रेबीज

इनके द्वाराJohn E. Greenlee, MD, University of Utah Health
समीक्षा की गई/बदलाव किया गया मार्च २०२२

रेबीज़, दिमाग का वायरल संक्रमण है जो पशुओं द्वारा होता है तथा जिसके कारण दिमाग और स्पाइनल कॉर्ड की सूजन होती है। जब वायरस स्पाइनल कॉर्ड और दिमाग तक पहुंच जाता है, तो रेबीज़ लगभग हमेशा ही जानलेवा साबित होता है।

  • आमतौर पर, यह वायरस उस समय होता है, जब लोगों को संक्रमित पशु काटता है, आमतौर पर अमेरिका में चमगादड़ तथा ऐसे देशों में जहाँ पर कुत्तों का रेबीज़ के लिए टीकाकरण नहीं किया जाता है, तो वहां पर कुत्तों के काटने के कारण ये संक्रमण होता है।

  • रेबीज़ के कारण बैचेनी या भ्रम या लकवा हो सकता है।

  • वायरस की पता लगाने के लिए त्वचा बायोप्सी की जाती है।

  • ज़ख्म को तत्काल साफ करने तथा रेबीज़ टीका तथा इम्यून ग्लोबुलिन के इंजेक्शन लगाने से संक्रमण की रोकथाम की जा सकती है।

(दिमाग के संक्रमणों का विवरण भी देखें।)

वायरस संक्रमित पशु की लार से ट्रांसफ़र होता है। प्रवेश के समय से (आमतौर पर काटना), रेबीज़ वायरस तंत्रिका के माध्यम से स्पाइनल कॉर्ड से होकर फिर दिमाग तक पहुंच जाता है, जहाँ पर यह कई गुना बढ़ जाता है। वहां से, वह अन्य तंत्रिकाओं के ज़रिए, लार ग्रंथियों तथा लार में पहुंच जाता है। जब रेबीज़ वायरस स्पाइनल कॉर्ड तथा दिमाग तक पहुंच जाता है, तो रेबीज़ लगभग हमेशा जानलेवा साबित होता है। हालांकि, वायरस को दिमाग तक पहुँचने में कम से कम 10 दिन लगते हैं, आमतौर पर 30 से 50 दिन लगते हैं (कितना समय लगेगा, यह काटने की जगह पर निर्भर करता है)। इस समय के दौरान, वायरस की रोकथाम करने और मृत्यु की रोकथाम करने में सहायता के लिए उपाय किए जा सकते हैं। बहुत ही कम बार, रेबीज़ जानवर के काटने के महीनों या वर्षों बाद विकसित होता है।

हर वर्ष रेबीज़ के कारण 55,000 से अधिक मौते पूरे विश्व में होती हैं। ज़्यादातर मौतें लैटिन अमेरिका, एशिया और अफ़्रीका में होती हैं। अमेरिका में, हर वर्ष केवल कुछ लोगों की ही मौत होती है।

रेबीज़ के कारण

रेबीज़ वायरस, पूरे विश्व में जंगली और घरेलू जानवरों की अनेक प्रजातियों में मौजूद रहता है। रेबीज़ के पीड़ित पशु मरने से पहले कई हफ़्तों तक बीमार रहते हैं। इस समय के दौरान, वे अक्सर रोग को फैलाते हैं।

रेबीज़ वायरस, जो रेबिड पशु की लार में मौजूद होता है, वह उस समय ट्रांसफ़र होता है, जब पशु काटता है या बहुत ही कम बार दूसरे पशु या व्यक्ति को चाटता है। वायरस बिना कटी त्वचा से नहीं फैल सकता है। यह शरीर में केवल पंक्चर या त्वचा में किसी अन्य प्रकार के ब्रेक के ज़रिए प्रवेश कर सकता है या ऐसा उस समय हो सकता है, जब वायरस से प्रभावित अनेक एयरबोर्न बूदों को सांस के साथ नाक या मुंह से अंदर लिया जाता है (जैसा कि किसी ऐसी गुफा में हो सकता है, जहाँ पर संक्रमित चमगादड़ हैं)।

अनेक अलग-अलग प्रकार के स्तनपायी—जैसे कुत्ते, बिल्लियां, चमगादड़, रैकून, स्कन्क्स तथा लोमड़ियों द्वारा रेबीज़ लोगों तक फैलाया जा सकता है।

अमेरिका में, कुत्तों में रेबीज़ को टीकाकरण के लगभग दूर कर दिया गया है, तथा लगभग हर बार रेबीज़ के स्रोत जंगली पशु, आमतौर पर चमगादड़ होते हैं लेकिन ऐसा लोमड़ियों, स्कन्क्स, या रैकून्स के कारण भी हो सकता है। अनेक मामलों में, चमगादड़ के काटने पर ध्यान नहीं दिया जाता है। रेबीज़ के कारण होने वाली ज़्यादातर मौतें, संक्रमित चमगादड़ के काटने की वजह से होती हैं।

ऐसे देश जहाँ पर कुत्तों को रेबीज़ के विरूद्ध टीके नहीं लगाए जाते हैं (जिनमें अधिकांश लैटिन अमेरिका, अफ़्रीका, एशिया और मध्य पूर्व शामिल हैं), रेबीज़ के कारण होने वाली ज़्यादातर मौतें संक्रमित कुत्ते के काटने की वजह से होती हैं। कुछ मामले दूसरे पशुओं के काटने की वजह से भी होते हैं जैसे बंदर, जिनको कभी-कभी पालतू पशुओं की तरह रखा जाता है।

रेबीज़ के कारण बहुत ही कम बार रोडेन्ट्स प्रभावित होते हैं (जैसे हैम्स्टर, गुनिया पिग्स, गेरबिल्स, गिलहरी, चिपमंक्स, चूहों आदि) खरगोश आदि को प्रभावित करते हैं। अमेरिका में, ऐसा नहीं माना जाता है कि इन पशुओं के कारण लोगों को रेबीज़ होती है। रेबीज़ पशुओं और सरीसृपों को प्रभावित नहीं करता है।

क्या आप जानते हैं...

  • अमेरिका में, ऐसे लोग जिनको खरगोश या ज़्यादातर छोटे रोडेन्ट्स—जैसे हैम्स्टर, गेरबिल्स, गिलहरी, चूहों आदि द्वारा काटा जाता है—के लिए कभी भी रेबीज़ टीकाकरण की आवश्यकता नहीं पड़ती।

  • अमेरिका में रेबीज़ के कारण होने वाली कुछ मौतों में से ज़्यादातर के लिए चमगादड़ ज़िम्मेदार होते हैं।

रेबीज़ के लक्षण

काटने के कारण होने वाला ज़ख्म पीड़ादायक या सुन्न हो सकता है। खासतौर पर, चमगादड़ों के काटने का कोई लक्षण नहीं होता।

रेबीज़ लक्षण उस समय होते हैं, जब रेबीज़ वायरस दिमाग या स्पाइनल कॉर्ड में पहुंच जाता है, आमतौर पर जब व्यक्ति को काटा जाता है, तो ऐसा 30 से 50 दिनों के भीतर होता है। हालांकि, यह अंतराल 10 दिन से लेकर एक वर्ष से अधिक समय के लिए हो सकता है। जितना दिमाग के समीप काटा जाता है (उदाहरण के लिए चेहरा), उतनी ही तेजी से लक्षण दिखाई देते हैं।

रेबीज़ की शुरुआत बुखार, सिरदर्द, तथा रूग्णता के सामान्य अहसास से हो सकती है (मेलेइस)। ज़्यादातर लोग बैचेन, भ्रमित तथा अनियंत्रित रूप से उत्तेजित हो सकते हैं। उनका व्यवहार बहुत ही अजीबो-गरीब हो सकता है। उनको मतिभ्रम हो सकता है या नींद न आने की समस्या हो सकती है। लार का उत्पादन बहुत अधिक बढ़ जाता है। गले और स्वरयंत्र में मांसपेशियों की ऐंठन होती है, क्योंकि रेबीज़ मस्तिष्क के उस क्षेत्र को प्रभावित करता है जो निगलने, बोलने और सांस लेने को नियंत्रित करता है। ऐंठन बहुत ज़्यादा पीड़ादायक हो सकते हैं। थोड़ी सी भी हवा तथा पानी पीने की कोशिश से भी ऐंठन पैदा हो सकते हैं। इस प्रकार, रेबीज़ से पीड़ित लोग पेय पदार्थ नहीं पी सकते। इस कारण से, रोग को कभी-कभी हाइड्रोफ़ोबिया (पानी का डर) कहा जाता है।

जैसे-जैसे बीमारी दिमाग में फैलती है, लोग अधिक भ्रमित और गुस्सैल हो जाते हैं। आखिर में, इसके कारण कोमा और मौत हो जाती है। मौत का कारण एयरवेज़ का अवरूद्ध होना, सीज़र्स, थकान या पूरे शरीर में लकवा मार जाना हो सकता है।

20% लोगों में, रेबीज़ की शुरूआत जिस अंग पर काटा गया है, वहां पर झनझनाहट या लकवा मार देने से होती है। इसके बाद, लकवा पूरे शरीर में फैलता चला जाता है। ऐसे लोगों में, सोचना खास तौर पर अप्रभावित रहता है, तथा रेबीज़ के ज़्यादातर अन्य लक्षण विकसित नहीं होते।

रेबीज़ का निदान

  • त्वचा, लार तथा सेरेब्रोस्पाइनल फ़्लूड के नमूनों की जांच और परीक्षण (जिसे स्पाइनल टैप से प्राप्त किया जाता है)

डॉक्टर को उस समय रेबीज़ का संदेह होता है जब लोगों को सिरदर्द, भ्रम, तथा रोग के अन्य लक्षण होते हैं, विशेष रूप से यदि लोगों को पशु द्वारा काटा गया है या वे चमगादड़ों के संपर्क में आए हैं (उदाहरण के लिए, यदि वे किसी गुफा की खोज करते हैं)। हालांकि, रेबीज़ से ग्रसित अनेक लोगों को यह पता नहीं लगता कि उनको पशु ने काट लिया है और ये वे चमगादड़ के संपर्क में आए हैं।

त्वचा का एक नमूना लिया जाता है (आमतौर पर गर्दन से) तथा उसकी माइक्रोस्कोप में जांच की जाती है (त्वचा बायोप्सी), ताकि यह तय किया जा सके कि क्या वायरस मौजूद है। वायरस की जांच करने के लिए लार के नमूने की भी जांच की जाती है। सेरेब्रोस्पाइनल फ़्लूड (दिमाग और स्पाइनल कॉर्ड को कवर करने वाले ऊतकों में बहने वाला फ़्लूड) के नमूने को प्राप्त करने के लिए स्पाइनल टैप (लम्बर पंक्चर) किया जाता है। इस नमूने का भी परीक्षण किया जाता है।

पॉलीमरेज़ चेन रिएक्शन (PCR) तकनीक, जिसमें जीन की अनेक प्रतियों को तैयार किया जाता है, का प्रयोग त्वचा के नमूने, सेरेब्रोस्पाइनल फ़्लूड, या लार में अक्सर वायरस के खास DNA क्रम की पहचान करने के लिए किया जाता है। फ़्लूड के अनेक नमूनों, जिन्हें अलग-अलग समय पर लिया जाता है, उनका परीक्षण किया जाता है, ताकि वायरस के पता लगाने की संभावनाओं में बढ़ोतरी की जा सके।

रेबीज़ की रोकथाम

पशु के काटने से पहले

पशुओं द्वारा काट लिए जाने से बचना, विशेष रूप से जंगली पशुओं के काटने से बचना बेहतर रहता है। पालतू पशु जो अपरिचित हैं और जंगली पशुओं के आसपास नहीं जाना चाहिए। जंगली जानवरों में रेबीज़ के संकेत सूक्ष्म हो सकते हैं, लेकिन उनका व्यवहार खास तौर पर असामान्य होता है, जैसा कि निम्नलिखित में है:

  • जब लोग जंगली पशुओं के पास जाते हैं, तो शर्मीले या डरे हुए नहीं लगते हैं।

  • निशाचर जानवर (जैसे चमगादड़, स्कन्क्स, रैकून और लोमड़ी) दिन के दौरान बाहर निकल आते हैं।

  • चमगादड़ असामान्य आवाज़ें करते हैं और उनको उड़ने में परेशानी होती है।

  • बिना छेड़छाड़ के ही पुश काट लेते हैं।

  • पशु कमजोर तथा उत्तेजित और खतरनाक होते हैं।

कोई पशु जो रेबिड हो सकता है, उसको उठाया नहीं जाना चाहिए और उसकी सहायता करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। बीमार पशु अक्सर काटता है। यदि कोई पशु बीमार दिखाई देता है, तो लोगों को स्थानीय स्वास्थ्य प्राधिकारियों को बुलाना चाहिए, जो इसको हटाने में सहायता कर सकते हैं।

रेबीज़ टीका उन लोगों को ज़रूर लगाया जाना चाहिए जिनको रेबीज़ वायरस के संपर्क में आने की संभावना हो सकती है, इससे पहले की वे ऐसे किसी संपर्क में आते हैं। ऐसी लोगों की में निम्न शामिल हैं:

  • पशु चिकित्सक

  • प्रयोगशाला में काम करने वाले कामगार जो ऐसे पशुओं को हैंडल करते हैं जो रेबिड हो सकता है

  • ऐसे लोग जो विकासशील देशों में रहते हैं या 30 दिनों से अधिक समय के लिए वहां रहते हैं, जहाँ पर कुत्तों में बहुत अधिक रेबीज पाया जाता है

  • ऐसे लोग जो चमगादड़ की गुफाओं की खोज करते हैं

टीके की तीन खुराकें को मांसपेशी में इंजेक्शन के ज़रिए दिया जाता है। पहली खुराक तत्काल लगा दी जाती है (जिसे दिन 0 कहा जाता है)। दूसरे इंजेक्शन दिन 7 को तथा दिन 21 और 28 के बीच में लगाए जाते हैं। जिस अंग पर इंजेक्शन लगाया जाता है, वह पीड़ादायक तथा सूजी हुई हो सकती है, हालांकि ऐसा हल्का ही होता है। गंभीर एलर्जिक प्रतिक्रिया बहुत ही कम होती है।

टीकाकरण से ज़्यादतर लोगों को कुछ हद तक अपने शेष जीवन में सुरक्षा मिल जाती है। हालांकि, समय के साथ-साथ सुरक्षा में कमी आती है और यदि संपर्क में आने की संभावना जारी रहती है, तो समय-समय पर लोगों की जांच की जाती है, तथा यदि सुरक्षात्मक एंटीबॉडीज के स्तर कम हैं, तो उन्हें टीके की बूस्टर खुराक दी जाती है।

पशु के काटने के बाद

काटे जाने के तुरंत बाद, लोगों को साबुन तथा पानी से जख्म को बहुत अच्छे से साफ़ करना चाहिए। बहते पानी से गहरे पंक्चर जख्म अपने-आप हट जाते हैं। लोगों को डॉक्टर के पास जाना चाहिए। डॉक्टर बेंजालकोनियम क्लोराइड नाम के एंटीसेप्टिक से ज़ख्म की और ज़्यादा सफाई करते हैं। वे घाव के खुरदरे किनारों को हल्का कर सकते हैं।

डॉक्टर रेबीज़ के संक्रमित होने की संभावना को निर्धारित करने का भी प्रयास करते हैं। जल्दी ही पता लगाने की ज़रूरत होती है, क्योंकि अगर तुरंत ही बचाव के उपाय किये जाएं, तो रेबीज़ को रोका जा सकता है।

किसी जानवर के काटने के तुरंत बाद, किसी टेस्ट से पता नहीं चलता कि रेबीज़ वायरस संचरित हुआ है या नहीं। इस प्रकार, जिस व्यक्ति को जानवर ने काटा है उसे रेबीज़ से बचने के लिए, इंजेक्शन के माध्यम से रेबीज़ इम्यून ग्लोबुलिन और वैक्सीन दी जाती है। वायरस के लिए एंटीबॉडीज से युक्त रेबीज़ इम्यून ग्लोबुलिन से तुरंत सुरक्षा मिलती है, लेकिन कुछ समय के लिए ही। रेबीज़ वैक्सीन शरीर को वायरस के लिए एंटीबॉडीज पैदा करने के लिए उत्तेजित करती है। वैक्सीन की सुरक्षा थोड़ा धीरे शुरू होती है, लेकिन लंबे समय तक रहती है।

वैक्सीन और इम्यून ग्लोबुलिन की ज़रूरत, इन बातों पर निर्भर है कि व्यक्ति को पहले वैक्सीन से इम्यूनाइज़ किया गया है और जानवर का प्रकार और स्थिति क्या है। उदाहरण के लिए, डॉक्टर इन चीज़ों का पता लगाते हैं:

  • क्या वह चमगादड़, कुत्ता, रैकून या कोई और जानवर था

  • क्या वह जानवर बीमार लगता है

  • क्या उसे काटने के लिए उत्तेजित किया गया था

  • क्या जानवर विचार के लिए उपलब्ध है

जिन लोगों को काटा गया है अगर उन्हें बचाव के लिए इलाज की ज़रूरत हो और उनका इम्युनाइज़ेशन न हुआ हो, तो उन्हें तुरंत रेबीज़ इम्यून ग्लोबुलिन और रेबीज़ वैक्सीन दी जाती है (0 दिन पर)। अगर हो सके, तो इम्यून ग्लोबुलिन का इंजेक्शन घाव के आसपास ही लगाया जाता है। उन्हें वैक्सीन के तीन और इंजेक्शन दिए जाते हैं: 3, 7 और 14 दिन पर। जिन लोगों की इम्यूनिटी कमजोर हो (एड्स जैसे किसी विकार या दवा की वजह से) उन्हें 28वें दिन एक और इंजेक्शन दिया जाता है।

अगर व्यक्ति को पहले ही वैक्सीन लग चुकी हो, तो रेबीज़ होने का खतरा कम हो जाता है। हालांकि, घाव को अच्छी तरह साफ़ कर लेना चाहिए और रेबीज़ वैक्सीन का इंजेक्शन तुरंत और 3 दिन में दोबारा लगाया जाता है।

रेबीज़ वैक्सीन किसे लगवानी चाहिए?

यूनाइटेड स्टेट्स में, किसी जानवर द्वारा काटे गए व्यक्ति को रेबीज़ वैक्सीन देने का निर्णय जानवर के प्रकार और स्थिति पर निर्भर करता है।

किसी कुत्ते, बिल्ली या फैरेट से काटे जाने पर: अगर जानवर स्वस्थ हो और उसकी 10 दिनों तक निगरानी की जा सके, तो जब तक जानवर को रेबीज़ के लक्षण न हों, तब तक व्यक्ति को वैक्सीन नहीं लगाई जाती। अगर व्यक्ति को रेबीज़ के जैसा कोई लक्षण होता है, तो व्यक्ति को वैक्सीन और रेबीज़ इम्यून ग्लोबुलिन दिए जाते हैं। जिन जानवरों में रेबीज़ के लक्षण होते हैं उन्हें सुला दिया जाता है (यूथेनाइज़) और उनके दिमाग में रेबीज़ वायरस की जांच की जाती है। अगर वह जानवर 10 दिन तक स्वस्थ रहता है, तो काटने के समय उसे रेबीज़ नहीं था और वैक्सीन की ज़रूरत नहीं होती।

अगर जानवर की स्थिति का पता नहीं लगाया जा सकता—उदाहरण के लिए, अगर वह भाग जाए—तो सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारियों से यह पता लगाने की सलाह दी जाती है कि खास उस इलाके में रेबीज़ होने की कितनी संभावना है और क्या वैक्सीन लगाई जानी चाहिए। अगर स्थानीय सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारी मौजूद नहीं है और रेबीज़ संभव है, तो तुरंत वैक्सीन लगाई जाती है। यूनाइटेड स्टेट्स में बहुत ही कम, अगर किसी जानवर को रेबीज़ है या इसके जैसी स्थिति है, तो तुरंत वैक्सीन और इम्यून ग्लोबुलिन दी जाती है।

किसी स्कन्क्स, रैकून, लोमड़ी, बाकी कई मांसाहारी जानवरों या चमगादड़ों के काटने पर: ऐसे जानवर को रेबिड माना जाता है, जब तक कि उसकी जांच न की जा सके और नतीजे निगेटिव न आएं। आमतौर पर, तुरंत वैक्सीन और इम्यून ग्लोबुलिन दिए जाते हैं। जंगली जानवरों की 10 दिन तक निगरानी करने की सलाह नहीं दी जाती। जब संभव हो, तब इन जानवरों को सुला दिया जाता है (यूथेनाइज़) और जल्द से जल्द उनके दिमाग में रेबीज़ वायरस की जांच की जाती है। अगर जानवर की जांच का नतीजा निगेटिव आता है, तो वैक्सीन देना बंद कर दिया जाता है।

व्यक्ति को चमगादड़ के काटने का पता नहीं चलता, इसलिए काटने जैसा महसूस होने पर वैक्सीन दी जाती है। उदाहरण के लिए, अगर नींद खुलने पर कमरे में चमगादड़ दिखे, तो वैक्सीन दी जाती है।

मवेशियों, छोटे रोडेंट, बड़े रोडेंट (जैसे कि वुडचक और बीवर), खरगोश या कछुए के काटने पर: काटे जाने की हर घटना को अलग माना जाता है और सार्वजनिक स्वास्थ्य अधिकारियों की सलाह ली जाती है। जिन लोगों को हैम्स्टर, गुनिया सुअर, गेबरिल, गिलहरी, चिपमंक, चूहे, माउस, अन्य छोटे रोडेंट, खरगोश या कछुए ने काटा हो उन्हें लगभग कोई रेबीज़ वैक्सीन लगवाने की ज़रूरत नहीं पड़ती।

रेबीज़ का इलाज

  • आराम के उपाय

लक्षण पैदा होने पर, किसी इलाज से मदद नहीं मिलती। ऐसी स्थिति में, इंफ़ेक्शन वास्तव में हमेशा घातक होता है। इस इलाज में लक्षणों से राहत देना और लोगों को ज़्यादा से ज़्यादा सहज महसूस कराना शामिल है। बहुत कम मामलों में, जिन लोगों को इंटेसिव केयर यूनिट में रखा जाता है उन्हें ठीक होने में ज़्यादा समय लगता है।

अधिक जानकारी

निम्नलिखित अंग्रेज़ी-भाषा का संसाधन है जो उपयोगी हो सकता है। कृपया ध्यान दें कि इस संसाधन की विषयवस्तु के लिए मैन्युअल ज़िम्मेदार नहीं है।

  1. Centers for Disease Control and Prevention: रेबीज। इस वेबसाइट पर रेबीज़ कैसे फैलता है, इसके लक्षण क्या हैं, रेबीज़ से कैसे बचें और इलाज की ज़रूरत कब होती है के लिंक मौजूद हैं और साथ ही, खास तरह के लोगों का समूह और अन्य संसाधन शामिल हैं। 18/2/22 को ऐक्सेस किया गया।