याएँ हो सकती हैं। प्रत्यारोपित अंग के लिए प्रतिरक्षा प्रणाली की प्रतिक्रिया को दबाने के अलावा, ये दवाएँ इन्फेक्शन से लड़ने और कैंसर कोशिकाओं को नष्ट करने की प्रतिरक्षा प्रणाली की क्षमता को भी कम करती हैं। इस प्रकार, ट्रांसप्लांटेशन करवाने वाले लोगों को इन्फेक्शन और कुछ कैंसर विकसित होने का खतरा बढ़ जाता है।

रिजेक्शन

रिजेक्शन, यदि ऐसा होता है, तो अक्सर ट्रांसप्लांटेशन के तुरंत बाद शुरू होता है लेकिन हफ्तों, महीनों या वर्षों के बाद भी हो सकता है।

रिजेक्शन के लक्षण इस बात पर निर्भर करते हैं कि किस अंग को प्रत्यारोपित किया गया था और रिजेक्शन कब हुई। ट्रांसप्लांटेशन के तुरंत बाद एक्यूट रिजेक्शन होता है और लक्षणों का कारण बनती है जिसमें बुखार, ठंड लगना, मतली, थकान और ब्लड प्रेशर में अचानक परिवर्तन शामिल हो सकते हैं। क्रोनिक रिजेक्शन आमतौर पर बाद में होता है और दान किए गए अंग को हल्के दर्ज़ का डैमेज हो सकती है।

संक्रमण

कई कारक ट्रांसप्लांटेशन करवाने वाले लोगों के लिए इन्फेक्शन के जोखिम को बढ़ाते हैं:

  • सर्जरी

  • इम्यूनोसप्रेसेंट का उपयोग

  • वे विकार जो प्रतिरक्षा प्रणाली को कमज़ोर करते हैं (इम्यूनोडिफ़िशिएंसी विकार)

  • अंग की खराबी के कारण होने वाली प्रतिरक्षा प्रणाली की समस्याएं जिसके कारण ट्रांसप्लांटेशन आवश्यक हो गया था

ट्रांसप्लांटेशन करवाने वाले लोगों को होने वाले इन्फेक्शनों में वही शामिल हैं जो सर्जरी से ठीक होने वाले किसी भी व्यक्ति को हो सकते हैं। इस तरह के इन्फेक्शनों में सर्जरी के स्थान या प्रत्यारोपित अंग का इन्फेक्शन, निमोनिया और मूत्र पथ के इन्फेक्शन शामिल हैं।

ट्रांसप्लांटेशन करवाने वाले लोगों को असामान्य (कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों के लिए नुकसानदेह) इन्फेक्शनों का भी खतरा होता है जो मुख्य रूप से कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों को प्रभावित करते हैं। कमज़ोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले लोगों के लिए नुकसानदेह इन्फेक्शन निम्न के कारण हो सकता है

  • बैक्टीरिया (जैसे लिस्टीरिया या नोकार्डिया)

  • वायरस (जैसे साइटोमेगालोवायरस, BK वायरस या एपस्टीन-बार वायरस)

  • कवक (जैसे न्यूमोसिस्टिस जीरोवेकिआय या ऐस्पर्जिलस)

  • परजीवी (जैसे टोक्सोप्लाज्मा)

ट्रांसप्लांटेशन के बाद, ज़्यादातर लोगों को इन्फेक्शन को रोकने में मदद करने के लिए एंटीमाइक्रोबायल दवाएँ दी जाती हैं। 6 महीने के बाद, लगभग 80% लोगों में इन्फेक्शन का जोखिम वही हो जाता है जो ट्रांसप्लांटेशन से पहले था।

कैंसर

इम्यूनोसप्रेसेंट को लंबे समय तक लेने से कुछ प्रकार के कैंसर होने की संभावना अधिक होती है, जैसा कि ट्रांसप्लांटेशन के बाद होता है। इस तरह के कैंसर में कुछ त्वचा कैंसर, लिम्फ़ोमा, सर्वाइकल कैंसर और कापोसी सार्कोमा शामिल हैं।

इलाज उन लोगों के इलाज के समान होता है जिनका ट्रांसप्लांटेशन नहीं हुआ है। लेकिन कभी-कभी कैंसर के इलाज के दौरान इम्यूनोसप्रेसेंट बंद कर दिए जाते हैं या खुराक कम कर दी जाती है।

एथेरोस्क्लेरोसिस

एथेरोस्क्लेरोसिस (धमनियों में वसायुक्त सामग्री का जमाव) विकसित हो सकता है क्योंकि कुछ इम्यूनोसप्रेसेंट कोलेस्ट्रॉल और अन्य वसा (लिपिड) के स्तर को बढ़ाते हैं। ये वसा धमनियों की दीवारों पर जमा हो सकते हैं और रक्त प्रवाह को कम या अवरुद्ध कर सकते हैं, जिससे दिल का दौरा पड़ सकता है या आघात हो सकता है।

एथेरोस्क्लेरोसिस आमतौर पर किडनी ट्रांसप्लांटेशन के लगभग 15 साल बाद विकसित होता है।

किडनी की समस्याएं

प्रतिरोपित अंग वाले लोगों में से लगभग 15 से 20% लोगों में किडनी की समस्याएं शुरू होती हैं, विशेष रूप से छोटी आंत में। किडनी अपशिष्ट उत्पादों को निकालने में कम सक्षम हो जाती हैं, जो बाद में रक्त में जमा हो जाते हैं।

किडनी की समस्याएँ होने के पीछे निम्न कारक शामिल हैं

  • इम्यूनोसप्रेसेंट की उच्च खुराक (विशेष रूप से साइक्लोस्पोरिन और टेक्रोलिमस)

  • ट्रांसप्लांटेशन सर्जरी का शारीरिक तनाव

गठिया

गाउट आम है, खासकर हृदय या किडनी ट्रांसप्लांटेशन के बाद। यह गंभीर हो सकता है और तेजी से बढ़ सकता है, खासकर अगर लोगों को ट्रांसप्लांटेशन से पहले गाउट हुआ हो या अगर वे साइक्लोस्पोरिन या टेक्रोलिमस लेते हैं।

ग्राफ़्ट-वर्सेस-होस्ट डिसीज़

ग्राफ्ट-बनाम-होस्ट रोग तब होता है जब दाता की श्वेत रक्त कोशिकाएं (ग्राफ्ट) प्राप्तकर्ता (होस्ट) के टिशूज़ पर हमला करती हैं। यह विकार आमतौर पर स्टेम सैल ट्रांसप्लांटेशन वाले लोगों में होता है लेकिन लिवर या छोटी आंत के ट्रांसप्लांटेशन वाले लोगों में हो सकता है।

लक्षणों में बुखार, दाने, पीलिया, उल्टी, दस्त, पेट में दर्द, वजन घटना और इन्फेक्शन का जोखिम बढ़ जाना शामिल हो सकते हैं। ये प्रतिक्रियाएं घातक हो सकती हैं। हालांकि, मेथिलप्रेडनिसोलोन जैसी कुछ दवाएँ प्राप्तकर्ता में ग्राफ्ट-बनाम-होस्ट रोग की गंभीरता को समाप्त या कम कर सकती हैं।

ऑस्टियोपोरोसिस और अवरुद्ध विकास

इम्यूनोसप्रेसेंट (विशेष रूप से कॉर्टिकोस्टेरॉइड) के उपयोग से उन लोगों में ऑस्टियोपोरोसिस हो सकता है जिन्हें ट्रांसप्लांटेशन से पहले ऑस्टियोपोरोसिस विकसित होने का खतरा होता है। इन लोगों में वे लोग शामिल हैं जिनकी गतिहीन जीवन शैली है, जो तंबाकू और अल्कोहल का सेवन करते हैं या जिन्हें किडनी की बीमारी है।

बच्चों में, इम्युनोसप्रेसेंट के उपयोग से उनका विकास रुक सकता है।

ट्रांसप्लांटेशन से पहले डॉक्टर ऑस्टियोपोरोसिस के लिए ज्यादातर लोगों की जांच करते हैं। कभी-कभी डॉक्टर ट्रांसप्लांटेशन कराने वाले लोगों को विटामिन D या ऐसी दवाएँ देते हैं जो हड्डियों के नुकसान को रोकने में मदद करती हैं (जैसे बिसफ़ॉस्फ़ोनेट)।

दाता की जटिलताएँ

जीवित दाताओं को भी जटिलताओं का खतरा होता है। इनमें से कुछ जटिलताएं ऐसी हैं जो किसी भी सर्जरी के बाद हो सकती हैं, जैसे इन्फेक्शन और रक्तस्राव। कुछ अतिरिक्त जटिलताएं इस बात पर निर्भर करती हैं कि कौन सा अंग निकाला गया है। दाताओं को भावनात्मक और मानसिक जटिलताओं का भी खतरा हो सकता है, इसलिए ट्रांसप्लांटेशन टीम किसी व्यक्ति के दाता के रूप में चुने जाने से पहले संभावित दाताओं का सावधानीपूर्वक मूल्यांकन करती है।

अधिक जानकारी

निम्नलिखित अंग्रेज़ी-भाषा का संसाधन है जो उपयोगी हो सकता है। कृपया ध्यान दें कि इस संसाधन की विषयवस्तु के लिए मैन्युअल ज़िम्मेदार नहीं है।

  1. United Network for Organ Sharing: दान किए गए अंगों का मिलान ट्रांसप्लांटेशन कराने वाले उम्मीदवारों के साथ कैसे किया जाता है, इस बारे में जानकारी